राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
नवाचार :पारंपरिक ज्ञान का ह्रास नहीं होना चाहिए इसका हस्तांतरण होना चाहिए ।
केवल उत्तराखंड ही नही पूरे भारतवर्ष में सदियों से चली आ रही पारंपरिक खेती , भोजन, तकनीकों और औषधियों को कुछ वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने भरण-पोषण के लिए न सिर्फ प्रयोग किया जाता था बल्कि उन्हें अपनी पीढ़ियों को सुव्यवस्थित रूप में हस्तांतरित भी करते थे, जैसे कि पानी से चलने वाली पनचक्की (घट / घराट) ,भीमल और भांग के रेशो से बनने वाली सामग्री ,बाँस और रींगाल , जंगल से प्राप्त जड़ी बूटियों से दवाइयाँ बनाना,
पेड़-पौधों की प्रवर्द्धन विधियाँ ,चारा इकट्ठा करने की विधि, रीठे से साबुन निर्माण की विधियाँ , जंगल से प्राप्त खुशबूदार पौधों द्वारा धूप निर्माण ,जलस्रोत एवं संचय की विधियाँ ,समय व मौसम विज्ञान संबंधी विश्वास ,मौन पालन की प्रचलित विधियाँ
इत्यादि और भी बहुत कुछ । परन्तु आज के आधुनकि काल मे आम जन ने इस अमूल्य पुराने ज्ञान का न सिर्फ ह्रास कर दिया है साथ ही इन्हें प्रयोग करने का वह इक्छुक भी प्रतीत नही होता , पारंपरिक ज्ञान विशुद्ध रूप से अनुभव आधारित था इस पर मानवीय श्रम अधिक जरूर लगता था पर था यह शुद्ध मिलावट विहीन यही कारण है कि आज के मनुष्य ने इस ज्ञान को सहेज कर नही रखा और त्याग दिया है । उदाहरण के तौर पर पहले पानी से चलने वाली चक्की जिसे हम घराट कहते हैं से आटा पीसा जाता था यह एक समय की मांग करने वाला कार्य था पर आज के आधुनिक युग में बिजली से चलने वाली चक्कीयां उपलब्ध हैं तो भला घराट का प्रयोग कौन करेगा इसी प्रकार की और भी बहुत सारी विधियां हैं जो विलोपन के कगार पर हैं या विलुप्त हो चुकी है ।
एक अध्यापक और समाज का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरा यह कर्तव्य बनता है कि इस पारंपरिक ज्ञान को सहेजने का प्रयास करूं और अपने छात्रों तक उपलब्ध कराऊँ ताकि आगे आने वाली पीढ़ी को इस अमूल्य ज्ञान के बारे में पता रहे और वह इसका प्रयोग करता रहे । आज हमारे समक्ष प्रदूषण जैसी भीषण समस्या मुँह बाए खड़ी है। दिन-प्रतिदिन इसका स्वरुप और विकराल होता जा रहा है। सारे विश्व के तमाम तकनीकी विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्रदूषण की इस समस्या का समाधान कैसे हो? ऐसे में यदि परम्परागत व्यावहारिक तकनीक /ज्ञान को आधुनिक विकास के अनुरुप ढाल कर प्रयोग में लाया जाए, तो प्रदूषण की इस विकट समस्या का आंशिक निदान अवश्य निकल आएगा। इसी प्रक्रिया में हमने काफी ज्ञान बच्चों को हस्तांतरित किया है जिसमें मुख्य रुप से जंगल से प्राप्त पादपो और जड़ी बूटियों द्वारा धूप का निर्माण ,भांग और भीमल के रेशों से रचनात्मक सामग्री का निर्माण ,ऐपण कला का प्रशिक्षण, तीज त्योहारों और संस्कृति के संरक्षण का ना सिर्फ प्रयास कर रहे हैं साथ ही साथ इसे आने वाली भी भावी पीढ़ी को प्रशिक्षित कर हस्तांतरित भी कर रहे हैं ताकि हमारा पारंपरिक ज्ञान बचा रहे और संपन्न रहें ।