राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
उत्तराखंड में बहुत अधिक वर्षा नहीं होती है यहाँ की कृषि वयवस्था मुख्यतः मानसून पैर आधारित है मैदानी क्षेत्रो में तो फिर भी नहरों टूबवैलो से सिचाई हो जाती है क्योकि अधिकांश जिले पहाड़ी है और इस प्रकार की कोई वयवस्था वहाँ संभव नहीं है। इसका कारन पहाड़ो की विषम भगौलिक परिस्थिति है। अतः बरसात के जल को इक्कठा करने का प्रयास सरकारी स्तरों पैर सेवित क्षत्रो में किया जा रहा है जिनके अंदर बंजर भूमि में तालाब इत्यादि खोद कर वर्षा के जल का प्रयोग कृषि इत्यादि कार्यो के लिए किया जाता है। क्योकि विद्यालयों के पास अधिक भूमि नहीं होती है और जो होती भी है तो उसमे बच्चो का क्रीड़ा क्षेत्र आ जाता है।
अतः हमने विद्यालय की चारो दीवारों से सटा कर किचन गार्डन के लिए क्यारियों का निर्माण किया इससे यह लाभ हुआ की जो भी जल वर्षा से विद्यालय की छत पर गिरता है वह सीधे सीधे इन क्यारियों में पहुँच कर इनमे लगे पौधों को पोषित करता है। न केवल वर्षा का ही जल ये ढाल दार छत रात में गिरी हुई ओस को भी पौधों तक पहुँचाने में मदद करता है।
इस तरह से हमने विद्यालय के चारो तरफ लगभग १२० फ़ीट लम्ब्बी और २ फ़ीट चौड़ी किचन गार्डन का निर्माण किया है जो न सिर्फ वर्षा के जल का बेतरीन प्रयोग है साथ ही साथ बच्चो को पौष्टिक सब्जिया व् फल उपलब्ध करा रहा है।
Rain water harvesting का यह बेतरीन उदाहरण है जहां शून्य निवेश कर के फलो व् सब्जियों का उत्पादन कर के बच्चो को सर्वोत्तम मध्यान भोजन प्रदान किया जा रहा है। इसीलिए यह नवाचार छत जल और फल है।
बच्चों को मध्यान्ह भोजन के लिए बहुत बेहतर पौष्टिक सब्जियां प्राप्त हो रही हैं
विद्यालय में रखे फल फूल एवं सब्जियों की क्यारियां ना केवल बच्चों को पौष्टिक पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा रही हैं साथ ही साथ विद्यालय की सुंदरता में भी चार चांद लगा रही हैं
इस प्रक्रिया से वर्षा के जल का दोहन किया जा रहा है जिससे कि क्षेत्र में लोगों के बीच में पानी के संरक्षण सदुपयोग के बारे में लोगों की जानकारियां बढ़ रही हैं स्कूल को देखकर ही लोगों ने अपने घरों में भी इसे इंप्लीमेंट करने का प्रयास किया है।
बच्चों को श्रम का महत्व समझाते हुए विद्यालय से लगी दीवारों के किनारे किनारे क्यारियां बनाई जाती हैं इस कार्य में भोजन माता एवं अभिभावकों का सहयोग भी जरूरत पड़ने पर लिया जाता है।
गांव से गोबर की खाद लेकर मिट्टी में मिलाई जाती है।
मौसमी सब्जियों की पौध इन तैयारियों में लगाई जाती है जैसे भिंडी बैगन लौकी कद्दू इत्यादि इन सब के लिए भी ग्राम पंचायत से प्राप्त हो जाते हैं
विद्यालय की ढाल वाली छत से वर्षा के दौरान इन पौधों को पानी प्राप्त होता है और पूरे चातुर्मास के दौरान बहुत बेहतरीन सब्जियां प्राप्त होती है ,आप चित्र और वीडियो अवश्य देखें
गतिविधि के रूप में बच्चों को बागवानी सिखाते हुए शनिवार गतिविधि के रूप में क्यारियों में से खरपतवार निकालना भी सिखाया जाता ।
छत ,जल और फल : विद्यालय की धारदार छत द्वारा वर्षा के जल का दोहन करके किचन गार्डन की सिंचाई करना ।
इस शून्य निवेश नवाचार के अंतर्गत विद्यालय की दीवारों के साथ लगकर क्यारियां बनाई जाती ,विद्यालय की धारदार टीन की छत पर जब वर्षा होती है तो यह जल इस छत से होते हुए नीचे लगे हुए पौधों को पानी देता है ,जिससे कि बहुत बेहतर सब्जियां होती हैं , बरसात के मौसम में इन क्यारियों में मौसमी सब्जियां जैसे बैगन भिंडी लौकी कद्दू बींस इत्यादि लगाई जाती है सर्दियों में केले नींबू वह फूल लगाए जाते हैं जिनका की बहुत बेहतर उत्पादन किया जाता है, यह उत्पादन बच्चों के मध्यान भोजन हेतु प्रयोग में लाया जाता है ।अतिरिक्त उत्पादन को बच्चों और उनके अभिभावकों में वितरित कर दिया जाता है जिससे कि विद्यालय और समाज के साथ घनिष्ठता बनी रहती ।