राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
उत्तराखंड के जल मंदिर नौलो पुनःरक्षण
उत्तराखंड के जल मंदिर नौलो क पुनः रक्षण
1: नौला क्या है -
उत्तराखंड के प्राचीन काल में मानव अपनी जल की आवश्यकता को या तो नदियों से पूरा किया करते थे या फिर किसी स्रोत वाले धारा के रूप में बहने वाला जल अपने उपयोग में लाया करते थे इसके अतिरिक्त वर्षा का जल भी कहीं एकत्र करके उपयोग में लाया जाता था। नौला यह मध्य पहाड़ी भाषा का शब्द है जिसका सीधा संबंध नाभि से है अर्थात जैसे नाभि से नवजात बच्चे को गर्भाशय में पोषण मिलता है उसी तरह से नौला के पानी के जरिए मां धरती हमको पोषित करती है । नौला उत्तराखंड में भूमिगत जल स्रोतों के लिए सीढ़ीदार जलमंदिर प्रकोष्ठ के लिए किया जाता था जिसका निर्माण एक विशिष्ट वास्तु विधान के अंतर्गत किया गया होता है । नौलो की आवश्यकता मनुष्य को तब महसूस हुई जब पहाड़ी और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नदियां तो निचली धारा में बहती हैं और धारा का प्रवाह भी हर जगह मिलना मुश्किल होता है ।किसी स्थान पर पानी बहुत कम मात्रा में निकलता है ऐसे में उस पानी को नाले के रूप में इकट्ठा करने की आवश्यकता हुई आरंभ काल में जल एकत्रीकरण के लिए जमीन में गड्ढा बनाया गया बाद में उसी पानी को पीने नहाने कपड़े धोने और जानवरों को पिलाने के लिए उपयोग किया गया मानव का भी निरंतर विकास होने के कारण खुले गड्ढों का पानी इतना साफ नहीं रहने लगा पानी भरते समय जल में कंपन के कारण मिट्टी भी पानी के साथ मिल जाती व खुले होने के कारण आसपास का कूड़ा करकट भी उसी में चला जाता जंगली पशु-पक्षी भी पानी को गंदा कर देते थे ।इसी कारणों से इन गड्ढों के चारों तरफ पत्थर लगाए गए और दीवारें खड़ी कर के पत्थरो की छत बना कर उसे मन्दिर रूपी आकर दिया गया यही जलमंदिर नौला कहलाए गए ।
2: ये नौले खतरे में क्यों हैं
पहले गांव में पानी के परंपरागत स्रोतों के रूप में नौलो का प्रयोग बहुत हुआ करता था कालांतर में स्वजल- अपना जल -जल निगम इत्यादि सरकारी योजनाओं के आने से नौलो का प्रयोग या तो बिल्कुल बंद हो गया या फिर केवल जानवरों के पीने के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा। इस कारण से ये परंपरागत पानी के स्रोत पुनः रक्षण की मांग करते है ।
3: हमारा नवाचार क्या है
हमारा नवाचार ना केवल जल संरक्षण के लिए उपयोग हो रहा है साथ ही साथ उत्तराखंड के परंपरागत जल स्रोतों नौला यानी कि जल मंदिरों के पुनः रक्षण में भी बहुत मददगार साबित हो रहा है उत्तराखंड के बहुत से NGO इस हेतु काम कर रहे हैं पर हमारा यह कार्य उनसे बिल्कुल अलग है क्योंकि हमने इसे अपने सेवित क्षेत्र में किया और आम जनमानस और अपने विद्यालय के छात्रों को साथ में लेते हुए इस नवाचार को क्रियान्वित किया इतना सफल हुआ कि गांव के दो नौलो को अब तक पुनर्जीवित किया है ।
जल संरक्षण में मदद हो रही है
आम जनमानस परंपरागत जल स्रोतों पर ध्यान दे रहे हैं
सेवित क्षेत्र के अभिभावक , छात्र, और आम लोग जल की महत्वता को समझते हुए जल के
संरक्षण को आगे आ रहे हैं, जागरूक हो रहे हैं
आम जनमानस को जल की महत्वता बताते हुए सेवित क्षेत्र में नुक्कड़ नाटक, रैली, जन जागरण इत्यादि का आयोजन किया गया, सभी कार्यों में छात्रों जनप्रतिनिधियों एवं अभिभावकों का सहयोग लिया गया।
नौलो की साफ-सफाई का दिन निश्चित किया जाता है गांव वाले अपनी अपनी बारी से आते हैं और नौलो की सफाई करते हैं
लघु मरम्मत के लिए पंचायत की मदद भी ली जाती है
ग्रामीणों के साथ मिलकर नौलो के आस-पास ऐसे पौधों का रोपण किया जाता है जो नौलो के लिए लाभदायक होते हैं तथा जिनमें जल को अवशोषित करने की काबिलियत होती है जैसे बाज, बुरांश, उदीस इत्यादि
क्योंकि नौलो का पानी स्वच्छ एवं प्राकृतिक रूप से छनकर आता है इसीलिए इसका प्रयोग हम अब मध्यान भोजन पकाने में भी प्रयोग करते हैं इस प्रक्रिया से ना केवल बच्चों में जागरूकता हो रही है साथ ही साथ गांव वाले भी इनके संरक्षण को आगे आ रहे हैं और यह जल बचाने की ओर हमारा एक छोटा सा प्रयास है जो आगे और बढ़ेगा।
प्रस्तुत नवाचार उत्तराखंड में परंपरागत जल स्रोत नौला के संरक्षण को लेकर किया गया है आधुनिक काल में पानी के आसान तरीके जैसे नल टंकी हैंड पंप इत्यादि आ जाने से इन परंपरागत प्राकृतिक जल स्रोतों से आम लोगों ने दूरियां बना ली क्योंकि अब पृथ्वी पर जल संकट भी आने वाला है तो इस और क्यों आवश्यक है की पुनः इन प्राकृतिक जल स्रोतों का पुनरुत्थान किया जाए इसी उद्देश्य को लेकर यह नवाचार हमने अपने सेवित क्षेत्र में किया जो काफी सफल रहा ।
अब आम जनमानस के समझ में भी आ गया है कि यदि जीवन को बचाना है तो जल को भी बचाना है और साथ ही साथ परंपरागत पानी के स्रोतों को भी पुनर्जीवित कर उनका संरक्षण करना आवश्यक है