राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
" क " से होती कहानी ,आओ सुने तुम्हारी जबानी
(सुनी गई कहानी को "नहीं " के रूप में सुनाना )
बोलना कौशल के विकास हेतु एक नवाचार
" क " से होती कहानी ,आओ सुने तुम्हारी जबानी
(सुनी गई कहानी को "नहीं " के रूप में सुनाना )
बोलना कौशल के विकास हेतु एक नवाचार
हम लोग बचपन से प्यासा कौआ बाल कथा सुनते और सुनते ए है है बल्कि मेरे शिक्षण के शुरुवाती दिनों में मैंने भी बच्चो को ये कहानी बहुत सुनाई और उन्हें कंठस्थ करवाकर उनसे यह कहानी सुनता भी रहा बच्चे पूरे विश्वाश के साथ इस कहानी को सुनते थे और अंत में उसकी सीख भी बता देते थे ,प्यासा कौआ ही नहीं अन्य बबल कहानिया भी मेरे छात्र सुनाते रहे है और उन्हें सुनते सुनते अन्य बच्चो को भी यह कहानी याद हो गयी और वे इसे यदा कदा सुनते सुनाते भी रहे ,परन्तु न तो वे कुछ नया सीख रहे थे और न ही वे अपनी भाषा शाली को बदल पा रहे थे और न ही कहने के उपरांत भी सुनाई कहानी के अधर पर कोई नै कहानी का निर्माण कर पा रहे थे ,हालकी कहानी सुनने और सुनाने के अपने ही अकादमिक फायेदे है जैसे -
1.कहानी सुनने से बच्चो की बुद्धि का विकास होता है और विचरो और सोचने की शक्ति बदती है.
2.कहानियां सुनाने से बच्चों का शिक्षक के साथ सम्बन्ध भी गहरा होता है और बच्चों के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
3.बच्चों के अंदर बात-चीत करने के कौशल का विकास भी होता है।
4. कहानिया सुनने से कल्पना शक्ति बढती है
5.कहानियों में इस्तेमाल हुए विभिन्न पात्रों की वजह से बच्चे में कोतुहल बढ़ता है। उनकी कल्पना शक्ति को पंख मिलता है और वे कहानियों की एक नई दुनिया के बारे में समझना शुरू करते हैं।
उपरोक्त के अलावा भी बहुत से फायदे कहानिया सुनाने के है परन्तु यदि बच्चा कहानियों में इस्तेमाल हुए विभिन्न पात्रों की वजह से अपनी सोच विचारो को बढाता है। तो वह उन पात्रो को लेकर नए विचार प्रस्तुत कर सकता है परन्तु शुरुवाती भाषा शिक्षण में ऐसा नहीं हो पता हम बस बच्चो को क ख ग ..... सिखाने तक ही सिमित रह जाते है और जब वह क ख ग सीख जाता है तो एक दम से उसे बहुत आगे के पायेदान पर पहुचा देते है अर्थात सीधे पढना सिखाना शुरू कर देते है ,यह एक उबोऊ होती प्रक्रिया है और किसी भी प्रकार से बाल केन्द्रित शिक्षा पर बी आधारित नहीं है .मेरा मानना है और अनुभव भी है की जब बच्चा शुरुवात में आपके पास आता है उसके मन में भरे पूरे विचार होते है ,नई नई बाते कहने बताने को होती है ,बस एक ही समस्या उसे होती है और वह है उसकी भाषागत अक्षमता अर्ताथ वह उस भाषा में वह बात ठीक से अपनी ब्बत नहीं कह पता जो उसकी अधिगम की भाषा है |
मैंने बच्चो को बड़ी नजदीक से अपनी आंचलिक भाषा में ऐसी बात करते सुना है जिसे हम हिंदी भाषा शिक्षण में उनसे सुनने को न जाने कितने प्रयास करते है ,इसका क्या कारण हो सकता है ? क्यों नहीं हम वो आउटपुट हिंदी भाषा शिक्षण में कक्षा एक के बच्चे से ले पाते जो उसका परिवार उस से बहुत ही सहज तरीके से ले लेता है .इसके कुछ कारण इस प्रकार से हो सकते है -
1.विद्यार्थी उस भाषा में सर्वश्रेष्ठ ढंग से सीखते हैं जिसे वे सबसे अच्छी तरह जानते हैं और यह उनकी गृह भाषा होती है पर विद्यालय आते ही उनका माध्यम बदल जाता वे क ख ग के चक्कर में पढ़ कर अपना आत्म विश्वाश खोते चेले जाते है और सम्बंदित भाषा से भय रखने लगते है .
2.यह सभी जानते है की प्रथम भाषा में जितना अधिक अध्यापन और शिक्षण होता है, शैक्षणिक परिणाम भी उतने ही बेहतर होते हैं। परन्तु हम लोग शिक्षण कार्य करते हुए इस बिंदु को बिलकुल ध्यान नहीं रखते है जिस से बाचे को शुरुवाती भाषा शिक्षण में अध्यापक को परेशानियों का सामना करता पड़ता है और बच्चा अपने अधिगम में पिछड़ता चला जाता है.
उपरोक्त बातो को ध्यान में रखते हुए मैंने समस्या का पता तो आर लिया था तथा अब इस समस्या के निदान का तरीका भी पता करना था ,और यही से " नवाचार - क से होती कहानी ,आओ सुने तुम्हारी जबानी (सुनी गई कहानी को "नहीं " के रूप में सुनाना )" का जन्म हुआ .
यह नवाचार पूर्ण रूप से शिक्षा मनोविज्ञान और नियमो पर ही आधारित है और इसका मूल सिद्धांत भी यही है की बालक की प्रथम भाषा में जितना अधिक अध्यापन और शिक्षण होता है, शैक्षणिक परिणाम भी उतने ही बेहतर होते हैं |
क से कहानी ,आओ सुने तुम्हारी जबानी एक रचनात्मक नवाचार है बच्चे न सिर्फ कहानिया सुनते और सुनाते है साथ ही साथ वे अपनी गृह भाषा के माध्यम से अन्य भाषा सीखते चले जाते है और शुरुवाती भाषा शिक्षण हेतु जिस आउटपुट की उनसे उम्मीद की जाती उसे वे प्रदर्शित करते है और भाषा शिक्षण को सफल बनाते है .
गर्मी के दिन थे. एक प्यासा कौआ पानी की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा था. किंतु कई जगहों पर भटकने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला.लगातार उड़ते रहने के कारण वह बहुत थक गया था और तेज गर्मी में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी. धीरे-धीरे वह अपना धैर्य खोने लगा. उसे लगने लगा कि आज उसकी मृत्यु निश्चित है.थक कर वह एक मकान की छत पर बैठ गया. वहाँ उसकी दृष्टि एक कोने में रखे घड़े पर पड़ी. पानी मिल जाने की आशा में वह उड़कर घड़े के पास पहुँचा और उसके अंदर झांक कर देखा.उस घड़े में पानी तो था, किंतु बहुत नीचे था. वहाँ तक कौवे की चोंच नहीं पहुँच सकती थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे घड़े में रखे पानी तक पहुँचे.वह उपाय सोचने लगा. तभी उसे पास ही रखा कंकड़ो का ढेर दिखाई दिया और उसे एक उपाय सूझ गया.एक-एक करके अपनी चोंच से कंकड़ लाकर वह घड़े में डालने लगा. कुछ देर में ही पानी का स्तर ऊपर आ गया. अब कौआ चोंच डालकर पानी पी सकता था. उसकी मेहनत रंग लाई थी. वह पानी पीकर तृप्त हो गया.
सीख – कठिन समय पर धैर्य नहीं खोना चाहिये और बुद्धि का प्रयोग कर समस्या का निवारण करना चाहिए.
इस नवाचार का सबसे महत्वपूर्ण चरण इसका अंतिम चरण है जब बच्चे इतने सक्षम हो जाते है की वे सुनी हुई कहानी को नहीं के सन्दर्भ में सुनते हुए अपनी एक नई कहानी का निर्माण करते हुए कल्पना लोक में विचरण करते हुए अपनी नैसर्गिक रचनात्मकता का तो विकास करते ही है साथ ही साथ उसे अन्य आयाम पर भी पहुंचाते है ,बच्चो के साथ इस प्रकार का अनुभव कमाल का होता है .
शब्दार्थ :
गर्मी गरम hot
प्यासा तीस thirsty
शुरुवाती भाषा शिक्षण मे बहुत लाभदायक सिद्ध हो रहा है ,बच्चे न सिर्फ अपनी आंचलिक भाषा ,बोली में कहानी कह पा रहे है साथ ही साथ वे सुनी या सुनाई गयी कहानी के आधार पर नई कहानी का निर्माण कर पा रहे है .
बच्चो की शब्दों (vocabulary) बढ़ रही है ,उनके शब्द कोष में अब नए नए शब्द है ,अब वे एक ही वस्तु को विभिन्न प्रकार से जानते है जैसे हिंदी में घड़ा ,घड़ा ही है पर उनकी पहाड़ी बोली में ये घौड है
नवाचार से बच्चो के बोलने के कौशल का विकास हो रहा है ,वे न केवल नई नई कहानिया बना पा रहे साथ ही साथ कहानियों के पत्रों पर अपनी टिप्पणी भी दे पा रहा है ,यह नवाचार बाद के कौशलो के विकास में भी बहुत सहायक सिद्ध हो रहा है ,छात्र बहुत जल्दी पढना लिखना सीख पा रहे है.
सबसे पहले अध्यापक बच्चो को ध्यान आकर्षित करने वाली और आनंदायक कहानी हाव भाव के साथ हिंदी भाषा में सुनाते है और साथ साथ में बच्चो को कठिन शब्दों का अर्थ और उन शब्दों को उनकी बोली में क्या कहते है यह भी बताते है - जैसा पेड़ को पहाड़ी बोली में बोट कहते है ,इसी प्रकार से अन्य शब्दों को बताते चलते है .कहानी सुनाते वक्त बहुत साधारण भाषा का इस्तेमाल किया जाता है पर हाव भाव का प्रयोग आवश्क है ,कहानी बहुत रोचक तरीके से सुनाई जाती है ,कहानी सुनाते वक्त बच्चों को किताब में से कहानी से सम्बंधित चित्रों को भी दिखाया जाता है .
कहानी सुनाने के बाद बच्चो से फीडबैक लिया जाता है और कहानी पे बातचीत की जाती है ,कुछ प्रश्न भी पूछे जाते है ,कहानी के पात्रो पे उनके विचार सुने जा सकते है ,या उन्हें कहानी को अपने शब्दों में लिखने को कहा जा सकता है .
बच्चो को पर्याप्त समय देते हुए उन्हें अध्यापक द्वारा सुनाई कहानी को उनकी स्थानीय बोली में त्यार कर प्रस्तुत करने को कहा जाता है .
उनकी प्रस्तुती की सराहना कर उन्हें मोटीवेट किया जाता है की अब दुबारा इस कहानी को हिंदी में अपने शब्दों में सुनाये , बच्चे इस प्रक्रिया के साथ अंतक्रिया करते है और कहानी को अपने स्वयं के शब्दों में बड़े ही रोचक तरीके से सुनाते है .
अब तक की गतिविधि से बच्चो के मस्तिष्क पर कहानी पूरी तरह से स्पस्ट हो चुकी होती है और वे इसे भली भांति समझ कर आत्मसात कर चुके होते है , अब पुनः उन्हें उत्त्साहित करते हुए इसी कहानी को इंग्लिश में लिखने और सुनाने को कहा जाता है , बच्चे गलतिया करेंगे जो की स्वभाविक है पर अन्तत वे शिक्षक के मार्गदर्शन में वे सफलता प्राप्त कर लेते है ,
अबी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई है ,बच्चो की रचनात्मकता को बढावा और भाषा - बोलना कौशल के विकास के लिये अब नवाचार के अंत में बच्चो से कहा जाता है की अब तुम इस कहानी को नहीं के परिपक्ष्य में सुनाओ मतलब की अगर बच्चे ने प्यासा कौवा कहानी सुनी है तो उसे यह कह कर अपनी एक नई कहानी की रचना करनी होगी की कौवे को मटके में पानी नहीं मिला या कौवे को रोटी नहीं मिली , कौवे की रोटी पेड़ से गिरी पर लोमड़ी वह रोटी नहीं ले भागी ,यकीं मानिये इस से आगे बच्चे पूरी कहानी ही बदल देते है और अपनी रचनात्मकता को एक नया आयाम प्रदान करते है ,इस पूरी प्रक्रिया में बाचो की सक्रियता कमाल की रहती है और उन्हें आनन्द भी अता है और वे बड़ी ही आसानी से हिंदी इंग्लिश पढना लिखना बोलना सीख जाते है .