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ल्हासा की ओर (राहुल सांकृत्यायन)
QUESTIONS
लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
कंजुर क्या हैं? इनकी विशेषताएँ लिखिए।
लेखक ने अपने यात्रा-वृत्तांत में तिब्बत की भौगोलिक यात्रा का जो चित्र खींचा है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
‘ल्हसा की ओर’ पाठ के आधार पर सुमति की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
तिब्बत में यात्रियों के लिए क्या-क्या कठिनाइयाँ थीं?
डाँड़े तथा निर्जन स्थलों पर डाकू यात्रियों का खून पहले ही क्यों कर देते हैं?
ल्हासा की ओर (राहुल सांकृत्यायन)
Answer
लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से निम्नलिखित कारणों से पिछड़ गया-
लेखक का घोड़ा सुस्त था इसलिए वह धीरे-धीरे चल रहा था।
घोड़ा धीरे चलने के कारण लेखक अपने साथियों से पिछड़ गया |
दूसरे रास्ते पर डेढ़-दो मील चलने पर लेखक को लगा कि वह गलत रास्ते पर आ गया है | वहाँ से वह फिर वापस आकर दूसरे रास्ते पर गया।
कंजुर भगवान बुद्ध के वचनों की हस्तलिखित अनुवादित पोथियाँ हैं। ये पोथियाँ मोटे-मोटे कागजों पर अच्छे व बड़े अक्षरों में लिखी हुई हैं। एक-एक पोथी लगभग पंद्रह-पंद्रह सेर की है।
तिब्बत भारत के उत्तर में स्थित पर्वतीय प्रदेश है। यहाँ के रास्ते बड़े ही दुर्गम हैं। ये रास्ते घाटियों से घिरे हुए हैं। यहाँ की जलवायु ठंडी है। यहाँ सर्दी अधिक पड़ती है। एक ओर दुर्गम चढ़ाई है तो दूसरी ओर गहरी-गहरी खाइयाँ हैं। चढ़ते समय जहाँ सूरज माथे पर रहता है वहीं उतरते समय पीठ भी ठंडी हो जाती है। इसके एक ओर बर्फ से ढकी हुई हिमालय की चित्ताकर्षक चोटियाँ हैं तो दूसरी ओर बर्फरहित भूरी पहाड़ियां। पहाड़ियों के मोड़ बड़े ही खतरनाक हैं। इन स्थानों पर डाकुओं का भय रहता है।
सुमति की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
सुमति लेखक के परम मित्र थे |
वे मिलनसार स्वभाव के थे |
वे समय के पाबंद थे |
सुमति अतिथि सत्कार में कुशल थे |
वे जितनी जल्दी गुस्सा होते थे उठी ही जल्दी शांत भी हो जाते थे |
उन्हें तिब्बत की भोगौलिक स्थिति का पूरा-पूरा ज्ञान था |
वे बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे |
तिब्बत में यात्रियों के लिए निम्नलिखित कठिनाइयाँ थीं-
यात्रियों को डाँड़े जैसे स्थानों पर चढ़ाई करते हुए जाना पड़ता था।
उन स्थानों पर उन्हें जान-माल का खतरा रहता था क्योंकि वहाँ डाकुओं का भय था।
वहाँ के रास्ते ऊँचे-नीचे थे।
वहाँ की जलवायु विषम थी कभी तेज़ सर्दी तो कभी सूरज की गर्मी सहनी पड़ती थी।
तिब्बत के डाँड़े तथा निर्जन स्थलों पर डाकू यात्रियों का खून पहले इसलिए कर देते थे क्योंकि वहाँ की सरकार पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग पर ज्यादा खर्च नहीं करती थी | इस कारण वहाँ के डाकुओं को पुलिस का कोई भय नहीं था | वहाँ कोई गवाह नहीं मिलने पर उन्हें सज़ा का भी डर नहीं रहता था | वहाँ हथियारों का कानून न होने से अपनी जान बचाने के लिए पिस्तौल और बंदूक तो लाठी-डंडे की तरह लेकर चलते हैं।