Post date: 29-Nov-2011 10:21:56
पुरानी कहानी in a different scenario
श्री कृष्ण की शिक्षाएं पूरी हो चुकीं थीं | बात गुरु दक्षिणा की हुई | महर्षि संदीपन ने मौन रखा परन्तु गुरु माता से श्री कृष्ण को ज्ञात हो चुका था कि महर्षि का पुत्र गायब था जो बहुत ढूढने पर भी नहीं मिल सका था तथा गुरु माता दुखी रहा करती थीं | श्री कृष्ण ने महर्षि संदीपन की मौन की भाषा को समझा और दाऊ बलराम के साथ गुरु पुत्र को ढूढने चल दिये |
पहले के ज़माने में क्षेत्रीय राजाओं की अपनी-अपनी जेलें हुआ करतीं थीं तथा समझौते के तहत एक केन्द्रीय जेल बनायीं गयी थी | जेलें, सामान्य रूप में, प्रवेश निषिध्द होने के कारण आम जनमानस में अन्यलोक कही जातीं थीं | इस प्रकार केन्द्रीय जेल एक अन्यलोक ‘यमलोक‘ के रूप में था जिसका उच्च पदाधिकारी यमराज कहलाता था, जो यमलोक में दाखिल किये गये बन्दियो का नरक, घोर नरक, रौरव नरक आदि में classification कर यमलोक चलाने के लिये श्रम आबंटन करता था |
हाँ, तो कहानी को आगे बढ़ाते हैं | श्री कृष्ण ने सोचा कि महर्षि संदीपन ने अवश्य ही अगल बगल की जेलों में अपने पुत्र को ढूढां होगा जो नहीँ मिल सका था अतः क्यों न केन्द्रीय जेल ‘यमलोक’ में पता किया जाए | श्री कृष्ण दाऊ बलराम सहित यमलोक के मुख्यद्वार पर पहुंचते हैं एवं द्वारपाल से आने का प्रयोजन बतातें हैं |
श्री कृष्ण – मैं अवन्तिका राज्य में स्थित गुरु महर्षि संदीपन आश्रम के अपने गुरु पुत्र को release कराने आया हूँ |
( गेटकीपर ने श्री कृष्ण की शिष्ट भाषा को अनदेखा किया सामान्य समझ कर स्वभावानुसार बोला )
द्वारपाल – यहाँ आने के बाद किसी की ऐसे ही रिहाई नहीं होती है | क्या लाए हो ? यमलोक को कुछ दान–दक्षिणा चढाओ तो पता करता हूँ कि तुम्हारा आदमी यमलोक में है भी कि नहीं |
श्री कृष्ण – मूर्ख ! तुम मुझसे घूस माँग रहे हो | यहाँ घोर भ्रस्टाचार व्याप्त है, तुम्हारे यमलोक को तहस नहस कर दूँगा, तुम्हारे यमराज को पदच्युत कर दूंगा | तुम्हे प्रोटोकाल का ज्ञान नहीं है !!
गेटकीपर श्रीकृष्ण व दाऊ बलराम के आभामण्डल एवं कड़क आवाज से भयभीत हुआ और अपने को फंसता जानकर तुरन्त यमराज के पास पहुँचा एवं घूस माँगने की बात को छोड़ कर सभी कुछ वर्णित किया | यमराज को प्रोटोकाल का ज्ञान था | अपना सिंघासन ‘ऐसो आराम की जिन्दगी’ छीनता समझ वे भागकर गेट पर आये द्वार खुलवाया श्री कृष्ण व दाऊ बलराम को आपने कार्यालय में ले गये |
यमलोक एक विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ था | यह त्रिस्तरीय परकोटे से घिरा था | प्रत्येक परकोटे पर इन्फ्रारेड, अल्ट्रासाउंड व थर्मल किरणे सर्वदा फैली रहती थीं | कोई भी की जीवात्मा बिना आज्ञा यमलोक से बाहर नहीं निकल सकती थी | किसी भी प्रकार हलचल होने पर यमलोक कंट्रोल रूम को तुरन्त प्रेरणा होती थी | भू लोक की अपने-अपने माफियागिरी कला में प्रतिष्ठित जीवात्माओं को उनकी कला का लाभ यमलोक में मिला था | उनके द्वारा यमलोकवासियों के उठाते गिरते संकल्पों की मुखबिरी यमलोक की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूती प्रदान किया करती थीं |
वर्ष में एक दिन, छोटी दीपावली पर जनमानस द्वारा दिये गये दान के पुण्य का लाभ सीधे यमलोक को दिये जाने की व्यवस्था सतयुग में बनाई गई थी जो त्रेता व द्वापर युगों तक चलती आयी थी | जिससे यमलोक का वर्ष पर्यन्त कार्य चलता रहता था | परन्तु द्वापर के समापन व कलयुग के आगमन के संक्रमण काल में कलयुग का प्रभाव जनलोक के साथ-साथ यमलोक पर पड़ने लगा था | यमलोक में भ्रस्टाचार के बीज अंकुरित होने लगे थे | यमराज की प्रतिष्ठा पर कालिमा छानी शुरू हो गई थी | कलयुग के आगमन के प्रभाव को श्री कृष्ण की दूर दृष्टि भली भाति देख समझ रही थी |
एक अन्तःप्रेरणा पर यमराज आँखे बन्द करते हैं | समाधि लगती है और समाधिवस्था में अनागत काल कलयुग का इक्कीसवीं सदी का बारहवाँ वर्ष उनके सामने होता है | यमलोक निषिद्ध क्षेत्र नहीं रहा होता है | यमलोक धर्म लिपिबद्ध होकर जेल मैनुअल बन गया होता है | यमराज का पद गायब होकर जेल अधीक्षक में तबदील हो चुका है और यमलोक कारागार में | कारागार में जाना प्रतिस्ठा सूचक हो जाता है, जिसमे कुछ भूलोक वासी कर्मबल से सीधे यमलोक पहुँचने-घूमने-फिरने की पात्रता पा जाते हैं तो कुछ धन मंत्र की सहायता से | एक बूढ़ी औरत रामकली सन्तरी से..साहब हमारी मिलाई करा दो.. बहुत दूर से आयीं हूँ.. मेरा बेटा इस कारागार में बन्द है .. जल्दी गाड़ी पकड़ेगें तो घर समय से पहुँच जाऊँगी | सन्तरी, देख बूढ़ीया 1500 रूपये लाओ तो अभी मुलाकात करा देगें नहीं तो पर्ची कटवाओ 9 बजे से लाईन में लगो 12 बजे जेल अधीक्षक आयेंगे तब आदेश पर 2 बजे तक तुम अपने बेटे से मिल पाओगी | रामकली वहीं बैठ जाती है पर्ची वाले का इन्तजार करने लगती है | काफी सोचने विचारने के बाद फिर से सन्तरी के पास जाती है | साहब 1200 रूपये हैं .. इसी में हमको अपने गावँ जाना है .. बेटे को भी देना है..[………………………????................................…….]
बेटा तुम तो काफी दुबले हो गये हो | खाना-पानी नहीं मिलाता है क्या | नहीं माई कभी-कभी जब बाहर के लोग आते हैं तो ठीक रहता है नहीं तो माई दाल में बारह दाने आधी पकी रोटी कभी सब्जी मिलती है कभी नहीं मिलती | [. . गल्ला गोदाम व सम्बन्धित अन्य व्यवस्था .. . . . . . .]
साहब मुआयना करने चलना है आज । एक नंबरदार ने जैसे कुछ याद दिलाया। जेल अधीक्षक महिला बैरक में भ्रमण हेतु जाता है | प्रायश्चित कराकर भद्रलोक में जन्म लेने हेतु प्रेरित करने के बजाय एक कामुक नजर महिलाओं पर डालता है आंखे फैल जाती हैं एक गहरी सांस लेकर कुछ खोजने का उपक्रम करता है | तभी उसकी दृष्टि एक नवयौवना पर पड़ती है जो बुरे कर्मगति प्रभाव में कारागार भेजी गई होती है | वह उसके पास जाता है | हालचाल पूछने के बहाने उस नव युवती को कपड़े के भीतर से देखने की कल्पना करते हुए अपनी काम कुण्ठा का चक्षु खुराक से दमन करने का असफल प्रयत्न करता है | वह नवयौवना थोड़ी सकुचाती सी पीछे हटने की कोशिस करते हुए अपने साड़ी के पल्लू से चेहरा छुपाने का प्रयत्न करने लगती है। पीछे खड़ा सिपाही व अन्य उसकी अस्थिर भाव भंगिमा पर आपस में आँखों ही आँखों में मुस्कराते हैं | एक फुसफुसाता है .. अरे यह भी पिन्टू रँगीला है | [.................अधीक्षक का भ्रमण .??????................................]
[………… प्रशासनिक व्यवस्था …???????………. ]
[,,,,,,,,,,रहन-सहन…………… ??????????………। ]
[………चिकित्सा व्यवस्था …????????। ………।]
समाधिवस्था में हजारों वर्षो का समयखण्ड कुछ सेकेन्डो में ही व्यतीत हो जाता है | तन्द्रा भंग होती है |
यमराज – Sir, आपका सम्मान है, यहाँ आने का प्रयोजन कहें श्रीमान |
श्री कृष्ण – मेरे गुरु महर्षि संदीपन का चौदह वर्षीय पुत्र कहीं गायब हो गया है उसको सौंप दें मैं ले जाने आया हूँ |
यमराज – Sir, यह यमलोक अठारह वर्ष के ऊपर की आयु के अपराधियों के रखने के लिये आपके ही आदेश से बनी है | अठारह वर्ष से कम आयु के अपराधी यहाँ नहीं रखे जाते हैं |
श्री कृष्ण – तो वह कहाँ मिलेगा ?
यमराज – Sir, अठारह वर्ष से कम आयु के अपराधियों की जेलें अलग हैं | अवन्तिका क्षेत्र का बाल अपराधी एक अथाह जलराशि के मध्य शंख के आकार की बनी जेल ‘शंखलोक’ में सम्भवतः हो सकता है |
श्री कृष्ण – उसका अधिकारी कौन है ?
यमराज – Sir नाम तो नहीं मालूम है परन्तु आम बोल चाल में उसको शंखासुर कहते हैं |
[. . . श्री कृष्ण, दाऊ बलराम व यमराज तथा अन्य (१.. . . २. .. .. ३. .. .) की आने वाले युग में यमलोक की व्यस्था, भूमिका पर बात-चीत ]
( यमराज ने श्री कृष्ण व बलराम को ससम्मान विदा किया | श्रीकृष्ण शंखासुर से मिलने चल दिये |)
श्री कृष्ण – शंखलोक के गेट कीपर से अपना प्रयोजन बताया |
गेटकीपर – हाँ, यहाँ एक बालक तुम्हारे बतायेनुसार है लेकिन वह तुमको, बिना कुछ चढावा चढ़ाये, नहीं मिलेगा |
श्रीकृष्ण – देखो गेट कीपर जनमानस में तुम्हारे लोक की बुराईयां चर्चित हैं तुम अपने अधीक्षक शंखासुर को बोलो की वह मेरे गुरु महर्षि संदीपन के पुत्र को शांति से सौंप दे |
( गेट कीपर कुछ मिलने की आशा में टालमटोल करता है अन्ततः शंखासुर के पास पहुंचता है )
गेटकीपर – साहब एक दुष्ट किस्म का व्यक्ति गेट पर आया है और संदीपन के पुत्र को सौंपने को कह रहा है | कुछ ‘दे’ भी नहीं रहा है |
शंखासुर – चलो मैं देखता हूँ | यह कई क्षेत्रों की जेल है | मैंने बहुत देखें हैं उसके जैसे | बिना चढावा दिये कोई कार्य यहाँ नहीं होता है तुम तो अच्छी तरह से जानते हो मेरे खास आदमी हो |
(शंखासुर श्रीकृष्ण के सामने पहूँचता है )
शंखासुर - मुझे शंखासुर कहते हैं | मैं इस शंखलोक का मालिक हूँ | मैं जैसा चाहता हूँ यहाँ वैसा ही होता है | तुमने हमारे गेट कीपर से वाद-विवाद किया है तुम्हारा बालक तुमको नहीं मिलेगा | हाँ, कुछ धन-दौलत लाए हो तो बताओ, तो कुछ विचार किया जा सकता है |
श्रीकृष्ण – तुम्हे धर्मं का ज्ञान नहीं है, तुम इस लोक के मालिक नहीं हो तुम एक पदाधिकारी मात्र हो जो अधर्म के मार्ग पर चलने पर कभी भी हटाया जा सकता है | मेरे गुरु का पुत्र निर्दोष बन्द है उसको मुझे सौंप दो नहीं तो पदच्युत होने के लिये तैयार हो |
श्रीकृष्ण और शंखासुर का युद्ध होता है |
शंखासुर एक निरंकुश पदाधिकारी था | शंखलोक में चापलूसों से अवैध कमाई कराकर हडपा करता था | अपने चापलूसो को शंखलोक में जगह जगह तैनात कर रखा था | उनके अतिरिक्त किसी की बात को नहीं सुनना पसंद करता था | उसके अन्य कर्मचारी उससे रुष्ट रहते थे | शंखलोक का कभी निरिक्षण नहीं होता था | यदा-कदा कभी निरिक्षण हुआ भी तो वह अवैध कमाई के बल पर निरिक्षणकर्ता को पटा लेता अथवा ग्रूप C या D के कर्मचारियों को दण्डित कराकर अपना काम चला लेता था जिससे शंखासुर कभी पदच्युत नहीं हुआ था | श्रीकृष्ण से युद्ध के समय उसका किसी अन्य कर्मचारी ने साथ नहीं दिया | उसको दण्डित किया गया और चापलूसों सहित सजा भुगतने हेतु यमलोक भेजा गया |
सुयोग्य कर्मचारी को शंखलोक का अधीक्षण कार्य सौंप कर श्रीकृष्ण अपने गुरु पुत्र को लेकर महर्षि संदीपन के आश्रम की ओर चल दिये |