हिंदी: वैश्विक परिप्रेक्ष्य

भाषा, साहित्य और अनुवाद

हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन ने वैश्विक संदर्भ में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। दुनिया भर में कई विश्वविद्यालय हिंदी भाषा की शिक्षण-प्रशिक्षण प्रक्रियाओं व प्रविधियों पर महत्त्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वैश्वीकरण के बाद, दुनिया भर में हिंदी बोलने वालों की बड़ी संख्या के कारण, मीडिया और बाज़ार में भी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ी है, जिससे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता मिली है। आज जब एक ओर हम दुनिया की बड़ी आबादी द्वारा बोली जाने वाली इस भाषा की व्यापक स्वीकृति का जश्न मना रहे हैं, साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन की दुनिया में कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। किसी देश की साहित्यिक परंपरा की खोज विचार और विवाद की अनेक अंतर्धाराओं से लैस है। विश्व साहित्य भले ही सांस्कृतिक बहुलता व सर्वदेशीय साहित्यिक उपस्थिति को प्रस्तावित करता है किन्तु उसकी यूरोप केन्द्रित विचार सरणियाँ अन्य भाषाओं व साहित्य में पदानुक्रम स्थापित करती हैं जिससे वे 'नए साहित्य' को उचित रूप में प्रतिष्ठित करने में विफल हो जाती हैं। मानवतावादी, धर्मनिरपेक्ष आदर्श की ओट में यह सभी विविधताओं को समरूपता के ढाँचे में ढालने की कोशिश है। इसी तरह, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका आदि हिस्सों में रचित साहित्य की बारीक समझ के बजाय, वहाँ एक प्रकार का अकादमिक टोकनवाद दिखाई पड़ता है जो 'विश्व साहित्य' की श्रेणी में आवश्यक बदलावों की पेशकश नहीं कर पाया।

इस संदर्भ में हिंदी व उर्दू साहित्य से जुड़ी श्रेणियों का अध्ययन इस 'बदलाव' के विश्लेषण का प्रबल आधार बन सकता है। भारत में, क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य की तुलना में हिंदी साहित्य की जो विशिष्ट स्थिति है, वह उपमहाद्वीप में अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यिक-सांस्कृतिक वर्चस्व के कारण मद्धिम पड़ जाती है। इस दृष्टि से यह सोचना आवश्यक है कि विश्व साहित्य की श्रेणी में हिंंदी और हिंदी में होने वाले अनुवादों द्वारा हिंदी की स्थिति में क्या परिवर्तन संभव होगा।

इन्‍द्रप्रस्‍थ महाविद्यालय के अनुवाद और अनुवाद अध्‍ययन केंद्र में स्थित इस सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक दृष्टि को हिंदी भाषा और उसके साहित्य पर केन्द्रित करना है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे देखने, पढ़ने, और समझने के तरीके को बदला जा सके। इसके साथ ही विश्व साहित्य और हिंदी साहित्य के बीच अंतराल को पार करने में अनुवाद और अनुवाद अध्ययन की भूमिका को संबोधित करना भी है। इसके अलावा चूँकि पाठकीय पहुँच की दृष्टि से, विश्व साहित्य काफी हद तक अनुवाद और अनुवाद अध्ययन पर निर्भर करता है, ये सारे परिवर्तन यह माँग करते हैं कि अनुवाद की उत्तर-औपनिवेशिक अनुवाद अध्ययन की दृष्टि में भी परिवर्तन लाया जाए। यूँ भी वैश्विक स्तर पर अनुवाद, ज्ञान के स्रोत ग्रंथों, आर्थिक गतिविधियों और मीडिया के क्षेत्र में सामाजिक आदान-प्रदान का महत्त्‍वपूर्ण मंच बन गया है। दिल्ली, अनुवाद तथा साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। इस दृष्टि से, दिल्ली विश्वविद्यालय के सबसे पुराने महिला कॉलेज, इन्‍द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में सम्मेलन का आयोजन उसके अकादमिक महत्त्‍व को दर्शाता है।