Views- 13B

कलाकार : आर माधवन, नीतू चन्द्रा, सचिन खेड़ेकर, मुरली शर्मा, पूनम ढिल्लो, दीपक डोब्रियाल, मानव को डर लगता है तो उनसे वह दूर भागता है, लेकिन वही मानव पैसे खर्च कर सिनेमाघर में डरने के लिए जाता है। वह उम्मीद करता है कि उसे खूब डराया जाए, ताकि उसके पैसे वसूल हों। ’13 बी- फियर हेज़ ए न्यू एड्रेस’ इस मामले में कामयाब मानी जा सकती है। यह फिल्म न केवल कई जगह चौंकाती है, बल्कि डराती भी है। भारत में हमेशा हॉरर फिल्मों के नाम पर डरावने चेहरे, भूतहा महल, सफेद चादर या साड़ी में लिपटा हुआ भूत, अमावस की रातें दिखाई जाती हैं, लेकिन ये सब ’13 बी’ में नदारद है। यहाँ आम वस्तुएँ जैसे टीवी, बल्ब, लिफ्ट, मोबाइल फोन से डराया गया है। परिस्थितियों के जरिये डर पैदा किया गया है। मनोहर (आर. माधवन) अपने परिवार के साथ नए फ्लैट 13-बी में रहने के लिए आता है। उसका परिवार राजश्री प्रोडक्शन की फिल्मों में दिखाए जाने वाले परिवार की तरह खुशहाल है। घर की महिलाएँ टीवी धारावाहिकों की शौकीन हैं। वे नया धारावाहिक ‘सब खैरियत है’ देखना शुरू करती हैं। उस धारावाहिक में जो दिखाया जाता है, वो सब मनोहर के परिवार के साथ घटने लगता है। मनोहर का परिवार बिलकुल उस धारावाहिक के परिवार जैसा है।

पहले-पहले तो सब शुभ घटनाएँ होती हैं, लेकिन अचानक धारावाहिक के परिवार के साथ बुरा होने लगता है। ये देख मनोहर सहम जाता है। वो इस बात का पता लगाना चाहता है कि आखिरकार उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है? इस समानता के पीछे आखिर क्या राज है? फिल्म के मध्यांतर तक उन्होंने अजीबोगरीब घटनाओं के जरिये सस्पेंस बनाकर रखा है। मनोहर लिफ्ट में बैठता है, तो लिफ्ट नहीं चलती। पड़ोसी का कुत्ता उसके घर में घुसने से डरता है। घर में उसका जब मोबाइल से फोटो खींचा जाता है तो फोटो डरावना आता है। इन तमाम दृश्यों से उन्होंने दर्शकों को डराया गया है। फिल्म के दूसरे भाग में उन्होंने सस्पेंस परत-दर-परत खोला है कि आखिर वजह क्या है। फिल्म के इस हिस्से में जबरदस्त उतार-चढ़ाव, तनाव और भय है। कई दृश्य रोंगटे खड़े कर देते हैं। आमतौर पर हॉरर या सस्पेंस फिल्म का अंत कमजोर रहता है, लेकिन ’13 बी’ में यह कमी नहीं है। ऐसा क्यों हुआ है, इस बात का पूरा स्पष्टीकरण दिया गया है जो दर्शक को संतुष्ट करता है। विक्रम कुमार का प्रस्तुतिकरण उम्दा है और बाँधकर रखता है।कुछ कमियाँ भी हैं। दो गाने निर्देशक ने अधूरे मन से रखे हैं, जो कहानी में फिट नहीं बैठते। फिल्म की लंबाई भी ज्यादा है। आधा घंटा फिल्म छोटी होती तो एकदम कसी हुई लगती। टीवी धारावाहिक और जिंदगी में समानता वाली बात सिर्फ मनोहर ही महसूस करता है, परिवार का कोई और सदस्य यह महसूस क्यों नहीं करता, यह समझ के परे है। फिल्म में दिखाया गया है कि बच्चे घर के आँगन में एक फोटो एलबम गाड़ देते हैं। ऐसा क्यों करते हैं, इसका जवाब नहीं है। उसी जगह एक ऊँची बिल्डिंग बनती है, फिर भी एलबम जहाँ का तहाँ रहता है। लेकिन इन कमियों पर फिल्म की खूबियाँ भारी पड़ती हैं।

PRमाधवन, नीतू चन्द्रा, सचिन खेड़ेकर, धृतमान चटर्जी, मुरली शर्मा, दीपक डोब्रियाल और पूनम ढिल्लो ने अपना-अपना किरदार बखूबी निभाया है। पी.सी. श्रीराम ने कैमरे से कमाल दिखाया है। आमतौर पर हॉरर फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत ज्यादा लाउड होता है, लेकिन तब्बी-पारिक ने संतुलन बनाए रखा है। आप थोड़ा डरना चाहते हैं, चौंकना चाहते हैं तो ’13 बी’ आपके लिए है।