Bhilwara..............

राजस्थान के मैनचेस्टर के रूप में विख्ख्यात भीलवाड़ा

भीलवाड़ा। कभी कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक ट्रैक्टर कम्म्प्रेशर और बोरिंग मशीनों के लिए पहचाना जाने वाला भीलवाड़ा कस्बा आज टेक्सटाइल सिटी के रूप में राजस्थान का मैनचेस्टर बनकर समूचे भारत में प्रसिद्ध हो गया है। इसके अलावा विदेश में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है। यहां इलेक्ट्रोनिक क्षेत्र में काफी विकास हुआ है तथा शहर में विभिन्न प्रतिष्ठानों में सभी जरूरत की चीजें एक ही छत के नीचे उपलब्ध होने लगी है। हाल ही में शिक्षा जगत में जिले की प्रतिभाओं ने नए कीर्तिमान ïस्थापित कर देश में भीलवाड़ा का नाम रोशन किया है। यहां शिक्षा के लिए निजी व सरकारी शिक्षण संस्थान सेवाएं उपलब्ध करवा रहे हैं।

भीलवाड़ा जिला २५ डिग्री १Ó से २५ डिग्री ५८Ó उतरी अक्षांश और ७४ डिग्री १Ó से ७५ डिग्री २८Ó पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। इसकी पूर्वी और उत्तर पूर्वी सीमा बूंदी एवं टोंक जिले से, उतरी सीमा अजमेर जिले से, उतर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी सीमा उदयपुर जिले से और दक्षिणी तथा दक्षिण-पूर्वी सीमा चितौडग़ढ़ जिले से सटी है। पश्चिम से पूर्व तक जिले की अधिकतम लम्बाई१४४ किलोमीटर और उतर से दक्षिण में चौड़ाई १०४ किलोमीटर है। वर्ष २००१ की जनगणना के अनुसार जिले की कुल जनसंख्ख्या २०,०९,५१६ है, जो २००८ तक अनुमानत: २४ लाख को पार कर चुकी है। गर्म और शुष्क जलवायु के इस जिले में वर्षा का वार्षिक औसत ६०.३५ सेंटीमीटर है। अधिकतम वर्षा जुलाई और अगस्त माह में होती है। दिसम्बर और जनवरी के महीने अमुमन सर्वाधिक ठण्डे रहते हैं। इस दौरान माध्य तापमान न्यूनतम ७ डिग्री और अधिकतम २४ डिग्री के आसपास रहता है। सर्वाधिक गर्मी मई और जून माह में पड़ती है। इस दौरान दिन का माध्य तापमान ४० डिग्री और रात का माध्य तापमान २६ डिग्री तक रहता है। अधिकतम तापमान ४५ डिग्री तक भी पहुंच जाता है।

सन् १९३० में माइका, सोपस्टोन व अन्य खनिजों के लिए जाना जाने वाला भीलवाड़ा सन् १९३५ में मेवाड़ टेक्सटाइल मिल की स्थापना व मेवाड़ की जिनिंग फै$क्ट्री के कारण कपड़ा उद्योग का केन्द्र माना जाने लगा। सन् १९६२ में भीलवाड़ा उद्योग समूह के संस्थापक लक्ष्मीनिवास झुंझुनूवाला ने राजस्थान स्पिनिंग एण्ड विविंग मिल की स्थापना करके कपड़ा उद्योग की जो शुरुआत की, वो आज तक अबाध रूप से चल रही है तथा उसके कारण भीलवाड़ा एक कपड़ा उद्योग के प्रमुख केन्द्र के रूप में देश में ही नहीं विश्वभर में विख्यात हो चुका है।

औद्योगिक प्रगति की दृष्टि से देश में अपनी अलग पहचान रखने वाले भीलवाड़ा जिले में पर्यटन एवं दर्शनीय महत्व के प्राकृतिक, पुरातात्विक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों की भी कमी नहीं है।

भीलवाड़ा शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्राकृतिक परिवेश में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरणी महादेव में शिव मंदिर तथा अन्य देवालय है। मंदिर के पास ही एक छोटा जलाशय है। यहां की पहाडिय़ों में से एक की चोटी पर चामुण्डा माता का मंदिर व दूसरी पर लोक देवता देवनारायण का मंदिर बना है। शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है।

भीलवाड़ा शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर उदयपुर रोड पर पुर एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन कस्बा है। यहां के खूबसूरत दर्शनीय स्थलों में उडऩ छतरी, अधरशिला, पातोला महादेव, क्यारा का हनुमानजी आदि प्रमुख हैं। पुर के निकट की पहाडिय़ों की गोद में घाटारानी का प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर शक्तिपीठ है।

भीलवाड़ा शहर से लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर स्थित मेजा बांध शहरवासियों के लिए भ्रमण का प्रमुख स्थल है। भीलवाड़ा से आसीन्द-ब्यावर मार्ग पर तेरह किलोमीटर दूर माण्डल की पहाड़ी पर स्थित मीनारा, जगन्नाथ कछवाह की बतीस खम्भों की छतरी व विस्तृत पेड़ों से आच्छादित तालाब की पाल पर्यटन स्थल है। कोटा मार्ग पर भीलवाड़ा से चालीस किलोमीटर दूर त्रिवेणी संगम प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल है जहां बनास, मेनाली व बेड़च नदियों का संगम होता है। शिवरात्रि पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। भीलवाड़ा से ५४ किलोमीटर दूर माण्डलगढ़ कस्बे का विशाल दुर्ग के कारण बड़ा महत्व है। दुर्ग की तलहटी में विशाल और सुन्दर जलाशय है जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। भीलवाड़ा से ५५ किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध सिंगोली श्याम का पांच सौ वर्ष पुराना मंदिर है, जहां चैत्र माह में फूलडोल की अमावस्या पर विशाल मेला आयोजित होता है। कोटा रोड पर ऐतिहासिक मेनाल स्थित है, जहां पर विश्वभर के पर्यटक मंदिरों के मूर्ति शिल्प एवं जलप्रपात को देखने के लिए आते हैं। मेनाल से बीस किलोमीटर दूर बिजौलियां में मंदाकिनी मंदिर समूह व पाश्र्वनाथ अतिशय जैन तीर्थस्थल है। यहां प्राकृतिक चट्टानों पर ऐतिहासिक शिलालेख देखे जा सकते हैं। स्वतंत्रता सैनानी विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में यहां का किसान आंदोलन देशभर में प्रसिद्ध रहा है। बिजौलियां से पन्द्रह किलोमीटर दूर तिलस्वां महादेव तीर्थ है जहां के जलकुण्ड में स्ïनान करने व मिट्टी का लेप करने से कोढ़ भी दूर हो जाता है। मुख्यालय से पच्चीस किलोमीटर दूर बनेड़ा का विशाल दुर्ग व जलाशय पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।

शहर से पचपन किलोमीटर देवली मार्ग पर स्थित शाहपुरा अन्तरराष्ट्रीय रामस्ïनेही सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ,बारहठ परिवार की हवेली और विश्व विख्यात फड़ चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है। यहां आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित यज्ञ कुण्ड है। भीलवाड़ा से नब्बे कि.मी. की दूरी पर महाभारत कालीन यज्ञपुर है, जिसे वर्तमान में जहाजपुर के नाम से पुकारा जाता है। जहाजपुर को जन्मेजय के नाग यज्ञ की दाह स्थली भी माना जाता है। यहां घाटारानी शक्तिपीठ दर्शनीय है। भीलवाड़ा से पचपन किलोमीटर दूर गुर्जरों का विश्वविख्ख्यात महातीर्थ सवाईभोज है,जहां सवाईभोज देवनारायण व अन्य देवताओं के विशाल मंदिर बने हुए हैं। आसीन्द से बीस कि.मी. दूर बदनौर का ऐतिहासिक दुर्ग है तथा पास की पहाड़ी पर बैराठ माता का प्राचीन शक्तिपीठ है।

भीलवाड़ा पश्चिमी रेलवे के अजमेर-खण्डवा रेलमार्ग पर स्थित है और यहां से अजमेर, जयपुर,दिल्ली, अहमदाबाद और रतलाम के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। स्टेट हाइवे नम्बर चार पर स्थित भीलवाड़ा का सड़क मार्गों से पूरे देश के महानगरों से सीधा संम्बंध है।