II जय सोमनाथ II
ज्योतिषशास्त्र की प्रासंगिकता और सार्थकता
“यत् पिंड़े तत् ब्रम्हांडे। यत् ब्रम्हांडे तत् पिंड़े”
अर्थात जिन पंचतत्व से यह पिंड - मानवी शरीर बना है, वही पंचतत्व इस ब्रम्हांड के कण-कण में विद्यमान है। ब्रम्हांड की संरचना खगोलीय शास्त्र के आधार से जानी जा सकती है। किन्तु पिंड – मानवी शरीर और जीवन से संबंधित ज्ञान हेतु ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन क्रमप्राप्त है। पंचतत्व द्वारा निर्मित और संचालित इस शरीर और जीवन की जटिल संरचना और संभावना के अध्ययन हेतु ज्योतिषशास्त्र का आविष्कार कीया गया।
“ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते”
अर्थात ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है। वेदों को समझने के लिए ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि ज्योतिष की उत्पत्ति भी वेदों से ही मानी जाती है। ज्योतिष को काल-शास्त्र भी कहते है। इस सृष्टि को जानने हेतु इस शास्त्र की रचना की गई। प्रत्येक मानव का जीवन आरंभ से ही अनेक संभावनाओंसे घिरा होता है। हर मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके कर्मों की दिशा और दशा पूर्वनिर्धारित होती है। प्रकृति हर मनुष्य को कुछ विशेषताए प्रदान करती है। यह विशेषताए उस मनुष्य के कर्म बंधनों द्वारा उसके जीवित उद्देश्य के पूर्ति हेतु उसकी सहायक होती है। इन विशेषताओं को पहचानकर साधारण मनुष्य भी उसके उच्चतम फलित को प्राप्त कर सकता है। जीवन मे सफलता प्राप्त करने हेतु भी इस शास्त्र का प्रयोजन कीया गया है।
ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान सर्वप्रथम भगवान शिव द्वारा नंदी एवं सप्तर्षियों को दिया गया। उस उपरांत महर्षि भृगु ने ज्योतिषशास्त्र की रचना की।
मनुष्य जन्म प्राप्त होने उपरांत प्रत्येक जीव अपनी आत्मिक उन्नति के लिए प्रयत्नरत होता है। इस जीवनयात्रा मे उचित पथप्रदर्शन ज्योतिषशास्त्र द्वारा संभव है। सामान्य से सामान्य मनुष्य के जन्म समय में भी नक्षत्र, ग्रह और तारे कुछ असामान्य गुण और विशेषता उस मनुष्य को प्रदान करते है। यदि उन विशेषताओं के अनुरूप वह मनुष्य अपने कर्मक्षेत्र का चुनाव करता है तो सफलता निःसंशय अनुकूल होगी। विपरीत मार्ग के चुनाव पर असफलता निश्चित है। सफलता और असफलता एक ही सिक्के दो पहलू है। सफलता हेतु सक्षमता और असफलता उपरांत प्रयत्नों की पराकाष्ठा दोनों ही ज्योतिषशास्त्र की सहायता से सिद्ध किए जा सकते है। अपयश का स्वीकार करने हेतु एक बुनियादी तर्क और कारणमीमांसा भी सहायक होते है। किसी हारे हुए मन को नई आशा की किरण देने हेतु यह शास्त्र तत्पर है। असफलता से सफलता तक के मार्गक्रमण में यह शास्त्र सहायक सिद्ध है। किसी कमजोर मन को असफलता स्वीकार पुनःप्रेरित करने का सामर्थ्य ज्योतिषशास्त्र में है। शिवार्पणमस्तू... (compose by Gouri Likhitkar) Dt. 21/01/2024 7.01pm
II जय सोमनाथ II
ज्योतिष का यथार्थ और लाभ
शास्त्रोक्त पुराणों के अनुसार मानवीय जीवन के यथार्थ का ज्ञान प्राप्त करने हेतु ज्योतिषशास्त्र की रचना की गई। ज्योतिषशास्त्र के संदर्भ समग्र वेदों में पाए गए है। ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान पौराणिक कल से अस्तित्व में है। यह ज्ञान लगभग ७००० साल पुराना होने की संभावना व्यक्त की जाती है। ज्योतिष को प्रचलित रूप में आधुनिक ‘वेदिक ज्योतिष’ कहा जाता है जो की वैदिक ज्योतिष का अपभ्रंश है। प्राचीन शास्त्र देवता और ऋषीयों द्वारा विविध समय पर मनुष्यों का संसार में निर्वाह सुखकर करने हेतु प्रकट हुए ऐसी धारणा है।
अस्य शास्त्रस्य संबन्धो वेदांगमिति कथ्यते।
अभीधेयं च जगतः शुभाशुभनिरूपणम् ॥५॥
अर्थात : इस शास्त्र को वेदांग कहते है तथा यह संसार में होनेवाले शुभ-अशुभ घटनाओं के बारे में सूचित करता है।
ज्योतिषशास्त्र नव ग्रह, बारह राशियाँ, बारह भाव, २७ नक्षत्र, दशा और गोचर के आधार से प्रकट होता है।
नवग्रह : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, केतु, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो, हर ग्रह का अपना अपना एक स्वभाव और प्रभाव होता है। यह प्रभाव उसके कुंडली मे स्थान एवं राशि तत्व अनुसार भिन्न परिणाम देते है। यह प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक भी हो सकते है।
ज्योतिष नकारात्मक सितारों के बुरे प्रभाव को कम करने में मदद करता है और अच्छे ग्रहों द्वारा लाभ को द्विगुणित करता है। ज्योतिष का अर्थ ‘ज्योति + ईश’ विग्रह अनुसार ईश्वरीय ज्योति ‘ज्ञान’ प्रतीत किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र भविष्य का ज्ञान अवगत करने का शास्त्र होने की वजह से यह व्याख्या स्पष्ट एवं उजागर होती है।
ज्योतिषशास्त्र के सिध्दांत गणित – अंकशास्त्र / अंक ज्योतिष (Numerology), संहिता (हवामान शास्त्र, शकुन शास्त्र आदि) और होरा (राशि चक्र द्वारा आयुष्य में होने वाली घटनाओं का अंदाज लगाना) इस प्रकार तीन प्रमुख शाखाएं मानी जाती है।
अंक ज्योतिष अपने आप मे अलग शास्त्र हो कर भी ज्योतिषशास्त्र से जुड़ा है। अंक ज्योतिष में नौ ग्रहों को उनकी विशेषता अनुसार १ से ९ तक के अंको द्वारा निर्देशित किया जाता है।
अंक हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है और हमारे दैनिक जीवन और रिश्तों पर भी प्रभाव डालते है। अंकज्योतिष ज्योतिष का सरल एवं विश्वव्यापी रूप है।
अंकज्योतिष में जातक की जन्मतिथि के आधारपर मूलांक निकालकर भविष्य फल की गणना की जाती है। मूलांक, भाग्यांक और नामांक की सहायता से अंकज्योतिष में फलित का विश्लेषण किया जाता है।
जीवन में कुछेक अनुभवों के आधार पर लोग यह मानने लगते है की कुछ चीजें उनके लिए भाग्यशाली है। इन भाग्यशाली चीजों का उपयोग अपनी महत्वपूर्ण गतिविधियों के लिए करते है। इनमें यह भाग्यशाली दिन, तारीख, रंग, व्यक्ति या कुछ भी हो सकता है। अंकज्योतिष द्वारा हम इन भाग्यशाली चीजों का यथार्थ तर्कपूर्ण तरिके से समझ कर उनसे यथोचित लाभ उठा सकते है।
अंकज्योतिष संख्या, संख्याओं का संयोजन और किसी के जीवन में उनके अंतःक्रिया का अध्ययन है। व्यवसाय क्षेत्र में अंक ज्योतिष व्यवसाय के लिए सर्वोत्तम नाम चुनने मे सहायक हो सकता है। “दुनिया संख्याओ की शक्ति पर आधारित है” और व्यवसाय भी “संख्याओं” पर आधारित है।
व्यवसाय में संख्या ही निर्धारित करती है की आप अपने व्यवसाय में सफल हो रहे है या असफल! सकारात्मक ऊर्जा ही सकारात्मक परिणाम को आकर्षित करने की क्षमता रखती है।
आपके व्यवसाय के नाम में भी अगर यह सकरात्मकता विद्यमान हो तो यह ऊर्जा आपको बड़ी सफलता और लोकप्रियता दिला सकती है। एक तरहसे आपके व्यवसाय का नाम भी आपके व्यवसाय की नियति निर्धारित करता है तथा सफल स्थितियाँ और उत्कृष्ठ परिणाम सहित ऊंचाइयों को छूने में सहायक हो सकता है।
होरा अर्थात राशिचक्र के सहायता से आयुष्य संबंधित संभावनाओं का निष्कर्ष निकाल जीवन की उच्चतम संभावनाओं को सिद्ध किया जा सकता है। राशिचक्र के बारा भावों में नवग्रह अपनी उच्च-राशि, स्व-राशि, अधिमित्र राशि, मित्र राशि और सम ग्रह की राशि मे घटते क्रम से बली होते है। वे अपनी मूलत्रिकोण राशि मे भी प्रभावी होते है। अपने शत्रु, अधीशत्रु तथा नीच राशि मे वे उत्तरोत्तर क्षीण होते है।
शुभ ग्रह शक्ति प्राप्त होने से अधिक शुभ होते है, तो पाप ग्रह अधिक शक्तिशाली होने से अधिक पाप फल देने मे समर्थ होते है। भावगत ग्रहों के परिणामों को अनुकूल करने हेतु ज्योतिषशास्त्र में अनेक उपाय और चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन किया गया है। इन चिकित्सा पद्धतियों में ‘रत्न’ का प्रयोग प्रचलित तथा प्रभावशाली माना जाता है। प्राचीन काल से ही मनुष्य अपनी ग्रह बाधाओं को दूर कर उन्नति शिखर पाने हेतु रत्नों का प्रयोग करता आया है।
रत्न और ज्योतिष का आपस में गहरा संबंध है। रत्न सूर्य की किरणों को स्वयं में एकत्रित कर मानवी जीवन को प्रभावित करते है। सूर्य को नवग्रह का राजा एवं आत्माकारक माना जाता है। सूर्य की यह सकारात्मक ऊर्जा रत्नों के माध्यम से ग्रहों के दुष्प्रभाव को मिटाती है।
ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से हर एक ग्रह का एक प्रतिनिधि रत्न निर्धारित किया गया है। विभिन्न रत्न और उपरत्न रंग एवं रश्मियों को समाहित कर विशिष्ट ग्रहों को बल दे कर आलोकित करता है।
विभिन्न रत्नों को व्यक्ति की सूर्य राशि, चंद्र राशि, नाम राशि, ग्रहों की दशा-महादशा, घटनाक्रम तथा ग्रहों के प्राबल्य के अनुसार चुनाव कर धारण किया जाता है। जिस प्रकार वैद्यक शास्त्र में हर व्याधि के निवारण हेतु अलग उपचार पद्धति का अवलंबन किया जाता है, उसीप्रकार व्यक्ति की कुंडली अनुसार उचित रत्न का चयन महत्वपूर्ण है। एक उपयुक्त रत्न में आपकी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति होती है एवं यह आपके भाग्य का भी समर्थन करता है।
रत्नों की उपचारात्मक शक्तियां सर्वविदित है। सभी रत्न हर किसी के लिए भाग्यशाली नहीं होते। एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न दूसरे के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है।
व्यवसाय अथवा नौकरी में विशिष्ट पद प्राप्ति हेतु धारण किया गया रत्न व्यक्ति विशेष को पदोन्नति
हेतु कार्यक्षेत्र में अधिक व्यस्त और लिप्तता प्रदान करेगा, किन्तु परिणाम स्वरूपी परिवार और प्रियजनों से एक स्वाभाविक अलगाव भी इसका एक पार्श्व प्रभाव हो सकता है। संक्षेप में रत्नों का अंधाधुंद प्रयोग व्यक्ति के लिए कभी कभी दुर्भाग्य भी ला सकता है। रत्नों की चमत्कारिक शक्ति को सही तरीके से संयोजित करने हेतु किसी विशेषज्ञ और अनुभवी ज्योतिषी से सलाह लेकर ही रत्न धारण करना श्रेयस्कर है।
रत्न का प्रकार, रंग, वजन, आकार, रत्न की शुद्धता एवं उसे धारण करने की तिथि और विधि आदि
प्रमाणों पर भी रत्न के प्रभाव निर्भर करते है। विशिष्ट तिथि की घटिका पर विशिष्ट मंत्रों द्वारा सिद्ध किया गया रत्न यथोचित कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु सहायक सिद्ध होता है। प्राचीन आयुर्वेदिक शास्त्र भी इस बात से सहमति प्रकट करता है की, रत्न का प्रयोग मानवी जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार विभिन्न रत्नों की भस्म व पिष्टी का उपयोग विभिन्न बीमारियों में किया जाता है। आयुर्वेद के एक विद्वान का मत है की मानव शरीर पर यंत्र, मंत्र, औषधि तथा रत्न का समान रूप से प्रभाव पड़ता है। शिवार्पणमस्तू... DT.22 01 2024 12:5 PM