II जय सोमनाथ II
वैदिक ज्योतिष के अंतरंग और नक्षत्र
ज्योतिष की वैदिक प्रणाली में पृथ्वी पर होने वाले खगोलीय प्रभावों को समझने के लिए २७ नक्षत्रों को विस्तार से समझना आवश्यक है। / का प्रतिपादन करना आवश्यक है। नक्षत्रों की गहन संरचना समझने से पूर्व ‘नक्षत्र’ संज्ञा के संधि-उक्त को समझते है, “नक्ष + क्षेत्र” नक्श अर्थात आकाश – संक्षेप में नक्षत्र का अर्थ है आकाश का मानचित्र जिसे व्यावहारिक भाषा में आकाश का नक्शा भी कहा जा सकता है।
नक्षत्रों के बिना ज्योतिष उतना ही अधूरा है जितना आँखों के बिना मानव शरीर। यदि “ज्योतिष वेदों का नेत्र” है तो “नक्षत्र ज्योतिष के नेत्र” है।
२७ नक्षत्र एक तरह से जन्म के क्षण से लेकर मृत्यु तक की हमारी यात्रा का प्रतिनिधित्व करते है। प्रतिदिन के नक्षत्रों को देखकर हम आनेवाले कल को प्रभावपूर्ण तरीके से साध सकते है। जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मिल, किलोमीटर में नापने का नियम है उसी प्रकार आकाशीय मण्डल में चंद्र सूर्यादी ग्रहों की दूरी का मापदंड नक्षत्रों के चरणों से पता चलता है।
नक्षत्र से संबंधित विवेचन अथर्ववेद और वेदांग ज्योतिष विषयक ग्रंथों में किया गया है। भागवत पुराण के अनुसार नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रजापति दक्ष की पुत्रियाँ तथा चंद्रमा की पत्नियाँ है। चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों और घूम आता है। खगोल में चंद्रमा का यह भ्रमणपथ अलग अलग तारकापुंज से होकर गुजरता है। इन तारकापुंज को ही नक्षत्रों का नाम दिया गया है। From the diary of our Students, 24/01/2024 11.07am