इस रुद्राष्टाध्यायी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन, ब्राह्मण वरण, शिव पार्षदों के पूजन सहित विस्तृत शिव पूजन के उपरांत गणेश जी के ध्यान से प्रारम्भ कर पांच वेदिक मंत्रो, शिवसङ्कल्पसूक्त, पुरुषसूक्त, उत्तरनारायणसूक्त, अप्रतिरथसूक्त, मैत्रसूक्त, शतरुद्रिय, महच्छिर, जटा, यज्ञदैवत्य, शान्त्याध्याय एवं स्वस्ति प्रार्थना के साथ महाभिषेक सम्पूर्ण किया जाता है।
इस एकादशिनी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन, ब्राह्मण वरण, शिव पार्षदों के पूजन सहित विस्तृत शिव पूजन के उपरांत शतरुद्रिय एवं यज्ञदैवत्य के संयोजन (मिलाकर) कर ग्यारह आवृत्ति के साथ शान्त्याध्याय एवं स्वस्ति प्रार्थना से महाभिषेक सम्पूर्ण किया जाता है। जिसमें सो रुद्रो के मंत्रो से यज्ञ एवं यज्ञके साधानरूप जिन जिन वस्तुओं (मनोकामना) की आवस्यकता हो वे सभी फल इससे प्राप्त होते है
इस लघुरुद्र के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन, ब्राह्मण वरण, शिव पार्षदों के पूजन सहित विस्तृत शिव पूजन के उपरांत शतरुद्रिय एवं यज्ञदैवत्य के संयोजन (मिलाकर) कर ग्यारह आवृत्ति के साथ शान्त्याध्याय एवं स्वस्ति प्रार्थना आदि सम्पूर्ण एकादशिनी की ग्यारह आवृत्ति से पाठ या महाभिषेक सम्पूर्ण किया जाता है। यह लघुरुद्र अनुष्ठान एक दिन में 6 ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ या एक ब्राह्मण द्वारा ग्यारह दिनों में सम्पन्न किया जाता है। जिसमें सो रुद्रो के मंत्रो से यज्ञ एवं यज्ञके साधानरूप जिन जिन विषेश वस्तुओं (विषेश मनोकामना) की आवस्यकता हो वे सभी फल इससे प्राप्त होते है।
इस महारुद्र के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, शिव पार्षदों, अष्टमूर्ति, अष्टनाम, शिवपरिवार, एकादश रुद्र,मंडप पूजन सहित विस्तृत शिव पूजन के उपरांत सम्पूर्ण एकादशिनी की 121 आवृत्ति से पाठ या महाभिषेक सम्पूर्ण किया जाता है। यह महारुद्र अनुष्ठान 6 ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह दिनों में सम्पन्न किया जाता है। जिसमें सो रुद्रो के मंत्रो से यज्ञ एवं यज्ञके साधानरूप जिन जिन महत्वपूर्ण वस्तुओं (महत्वपूर्ण मनोकामना) की आवस्यकता हो वे सभी फल इससे प्राप्त होते है।
इस अतिरुद्र के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, शिव पार्षदों, अष्टमूर्ति, अष्टनाम, शिवपरिवार, एकादश रुद्र,मंडप पूजन सहित विस्तृत शिव पूजन के उपरांत सम्पूर्ण एकादशिनी की 1331 आवृत्ति से पाठ या महाभिषेक सम्पूर्ण किया जाता है। यह अतिरुद्र अनुष्ठान 61 ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह दिनों में सम्पन्न किया जाता है। जिसमें सो रुद्रो के मंत्रो से यज्ञ एवं यज्ञके साधानरूप जिन जिन दुर्लभ वस्तुओं (दुर्लभ मनोकामना) की आवस्यकता हो वे सभी फल इससे प्राप्त होते है।
इस नवदुर्गा के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, सहित विस्तृत नवदुर्गा पुजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ, बटुक, कुमारी पूजन और यज्ञ, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ कर नवमी तक सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार नवदुर्गा को जानकर सुसमाहित होकर जो करता है उस पर देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और उसे समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करती हैं।
इस शतचण्डी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, असङ्ख्यातरुद्र, मंडप पूजन सहित विस्तृत महिषमर्दिनी पूजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ की 100 आवृत्ति, बटुक, कुमारी पूजन एवं यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। यह शतचण्डी अनुष्ठान 11 ब्राह्मणों द्वारा 5 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस सहस्रचण्डी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, असङ्ख्यातरुद्र, मंडप पूजन सहित विस्तृत महिषमर्दिनी पूजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ की हजार आवृत्ति, बटुक, कुमारी पूजन एवं यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। यह सहस्रचण्डी अनुष्ठान 101 ब्राह्मणों द्वारा 5 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस दशसहस्रचण्डी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, असङ्ख्यातरुद्र, मंडप पूजन सहित विस्तृत महिषमर्दिनी पूजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ की दसहजार आवृत्ति, बटुक, कुमारी पूजन एवं यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। यह दशसहस्रचण्डी अनुष्ठान 1001 ब्राह्मणों द्वारा 5 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस लक्षचण्डी के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, वास्तुपीठ, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, असङ्ख्यातरुद्र, मंडप पूजन सहित विस्तृत महिषमर्दिनी पूजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ की एक लाख आवृत्ति, बटुक, कुमारी पूजन एवं यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। यह लक्षचण्डी अनुष्ठान 10001 ब्राह्मणों द्वारा 5 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस कालरात्रि के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, सहित विस्तृत नवदुर्गा पुजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ,बटुक, कुमारी पूजन और यज्ञ, कृष्ण पक्ष की षष्ठी से आरम्भ कर चतुर्दशी तक सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार कालरात्रि को जानकर सुसमाहित होकर जो करता है उस पर देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और महाकाल (मृत्यु तुल्य कष्ट) के द्वारा उत्पन्न दुःख को कालरात्रि दूर कर देती है।
इस नवदुर्गा के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, सहित विस्तृत नवदुर्गा पुजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ, बटुक, कुमारी पूजन और यज्ञ, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ कर मासपर्यन्त सम्पन्न किया जाता है। यह नित्यचण्डी धन, पुत्र और यश देने वाली तथा महारोगों को विनष्ट करने वाली है। यह महाभय, महादुःख को नष्ट कर सुखों को देने वाली है।
इस वार्षिक नवरात्रि के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, सहित विस्तृत नवदुर्गा पुजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ, बटुक, कुमारी पूजन और यज्ञ, चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ कर नवमी तक सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार वार्षिक नवरात्रि को जानकर सुसमाहित होकर जो करता है उस पर देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और उसे समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करती हैं।
इस शारदीय नवरात्रि के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, योगिनीपीठ, क्षेत्रपालपीठ, नवग्रहपीठ, सहित विस्तृत नवदुर्गा पुजन के उपरांत कवच, अर्गला, कीलक, त्री-रहस्य, नवार्ण जप सहित त्री-चरित्र सम्पूर्ण सप्तशती पाठ, बटुक, कुमारी पूजन और यज्ञ, आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ कर नवमी तक सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार शारदीय नवरात्रि को जानकर सुसमाहित होकर जो करता है उस पर देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और उसे समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करती हैं।
इस रामायण के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, तुलसीदासजी, वाल्मीकिजी, शिवजी, हनुमान, सपत्नी लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत पूजन सहित विस्तृत सिता-राम पूजन के उपरांत रामायण पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह रामायण एक दिन में 5 ब्राह्मणों का वरण करके सम्पन्न किया जाता है।
इस रामायण के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, तुलसीदासजी, वाल्मीकिजी, शिवजी, हनुमान, सपत्नी लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत पूजन सहित विस्तृत सिता-राम पूजन के उपरांत रामायण पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह रामायण एक ब्राह्मण द्वारा 9 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस रामायण के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, ब्राह्मण वरण, तुलसीदासजी, वाल्मीकिजी, शिवजी, हनुमान, सपत्नी लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत पूजन सहित विस्तृत सिता-राम पूजन के उपरांत रामायण पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह रामायण एक ब्राह्मण द्वारा 30 दिनों में सम्पन्न किया जाता है।
इस भागवत के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, ब्रह्मादि, पौराणिक, व्यास, सप्तचिरंनजीवी, शेषादि, नवग्रहपीठ, गुरु, शुकदेव, नारद, भागवत एवं स्तम्भ पूजन सहित विस्तृत लक्ष्मी नारायण पूजन के उपरांत भागवत पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह भागवत अनुष्ठान एक दिन में 9 ब्राह्मणों का वरण करके सम्पन्न किया जाता है।
इस भागवत के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, ब्रह्मादि, पौराणिक, व्यास, सप्तचिरंनजीवी, शेषादि, नवग्रहपीठ, गुरु, शुकदेव, नारद, भागवत एवं स्तम्भ पूजन सहित विस्तृत लक्ष्मी नारायण पूजन के उपरांत भागवत पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह भागवत अनुष्ठान 7 दिन में 5 ब्राह्मणों का वरण करके सम्पन्न किया जाता है।
इस भागवत के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, ब्रह्मादि, पौराणिक, व्यास, सप्तचिरंनजीवी, शेषादि, नवग्रहपीठ, गुरु, शुकदेव, नारद, भागवत एवं स्तम्भ पूजन सहित विस्तृत लक्ष्मी नारायण पूजन के उपरांत भागवत पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह भागवत अनुष्ठान 15 दिन में 5 ब्राह्मणों का वरण करके सम्पन्न किया जाता है।
इस भागवत के अंतर्गत स्वस्ति वाचन, देवस्तुती से प्रारम्भ कर गणेश अम्बिका पूजन सहित गणेशपीठ पूजन, पुण्यवाचन, ब्राह्मण वरण, नान्दीश्राद्ध, ब्रह्मादि, पौराणिक, व्यास, सप्तचिरंनजीवी, शेषादि, नवग्रहपीठ, गुरु, शुकदेव, नारद, भागवत एवं स्तम्भ पूजन सहित विस्तृत लक्ष्मी नारायण पूजन के उपरांत भागवत पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह भागवत अनुष्ठान 30 दिन में 5 ब्राह्मणों का वरण करके सम्पन्न किया जाता है।