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तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायाश्च मस्तके।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जनस्य तत्॥४३॥
अन्वयः-
तक्षकस्य विषम् दन्ते च मक्षिकायाः मस्तके वृश्चिकस्य विषम् पुच्छे तत् दुर्जनस्य सर्वाङ्गे।
अनुवादः-
तक्षक (सर्प) का विष दांत में [होता है], मक्खी का विष सिर में, बिच्छू का विष पूंछ में। दुष्टों का वह (विष) सारे शरीर में [होता है]।