“डॉ निर्मला श्रीवास्तव” जी मां है। इनकी ज्ञान और शिक्षाएं तथा उच्च मानव जीवन जीवन मूल्यों ने हमें प्रोत्साहन दिया और हम कहेंगे कि इनके मार्गदर्शन के बिना शायद यह पाना संभव ही ना हो पाता, इनके प्यार और ममता में व्यवहार के कारण सभी इनको प्यार से “श्री माताजी” बुलाते है। उनका पूरा जीवन औरों के लिए प्रेरणा से भरा हुआ है। इनका संबंध बड़े घनिष्ट परिवार से है। जहां इनके पिताजी 14 भाषाओं के ज्ञाता थे। और उन्होंने कुरान को भी मराठी भाषा में अनुवाद (Translate) किया था। वहीं इनके माताजी भारत की प्रथम महिला थी। जिन्हें गणित में स्नातक डिग्री (Mathmatics Degree in Honours) प्राप्त हुई थी। परिवार के बहुत सारे सदस्यों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। श्री माताजी ने स्वयं भी “भारत छोड़ो आंदोलन” में गांधी जी के साथ भाग लिया था। तब इनकी आयु महज 19 वर्ष की थी। इनका परिवार का संबंध शालीवाहन वंश से है। 1947 में इनका विवाह श्री चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव जी से हुआ, जो कि पेशे से एक (IAS) प्रशासनिक अधिकारी के पद पर थे। और वह श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के संयुक्त सचिव (Joint Secretary) थे
श्री माता जी ने अपनी दोनों बेटियां की शादी के बाद अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से निवृत्त हो कर 1970 में अपना आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की और 100 से अधिक देशों में लोगों को आध्यात्मिकता का ज्ञान दिया और विदेशों से भी इनको कई तरह के सम्मान तथा मान्यताएं प्राप्त हुई (Honors & Recognitions) और इनके Teachings का अनुसरण करने वाले 100 से भी अधिक देशों में है। और इनकी शिक्षाओं को बिना किसी शुल्क से लोगों तक पहुंचा रहे है। इनका आध्यात्मिक जीवन बहुत ही सरल था इन्होंने कभी भी अपने परिवार को अपने आध्यात्मिक जीवन में आने के लिए विवश नहीं किया और हमेशा अपने निजी जीवन से अपने आध्यात्मिक जीवन को अलग रखा। श्री माताजी ने अपने जीवन काल में ही कई स्कूल अस्पताल, गरीब महिलाओं तथा बच्चों के लिए आश्रम बनवाए और भारतीय संगीत विद्यालयों को शुरू किया, यह भारतीय संस्कृति और संगीत से बहुत ही प्रभावित थे। इनका स्वयं का जीवन देश प्रेम और उच्च मर्यादाओं से भरा हुआ था और इसी की शिक्षा ही इन्होंने सभी को दी मानव जाति को दिए गए इनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए हम इनको शत् शत् नमन करते है।