हिंदी व्याकरण | HINDI VYAKARAN
( CBSE BASED )
HINDI GRAMMAR ( हिंदी व्याकरण ) को समझने से पहले हमें हिंदी का विशेष परिचय प्राप्त करना होगा। भाषा व्यवहार अनेक रूपों में होता है। हम अपनी क्षेत्रीयता, सामाजिक वर्ग-भेद और शिक्षा में बँधकर ही भाषा व्यवहार का प्रयोग करते हैं। जैसे-पत्र-पत्रिकाओं में, औपचारिक वार्तालाप में, पुस्तकों में इसी हिन्दी का प्रयोग किया जाता है। लॉग (भाषा व्यवस्था) कुछ निश्चित क्षेत्रों में अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। भाषा का व्यावहारिक रूप पारोल कहलाता है।
जितना एक विशेष संदर्भ और परिस्थिति में संप्रेषण को सम्पन्न करने की अभिलाषा को महत्त्व दिया जाता है, उतना भाषा की मानकता को महत्त्व नहीं दिया जाता। भाषा के दोनों रूप प्रत्येक भाषा समुदाय में होते हैं। भाषा व्यवहार से संबंधित भाषा रूपों का प्रयोग अनौपचारिक परिस्थिति के संदर्भ में किया जाता है, जबकि भाषा व्यवस्था में बंधे भाषा रूप का प्रयोग औपचारिक परिस्थितियों में किया जाता है।
समाज के सदस्यों के पास खुद को व्यक्त करने के लिए भाषा के कई रूप होते हैं ताकि वे किसी को भी अपनी राय व्यक्त कर सकें; बुजुर्गों के साथ किसी और भाषा का प्रयोग, मित्रों के साथ किसी और प्रकार की भाषा का प्रयोग, अपने भाई-बहनों के साथ किसी अन्य प्रकार की भाषा का प्रयोग आदि।भाषा व्यवस्था और भाषा व्यवहार इन दोनों का प्रयोग समयानुसार और आवश्यकतानुसार करना होता है।
मानव मस्तिष्क में किसी भी प्रकार की भाषा को ग्रहण करने की अतुलनीय क्षमता होती है। हमारा मस्तिष्क किस समय, कहाँ, कब, किससे, किस भाषा का प्रयोग करना है, सहजता से निर्णय कर लेता है। भाषा-भण्डार ही मनुष्य मस्तिष्क की अद्भुत क्षमता है। भाषा-विज्ञान के चिन्तक चामस्की ने भी व्यवस्था को भाषा का आदर्श माना .
अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि रचनात्मक इकाइयाँ पूर्ण रूप से व्याकरण के नियमों से आबद्ध होती हैं, इसलिए आधुनिक भाषा को संरचनात्मक इकाइयों के माध्यम से दो भागों में विभक्त करने का प्रयास किया गया है
1. व्यवस्था के आधार पर -
(i) मानक भाषा;
(ii) व्याकरणसम्मत भाषा;
(iii) औपचारिक भाषा तथा
(iv) परिनिष्ठित भाषा
2. व्यवहार के आधार पर -
(i) सामाजिक शैली;
(ii) क्षेत्रीय शैली;
(iii) प्रयोजनमूलक शैली और
(iii) मिश्रित शैली
सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण | HINDI GRAMMAR
विषय सूची
भाषा की अत्यधिक लघु इकाई ध्वनि को माना जाता है। भाषा वस्तुतः ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है। भाषा विज्ञान में ध्वनि की संरचना को निम्न प्रकार से विश्लेषित किया गया है जब ध्वनि का उच्चारण वाक् यंत्र के अंतर्गत करते हैं, तो उसे उच्चारणिक पद्धति कहा जाता है। जब भी कभी ध्वनि को उच्चारित किया जाता है, उसका अपना अलग महत्त्व होता है। सुनने और वहन करने से भी ध्वनियों का संबंध स्थापित किया जाता है। जैसे सर्वप्रथम हमारे कानों के द्वारा ध्वनि को सुना जाता है।
हमारे मस्तिष्क पर उसके पश्चात उस ध्वनि की प्रतिक्रिया होती है। अतः मस्तिष्क के द्वारा उस कार्य को पूर्ण किया जाता है। ध्वनि संरचना को समझने के लिए ध्वनियों का वर्गीकरण करना अत्यधिक आवश्यक है। भाषा की प्रत्येक ध्वनि स्वर और व्यंजनों के योग से बनती है . LEARN MORE
वाक्यों के द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकट करता है। मनोभाव कभी इच्छा प्रकट करने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, तो कभी आज्ञा के लिए, कभी प्रश्न पूछने के लिए, तो कभी विस्मयादि को प्रकट करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इस प्रकार अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए जो वाक्यों का सहारा लेना पड़ता है, उसे वाक्य का अर्थ कहा जाता है; जैसे -
1. क्या मैं जाऊँ?
2. एक गिलास ठंडा पानी लाओ।
3. वाह! क्या सुंदर दृश्य है।
उपर्युक्त वाक्यों में पहला वाक्य सामान्य विधान को प्रकट कर रहा है। दूसरे वाक्य में आज्ञा देने का प्रयोजन सिद्ध हो रहा है और तीसरे वाक्य भावनाओं को व्यक्त करता है। इस प्रकार इन सभी वाक्यों के माध्यम से और इन वाक्यों के अर्थ के माध्यम से हमारी भावनाओं को व्यक्त किया जाता है और इन वाक्यों के अर्थ के माध्यम से वाक्य के भेद किये गये हैं - LEARN MORE
कोई शब्द जब स्वतंत्र रूप से आता है और शब्दकोशीय अर्थ देता है, तो उसे 'शब्द' कहा जाता है; जैसे ‘बस’, ‘भला’ आदि। इन्हीं शब्दों को जब वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तो वह पद कहलाता है। पद कई प्रकार के घटकों से वाक्य से जुड़ा रहता है। वाक्य के अनुसार ही शब्द का अर्थ स्पष्ट होता है। पद से आबद्ध होकर जिस वाक्य का निर्माण होता है, तो उसे 'पदबंध' कहा जाता है। पदबंध का वाक्य में अपना अलग ही स्थान होता है। उपवाक्यों का निर्माण पदबंधों के साथ मिलकर होता है।
वाक्य में कुछ इस प्रकार के भी व्याकरणिक प्रकार्य देखे जाते हैं, जो पदबंध को समुचित रूप से पूर्ण करते हैं। वाक्य के अंतर्गत ही पदबंधों का अस्तित्व निहित होता है। इसके अभाव में पदबंधों की कोई महत्ता नहीं होती। पद यदि शब्द माने जाते हैं, तो शब्द समूह पदबंध माना जाता है। इसलिए पदबंध भी उतने ही प्रकार के होते हैं, जितने प्रकार के पद होते हैं। पदबंध में हमेशा एक से अधिक घटक होते हैं। LEARN MORE
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के किसी अन्य शब्द से उसका संबंध प्रकट होता है, कारक कहलाता है। जो प्रत्यक्ष रूप से क्रिया से संबंधित होता है। कारक चिह्न अव्यय या सम्बन्ध के सूचक होते हैं।
कारक चिह्नों को 'विभक्ति' या 'परसर्ग' भी कहते हैं। LEARN MORE
देवनागरी चार भाषाओं में लिखी गई है: संस्कृत, हिंदी, मराठी और नेपाली, जिसका रूप भारत में 9वीं शताब्दी से पहले स्थापित हुआ था, और समय के साथ इसके प्रतीक धीरे-धीरे बदलते गए।
दसवीं शताब्दी में आकर देवनागरी लिपि के चिह्नों में काफी स्थिरता आने लगी। ग्यारहवी शताब्दी की नागरी लिपि आज की नागरी लिपि से काफी मिलती-जुलती हैं।बारहवी शताब्दी तक आते-आते देवनागरी लिपि के चिह्नों का स्वरूप काफी हद तक स्थिर हो गया LEARN MORE
हिंदी सीखने के दौरान हमें बारहखड़ी को सीखना बहुत ही अनिवार्य है, क्योकि इसके बिना हमें हिंदी भाषा के उच्चारण में बाधा उत्पन्न हो सकती है । ये हिंदी भाषा अधिक सुगम व् बोधगम्य बना देती है । LEARN MORE
विलोम शब्द का पूर्ण परिचय हमें होना अनिवार्य है । इस अभ्यास में आप अनेकों शब्दों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जो ज्ञान व् परीक्षा की दृस्टि से महत्वपूर्ण है। LEARN MORE
300+ मुहावरे और लोकोक्तियों का संग्रह आप यहाँ पढ़ सकते है। ये हमारे वाक्य के सौंदर्य को बढ़ाने में बहुत ही अनोखी भूमिका निभाते हैं।
ये मुहावरे अर्थ और वाक्य सहित हैं। LEARN MORE
हिंदी भाषा में पर्यायवाची शब्द का बहुत महत्व है, जब एक ही शब्द के कई रूप दिखाई दे पर उनके अर्थ सामान हो उन्ही शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं ।
पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता होने पर भी प्रत्येक पर्यायवाची शब्द का विशेष अर्थ होता है। इसलिए इनका प्रयोग एक-दूसरे के बदले प्रायः नहीं होता। इनका प्रयोग वाक्य के भाव और संदर्भ के अनुसार होता है।
हिंदी भाषा में पर्यायवाची शब्द पर्याप्त मात्रा में हैं क्योंकि इसमें संस्कृत, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के शब्द भी हैं। 150+ प्रमुख पर्यायवाची शब्द - LEARN MORE
हिंदी में, संपूर्ण लिंग निर्णय लेना कठिन है। इसके लिए कोई संपूर्ण और पूर्ण नियम नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनके लिए किसी भाषा के विशिष्ट व्यवहार का कोई आधार नहीं है। तथापि हिन्दी में लिग निर्णय दो प्रकार से किया जा सकता है-
(1) शब्द के अर्थ से और (2) उसके रूप से बहुधा प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार और अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग रूप के अनुसार निश्चित करते हैं। शेष शब्दों का लिंग केवल व्यवहार के अनुसार माना जाता है - LEARN MORE
संज्ञा वे शब्द हैं जो किसी व्यक्ति, प्राणी, वस्तु, स्थान, भाव आदि के नाम के रूप में प्रयुक्त होते हैं। जैसे- राकेश, घोड़ा, गंगा, हैदराबाद, सेब, मेज, चौड़ाई, बुढ़ापा आदि।
निम्नलिखित से संज्ञा पदों को पहचाना जा सकता है -
1. कुछ संज्ञा पद प्राणिवाचक होते हैं और कुछ अप्राणिवाचक । प्राणिवाचक हैं – बच्चा, भैंस, चिड़िया, आदमी, राकेश और अप्राणिवाचक हैं-किताब, मकान, रेलगाडी रोटी, पर्वत आदि।
2. संज्ञा के कुछ ऐसे शब्द होते हैं जो हम आसानी से गिन या उनकी संख्या को ज्ञात कर पाएंगे। जैसे - किताब, रोटी, केला, आदि। पर कुछ ऐसी संज्ञाएँ है जो हम बिलकुल ही गिनती के श्रेणी में नहीं रख सकते अर्थात उनको गिनना असंभव है। जैसे - पानी, तारे, हवा आदि अगणनीय संज्ञाएँ हैं। LEARN MORE
वाकय में कभी - कभी हम ऐसे शब्दों को देखते हैं जो किसी की विशेषता का बोध करते है और मूलतः वे शब्द संज्ञा या सर्वनाम ही होते हैं जिनकी विशेषता बताती जा रही होती है।
विशेषण और विशेष्य - विशेषण जिसकी विशेषता प्रकट करता है, उसे विशेष्य कहते हैं। जैसे-'मोटा लड़का में' मोटा विशेषण है और लड़का विशेष्य है।
याद रखें कि विशेषण विशेष्य के साथ दो प्रकार से जुड़ा हो सकता है—
(क) विशेषण- विशेष्य से पहले- जैसे परिश्रमी विद्यार्थी ।
(ख) विशेषण-विशेष्य के बाद, जैसे - यह विद्यार्थी परिश्रमी है।
प्रविशेषण- जो शब्द विशेषण की विशेषता प्रकट करता है, उसे प्रविशेषण कहते हैं। जैसे-माता का हृदय अत्यन्त कोमल होता है। इस उदाहरण में हृदय का विशेषण कोमल और कोमल का विशेषण अत्यन्त है। इसलिये अत्यन्त प्रविशेषण है।
विशेषण को विस्तार से सरल भाषा में समझें - LEARN MORE
सर्वनाम शब्द वे शब्द होते हैं जो संज्ञा के बदले प्रयोग किये जाते हैं। जैसे - तुम , वे , तुमको, हमको, इनको आदि ।
सम्पूर्ण सर्वनाम को बेहद ही आसान भाषा में यहाँ समझे - LEARN MORE
जिस पद से किसी कार्य के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं।
दौड़ता है, खाता है, पढ़ता है, लिखा, पढ़ा, किया, पढ़ेगा, करेगा, जाएगा, है, हैं, हूँ क्रियापद हैं।
दौड़ता है, खाता है, पढ़ता है आदि क्रियाओं का सामान्य रूप 'दौड़ना', 'खाना', 'पढ़ना' है।
इनमें से 'ना' निकाल देने पर जो रूप रह जाता है, उसे धातु कहते हैं। जैसे-दौड़, खा, पढ़। LEARN MORE
वाक्य में मुख्य उपवाक्य की क्रिया ही मुख्य क्रिया होती है। वाक्यों में आए आश्रित उपवाक्यों का आरंभ अधिकांशतः समुच्चयबोधक शब्दों से होता है। जैसे—जिसने, कि, जिन्हें, जिसमें, जो, जिसको, जहाँ, जब, तो, अगर, तो, क्योंकि, यदि, परंतु, तब आदि।आश्रित उपवाक्य वाक्यों के आरंभ, मध्य या अंत में भी आते हैं। LEARN MORE
'समास' शब्द का अर्थ है- पास रखना, छोटा करना। भाषा के प्रयोग में सामासिक शब्दों के प्रयोग से संक्षिप्तता और शैली में उत्कृष्टता एवं सटीकता आती है। उदाहरण के लिए 'राजा का महल' कहने के स्थान पर 'राजमहल' कहना अधिक उपयुक्त होगा। इससे स्पष्ट है कि दो से अधिक शब्दों के मिलने पर ही सामासिक शब्दों का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में दो पदों के बीच आने वाले कुछ व्याकरणिक शब्दों का लोप करने से दोनों पद पास-पास आ जाते हैं। LEARN MORE
अलंकारों का प्रयोग कविता में किया जाता है। इनसे कविता के सौंदर्य में अभिवृद्धि होती है। 'अलंकार' शब्द के अर्थ सौंदर्य की वृद्धि करने वाला होता है। सुंदर नारी आभूषणों को पहनकर और सुंदर लगती है।
इसी प्रकार कविता में अलंकारों के प्रयोग से उसकी सुंदरता में और वृद्धि हो जाती है। LEARN MORE
Hindi grammar ( व्याकरण ) के ज्ञान से भाषा का कोई व्यक्ति अपनेउच्चारण को शिष्ट, मानक और अधिक ग्राह्य बना सकता है। शब्द स्तर पर शब्द का वर्गीकरण, शब्द का भंडार और उसकी रचना आती है, किंतु वाक्य के अंतर्गत प्रयुक्त होने पर शब्द पद का रूप ग्रहण कर लेता है। इसलिए पद व्यवस्था में शब्द और पद दोनों स्तरों पर विवेचन करने से भाषा की प्रक्रिया स्पष्ट हो जाती है। इसके साथ ही एक भाषा को जानने वाला व्यक्ति दूसरी भाषा का व्याकरण जानकर उसे शीघ्रता और शुद्धता से सीख लेता है। इस प्रकार भाषा के मानक रूप का ज्ञान प्राप्त करने, उसका सही प्रयोग करने तथा भाषिक तत्त्वों का विश्लेषण करने में व्याकरण हमारी सहायता करता है।
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