परमात्मा ज्ञान के सागर हैं I रचता और रचना का सारा ज्ञान परमात्मा में समाया है I मनुष्य आत्मायें ज्ञान/जानकारी अपने इन्द्रियों (आँख, कान, नाक, इत्यादि) के आधार पर करती हैं I होने और दिखने मैं काफी फर्क होता है I इन्द्रियों के आधार पर ज्ञान प्राप्ति भ्रम को जन्म देता है, क्योंकि भावनात्मक तौर पर किए गए निर्णय अक्सर गलत निष्कर्ष का कारण बन जाते हैं I लोग ऐसा मानने लगते हैं कि जो दिखता है, और जो होता है वो एक ही है I उन्हें ऐसा भी लगता है कि “प्रतीक” ही सीधे रूप में सत्य हैI यह भ्रम की स्थिति हैI
दो मुख्य बाते हैं “सद्गति” और “दुर्गति” I सद्गति का अर्थ मोक्ष ही समझा गया है जबकि दुर्गति का अर्थ है पतन ( चरित्र का गुणों का)I हालांकि सद्गति का वास्तविक अर्थ है स्वयं को पहचान परमात्मा की याद से अपने वास्तविक घर का परिचय प्राप्त होना और दुर्गति का अर्थ है उस मार्ग से दूर रहना I लक्ष्य की प्राप्ति ही सभी प्रश्नों का उत्तर है I सद्गति के लिए ज्ञान सागर परमात्मा से ज्ञान की प्राप्ति होना अत्यावश्यक है I इसे स्वयं अपने इन्द्रियों के आधार पर प्राप्त कर पाना असंभव है क्योंकि यह ज्ञान भौतिक नहीं, अति सूक्षम है I इसे अंग्रेजी में मेटा- फिजिकल (METAPHYSICAL) कहते हैं I इन्द्रियों के अवलोकन के आधार पर आत्मा, परमात्मा और सृष्टि चक्र कैसे चलता है इस बात को जान पाना असंभव है क्योंकि यह ज्ञान देह और देह की दुनिया से परे का है I पहला मूलभूत गलती है मनुष्य को देह के आधार पर स्त्री या पुरुष माननाI वास्तव मैं आत्मा में दोनों स्त्री और पुरुष के गुण हैंI यहाँ सृष्टि पर मौजूद सभी आत्मायें हैं जो पुरुष या स्त्री के रूप में बराबर संख्या में, कर्मों के हिसाब अनुसार जन्म लेती हैं I तो देह के आधार से किसी का धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, जाति इत्यादि के आधार पर मूल्यांकन करना हर प्रकार से गलत सिद्ध होता है I फलस्वरूप मानव द्वारा रचित हर प्रणाली अंततः मानव जाति और सभ्यताओं को पतन की ओर ले जाती है I
सागर सदैव भरपूर रहता है उसमें कभी कोई कमी नहीं आ सकती I परमात्मा को भी सागर कहते हैं क्योंकि वह सदैव सम्पूर्ण और भरपूर हैं I चाहे भौतिक जगत मे कुछ भी घटित होता रहे लेकिन परमात्मा सदैव सम्पूर्ण हैंI वे प्रेम, शांति, शक्ति, ज्ञान, सुख, पवित्रता से भरपूर हैं सागर हैं I
परमात्मा के साथ ध्यान को हम ओसमोसिस (OSMOSIS) के साथ तुलना कर सकते हैं I परमात्मा के करीब रह कर हम परमात्मा में मौजूद हर गुण व शक्ति को स्वयं में समा सकते हैं I ज्ञान सुन कर अगर हम उसका चिंतन नहीं करते अथवा स्वरूप नहीं बनते तो हम ज्ञान को सही रीति से समझ नहीं पाते I ज्ञान का सही और पूर्ण रूप से चिन्तन करें अन्यथा गलत मतलब निकल जाता है I ज्ञान का सही चिंतन एवं धारणा नहीं होने पर हम देह भान में ही रह जाते हैं और भक्ति और ज्ञान में सही तरह से अन्तर नहीं कर पाते I फलस्वरूप हम न चाहते हुए भी सद्गति के विपरित दुर्गति की ओर ही अग्रसर हो जाते हैं I
आप ज्ञान गंगाएं होI वो मान सरोवर की बात करते हैं जो कि एक हिमालय के पहाड़ों में झील हैI इसका हम यह अर्थ निकल सकते हैं की मन एक झील की तरह हैI कहते हैं उसमें स्नान करने पर मनुष्य से परी बन जाते हैंI अपने मन में परमात्म ज्ञान को धारण करने से देवताओं जैसे लक्षण आ जाने से आप फरिश्ते बन जाते हैं I भक्त इसे स्थूल रूप मे मानने के कारण खुद को परमात्मा या उनके ज्ञान से जोड़ पाने में असफल हैं I वो ये नहीं समझते की स्नान अर्थात परमात्मा ज्ञान का मन में मनन चिंतन करना हैI वह फरिश्ते अथवा परी का अर्थ नहीं समझते I परी माना वह पवित्र नारी जो ज्ञान से अव्यक्त और सुंदर बन जाती है I
ज्ञान की शक्ति से आत्मा बिल्कुल पवित्र बन जाती है I सभी पांचों तत्व ज्ञान और योग से पवित्र हो जाते हैं यही कारण है कि देवी देवता इतने सुन्दर होते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते I नई दुनिया मे सब कुछ पवित्र और खूबसूरत होगा I फिर समय प्रमाण सतो, रजो, तमो बनने पर सृष्टि के अंत तक सब कुछ अपवित्र, जीर्ण और बदसूरत हो जाता है I समय सब परिवर्तनकर देता है. समय प्रमाण पतित बनना अटल है, समय उत्थान का कारण नहीं बनता I मनुष्यों की गुणवत्ता उसके भौतिक जगत मे वस्तु एवं वैभव मे झलकती है I उत्थान एवं सद्गति संगम पर ज्ञान और योग द्वारा, शिवबाबा के शक्तियों के प्रभाव से ही होती है I इसलिए उसे पतित पावन कहते हैंI
परमात्मा आकर हमें पवित्र बनाते हैं I परमात्मा हमें पवित्र, सुखी, समृद्ध और ज्ञानवान बनाने के बदले क्या चाहते हैं? वो बदले में हमसे सम्पूर्ण समर्पण चाहते हैं सहयोग चाहते हैं I वे चाहते हैं कि हम उनके काम में निमित्त (INSTRUMENT) बनेंI परमात्मा हमारे लिए जो करते हैं, यही सौगात वो है जो हम परमात्मा को बदले में देते हैंI इसके पीछे भी एक गहरा राज है सतयुग में औसत आयु 150 वर्ष होती है वहाँ शरीर सदा स्वस्थ रहता है I पवित्रता के कारण वहाँ हर चीज बहुत उत्तम और श्रेष्ठ होती है I
परमात्मा को हम आत्माओं के रचयिता नहीं कह्ते क्योंकि परमात्मा नई दुनिया स्वर्ग रचते हैं I क्योंकि आत्मा, परमात्मा और यह खेल अनादि है I ना आत्मायें और ना ही ड्रामा परमात्मा ने बनाया है I यह बना बनाया है I इनका परमात्मा में ज्ञान समाया है I परमात्मा, आत्मा और उसके पार्ट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं I यह सब एक घटना (PHENOMENA) है जो घटित होती रहती है I