अपनी सत्य पहचान जानने की सहज चाभी है स्वदर्शन चक्र I इनमें से मुख्य है अंत और आदि का अपना पार्ट जानना सृष्टि चक्र के प्रथम मानव जिन्हें आदम कहते हैं, वही इस समय संगम पर ब्रह्मा है I सृष्टि के अंत और आदि के समय जिसे हम संगमयुग कहते हैं, यही वह समय है जब हमें इस बात का ज्ञान प्राप्त होता है कि आदम कौन है और ब्रह्मा कौन है, साथ ही यह भी की “कौन कौन है” I काल चक्र हमें यह बताता है कि सृष्टि का नव परिवर्तन (EVOLUTION) तीव्रता से होता है और इस समय संगमयुग पर होता है जब पुरानी सृष्टि का अंत और नयी सृष्टि की स्थापना होती है I सतयुग से ही हमारा पतन शुरू हो जाता है I और किसी युग में विकास नहीं होता, इसे मुरली में “सीढ़ी का उतरना” (DEVOLUTION) कहते हैंI सभी चक्र एक समान (IDENTICAL) घटित होते हैं जिसका अर्थ है कि एक चक्र सम्पूर्ण रूप में यह एक पूरा चक्र घटित होता है I
आप संगम पर स्वयं को श्रीमत प्रमाण कैसे चलाते हैं दर्शाता है कि आप कौन हैं I सबसे पहले और सर्वोत्तम पुरुष हैं ब्रह्मा (ADAM) और स्त्री हैं और सरस्वती (EVE)I धर्म और उनके शास्त्र नारी को कलंकित करते आए हैं I उन्होंने सरस्वती को भी कलंकित किया हैI यह सब देह अभिमान वश शुरू होता है I इसका उद्देशय पुरुष प्रधान समाज की रचना करना था, जो कि पुरुष धर्म अधिकारियों द्वारा रचा गया, जिसका सत्यता से दूर तक कोई सम्बंध नहीं है I ईसाई (CHRISTIANS) वर्जिन मेरी (VIRGIN MARY) को महत्व देते क्योंकि वह पवित्र थीं I जब तक कि नारी पुरुषों को स्वयं पर अत्याचार करने से रोकती रहीं, उनका सम्मान बरकरार रहा हैI उदाहरण के तौर पर मीरा बाई I
संगम का यह ब्राह्मण जीवन वास्तव में साधारण से अमूल्य बनाने का जीवन है I संगम पर परमात्मा स्वयं आकर नारी को ऊँचा उठाते हैं, ज्ञान का कलश रख तर्क शक्ति सिखाते हैं, यज्ञ का अधिकार देते हैं, वंदे मात्रम का नारा देते हैं, और उन्हें इस पितृसत्तात्मक समाज में हो रहें यौन उत्पीड़न, राजनैतिक और सामाजिक बहिष्कार से बचाते हैं I इस वजह से जो नारी पवित्र रहती है, उसे पितृसत्तात्मक समाज रोड़ा की तरह देखता हैI परमात्मा द्वारा प्राप्त पवित्रता से नारी पितृसत्तात्मक नीतियों को खोखला और गलत साबित करती हैं I पितृसत्ता औंधे मुह गिर पड़ी है और अपना वजूद खो चुकी है I ऐसा होना ड्रामा में अनिवार्य हैं।
भारत में तीन तरह के देवी देवता हैं I पहले उदाहरणमूर्त ब्रह्मा, सरस्वती और शिव शक्तियाँ हैं I यह वो मनुष्य मुख्य आत्मायें हैं जिन्होंने सर्वप्रथम परमात्मा को पहचान उनसे ज्ञान और शक्तियाँ प्राप्त की I यही आत्मायें आज तक पौराणिक कथाओं में अपनी दिव्य शक्तियों, असुरों पर विजय, बुराई का नाश करने के लिए, सभी मनुष्य मात्र की रक्षा करने हेतु, इच्छाओं की पूर्ति करने इत्यादि के रूप में याद की जाती हैं I यही वो महान आत्मायें हैं जिन्हें परमात्मा से सीधा सम्बंध रखने का भाग्य प्राप्त हुआ और जिन्होंने परमात्म शक्तियों एवं ज्ञान द्वारा स्वयं को पहचान अपने सत्य स्वरूप को प्राप्त किया I यह आत्मायें विश्व के मार्ग दर्शक बने I इसलिए इन्हें आदि मानव कहा गया I इस ब्राह्मण जन्म में यह गुप्त रूप में हैं I इस जन्म में यही आत्मायें साधारण रूप में रह गुप्त योद्धा (SPIRITUAL WARRIOR) बन अपने अंदर की बुराईयों और पांच तत्वों पर विजयी बन मायाजीत कहलाये I संगम उपरांत अपने अगले जन्म में यही आत्मायें सतयुग में सूर्यवंशी विश्व महाराजा और महारानी बने और अन्य सभी शिव शक्तियाँ इनके उत्तराधिकारी व इनके राजवंश में आएI
दूसरे प्रकार के देवी देवता स्वर्ण काल में विश्व महाराजा और राजा हुए I बाल्यकाल में श्री कृष्ण व राधा जो विवाह पश्चात लक्ष्मी और नारायण कहलाये जिन्होंने फिर सतयुग में राज्य किया, जिसके बाद त्रेतायुग में राम सीता का राज्य चला I सृष्टि के मध्य में यह सभ्यता नष्ट हो गई और अनेक सभ्यताओं और धर्मों का जन्म हुआ I
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में जो भी हुआ वह संगम पर किए गए हरेक आत्मा के संकल्पों और कर्मों का प्रतिबिंब है I जिस आत्मा ने संगम पर जो भी कर्म किया, वो ही सारे कल्प में उसका भाग्य बन गया । फिर यही कर्म सृष्टि के अंत में पुनः उनके परमात्मा से मिलन और उनसे ज्ञान और शक्तियां प्राप्त करने के निमित्त बना I
अभी जबकि संगमयुग है तो सभी अपने मन के दर्पण में अपना सत्य स्वरूप देखें और स्वयं को पहचाने I अपने अंदर के संस्कारों को देखें और आपको खुद की पहचान मिल जायेगी की आपका सारे कल्प में क्या पार्ट रहा है या होगा। यह सभी बातें हमें मुरलियों के गहन अध्ययन से भी मालूम पड़ेगी । हमे यह जानना है कि समस्त मानव मात्र और परमात्मा के प्रति हमारे हृदय में कितना प्रेम है? हमें क्या चाहिए? हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? हमारी मंशा (MOTIVATION) क्या है? हम अन्याय, अस्वीकृति, निंदा-स्तुति, मान-अपमान को कैसे ज्ञान योग से या, बाबा की याद पार करते हैं ? क्या आप भ्रष्टाचार, प्रलोभन (TEMPTATIONS) , रिश्वतखोरी के प्रति असंवेदनशील हैं? आप विरोध और विरोधियों का कैसे सामना करते हैं? क्या आप जानते हैं आपको किस चीज से डर लगता है? क्या आप केवल एक परमात्मा के सहारे अपना जीवन व्यतित कर सकते हैं, या आप अन्य मनुष्यात्माओं का भी सहारा लेते हैं? क्या आप दूसरों पर निर्भर हैं या आपका निश्चय परमात्मा में अटल है? अगर आप इन सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं तो आप एक महान आत्मा है यह निश्चित है I
दादी प्रकाशमणि कहती थीं बहुत बी के, जो बड़े पद भी सम्भाल रहे हैं, वो हद के मान-शान, विनाशी शक्ति, धन, सुरक्षा, की इच्छाओं से चल रहे हैं I क्या आप भौतिक इच्छाएं की मनोकामना रखते हैं या आप आध्यात्मिक उत्थान चाहते हैं?
तीसरे तरह के देवी देवताएं वह हैं जो पूर्ण रूप से परमात्मा और ब्राह्मण आत्माओं को प्रतीक हैं। ये हैं ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जो कि त्रिमूर्ति हैं I इन प्रतीकों में हम सृष्टि की रचना, पालना और विनाश या रचता और उसकी रचनाओं को समझ सकते हैं I आप सच्चे ब्राह्मण जिसे परमात्मा द्वारा दिव्य नेत्र की प्राप्ति हुई है वही इस ज्ञान के गहरे राज को समझ सकते हैं I