VVI Subjective Questions
Very Very Important Questions & Answers | Class 10th | Bihar Board
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उत्तर- राष्ट्रवाद का अर्थ होता है— राष्ट्रीय चेतना का उदय। यह एक ऐसी चेतना है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकता की अनुभूति होती है।
भारतीय राष्ट्रवाद के निम्न कारण थे—
ब्रिटिश सरकार के शोषण तथा गलत नीतियों से समाज के सभी वर्गों के लोग पीड़ित थे, जिसके कारण सभी लोगों में एकता की भावना तथा राष्ट्रवाद की भावना प्रेरित हुई।
मध्यम वर्ग में समाज के सभी वर्ग के लोगों में एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना को प्रेरित किया।
समाचार पत्रों ने भी लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत की।
सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आंदोलन ने भी लोगों में राष्ट्रवाद की भवना जागृत की।
उत्तर- भारत की क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए 1919 ई० में यह एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के अनुसार ब्रिटिश सरकार केवल शक (संदेह) के आधार पर किसी भी भारतीय को गिरफ्तार कर सकती थी और उसपर बिना मुकदमा चलाए दंडित कर सकती थी। अतः इस कानून को लेकर भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई। हर जगह इस कानून को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ घोर विरोध किया गया।
उत्तर- रॉलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में बैशाखी के दिन हजारों की संख्या में भारतीय एकत्रित हुए थे। वहाँ रॉलेट एक्ट और पुलिस की दमनकारी नीतियों का विरोध हो रहा था। जब इसकी खबर अमृतसर के सैनिक कमांडर जनरल डायर के पास पहुँची तब जनरल डायर आक्रोशित होकर अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और प्रवेशद्वार बंद करके निहत्थे भारतीयों पर गोलियाँ चलवादी, जिसके कारण बहुत सारे भारतीय मारे गए और हजारों की संख्या में घायल हो गए। अतः इस हत्याकांड को जलियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
उत्तर- ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 ई० में आगा खाॅं के नेतृत्व में हुआ। आगा खाॅं ने मुसलमानों की माँगों को पूरा करने के लिए वायसराय मिंटों से मिला और ढाका में प्रमुख मुसलमानों ने एकत्रित होकर 30 दिसंबर, 1906 ई० को मुस्लिम लीग की स्थापना की।
इसका मुख्य उदेश्य मुसलमानों की माँगों को पूरा करना था।
उत्तर- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 ई० में के० बी० हेडगेवार ने नागपूर में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य युवकों को चारित्रिक तथा शारीरिक रूप से मजबूत बनाकर सशक्त राष्ट्र का निर्माण करना था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक ने हिंदू राष्ट्रवाद का नारा दिया तथा हिन्दू धर्म तथा हिन्दू समाज के विकास की नीति अपनाई। सामाजिक संगठन के रूप में आज भी RSS कार्यरत है।
उत्तर- तुर्की का सुल्तान खलीफा इस्लामी जगत का धर्मगुरु भी था। सेवर्स की संधि द्वारा खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा नष्ट कर दी गई, जिसके कारण भारतीय मुसलमान क्रोधित हो गए। अतः उन्होंने खलीफा को पुनः शक्ति और प्रतिष्ठा दिलाने के लिए 1919 ई० में खिलाफत समिति बनाकर आंदोलन करने की योजना बनाई गई, जिसे भारतीय इतिहास में खिलाफत आंदोलन के नाम से जाना गया।
उत्तर- 1922-23 ई० में शाह मुहम्मद जुबैर ने मुंगेर में किसान सभा का गठन किया। 1 सितंबर 1936 ई० में बिहार सहित सभी देशों में किसान दिवस मनाया गया। उस दिन बिहार के किसानों ने जमींदारी शोषण से मुक्त करने तथा लगान कम करने की माँग को लेकर आंदोलन किया। बिहार में इस किसान आंदोलन को स्वामी सहजानंद सरस्वती ने इसको और प्रभावी बनाया। बिहार में किसानों द्वारा किए गए आंदोलन को किसान आंदोलन के नाम से जाना गया।
उत्तर- गया कांग्रेस अधिवेशन के बाद 1923 ई० में परिवर्त्तनवादियों ने स्वराज्य दल की स्थापना की। इसका पहला अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ। स्वराज्य दल सरकार की गलत नीतियों का विरोध करती थी। स्वराज दल अपनी अड़ंगा डालने वाली नीति से सरकार की गलत नीतियों को रोकने का प्रयास करती थी। स्वराज्य दल ने 1923 के चुनाव में भाग लिया, जिसमें इसे केन्द्रीय और प्रांतीय विद्यायिकाओं में अच्छा स्थान मिला।
उत्तर- साइमन कमीशन (आयोग) फरवरी 1928 ई० में भारत आया। इसका उद्देश्य 1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायी शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करना और आवश्यक सुझाव देना था। इस आयोग में कोई भी भारतीय नहीं था। अतः जब साइमन कमीशन (आयोग) मुंबई पहुँचा, तो वहाँ भारतीय प्रदर्शनकारियों ने उनका स्वागत काले झंडो से किया और साइमन वापस जाओ का नारा लगाया गया।
उत्तर-
कारण:- ब्रिटिश सरकार ने 1919 ई० में रॉलेट एक्ट पारित किया, जिसको भारतीयों ने काला कानून कहकर इसका विरोध किया। इस कानून के विषय पर इसके विरोध के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा आयोजित की गई। जब इस सभा की खबर जनरल डायर को मिली तब उसने अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँच कर निहत्थे भारतीयों पर गोलियाँ बरसा दी, जिसमें बहुत लोग मारे गए। इस घटना से पूरे भारत के लोग आक्रोशित हो गए। इसके बाद भारत में जब खिलाफत आंदोलन शुरू हुई, तो गाँधीजी इस आंदोलन को सत्य और न्याय पर आधारित आंदोलन मानते थे। इस अवसर का लाभ उठाकर गाँधीजी हिंदु-मुस्लिम एकता को मजबूत करने तथा ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोध में एक अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन करने की घोषणा कर दी। इस असहयोग आंदोलन के अंतर्गत महात्मा गाँधी ने देश के सभी भारतीयों से अपील किए कि सभी लोग विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें और सरकारी लोग अपने पदो का त्याग कर दें।
परिणाम:- महात्मा गाँधी द्वारा किया गया असहयोग आंदोलन पूर्णतः सफल तो नहीं हो पाई लेकिन बहुत जगहों पर अधिक मात्रा में लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया तथा सरकारी शिक्षण संस्थाओं का भी बहिष्कार हुआ। इस असहयोग आंदोलन के कारण लोगों में स्वदेशी की भावना मजबूत हुई तथा लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई। इस आंदोलन के कारण बहुत भारतीय लोगों का साथ मिला, जिससे कांग्रेस को एक नयी दिशा मिली।
उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्न कारण थे—
साइमन कमीशन का भारत आना:- साइमन कमीशन जब भारत आया, तो उसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिसके कारण इसका विरोध किया गया। इस विरोध के खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने कठोर दमनकारी नीति अपनाई। इस विरोध में पुलिस के लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई, जिससे भारतीय, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रोशित हो गए।
आर्थिक मंदी का प्रभाव:- विश्व में व्याप्त आर्थिक मंदी का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था भी दयनीय हो गई। लोग बेरोजगार हो गए थे तथा मॅंहगाई के कारण भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इस दिशा में ब्रिटिश सरकार भारतीयों के जन-कल्याण के लिए कोई कार्य नहीं कर रही थी। अतः भारतीय, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हो गए थे।
क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि:- ब्रिटिश सरकार को भारत से भगाने के लिए दिन-प्रतिदिन क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हो रही थी।
पूर्ण स्वराज्य की माँग:- लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की माँग की। 26 जनवरी 1930 ई० को देश में पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, जिससे लोगों में नया उत्साह उत्पन्न हुआ।
गाँधी इरविन समझौता:- गाँधीजी ने 1931 ई० में इरविन के समक्ष अपनी 11 सूत्री माँग रखी, जिसपर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।
दांडी यात्रा:- गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार से खफा होकर 12 मार्च 1930 ई० को दांडी यात्रा आरंभ करके नामक कानून भंग किया तथा सरकार के बहिष्कार की नीति अपनाई। 5 मार्च 1931 ई० को गाँधी-इरविन समझौता के बाद इस आंदोलन को गाँधीजी ने वापस ले लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्न परिणाम हुए—
इस आंदोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया।
इस आंदोलन में एक बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया।
इस आंदोलन में बहिष्कार की नीति से ब्रिटिश सरकार को आर्थिक क्षति पहुँची।
इस आंदोलन के कारण भारत में संवैधानिक सुधारों की प्रक्रिया में तेजी आयी।
उत्तर- ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच चुका था। देश का प्रत्येक भारतीय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ था। सभी वर्ग के लोग ब्रिटिश सरकार से खफा थे और वे चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार को भारत से हटाना होगा। अतः महात्मा गाँधी द्वारा किया गया भारत छोड़ो आंदोलन एक जन आंदोलन था क्योंकि सभी भारतीय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए थे। इसलिए महात्मा गाँधी ने अपने इस आंदोलन में करो या मारो का नारा दिया। इस आंदोलन में पूरे देश के सभी भारतीयों ने भाग लिया। इस आंदोलन में हर वर्ग के लोग एकजुट होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भाग लिए। बहुत सारे जगहों पर लोगों ने बिजली के खंभों को तोड़ दिया, टेलीफोन के तार काट दिए गए, रेल के पटरियों को उखाड़ दिया गया तथा सरकारी पदों तथा विदेशी वस्तुओं का पूरी तरह से बहिष्कार किया गया। यह आंदोलन इतना उग्र था कि इस आंदोलन में ब्रिटिश सरकार की नींव को हिला दिया। इस आंदोलन के कारण भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा कर दी। अतः महात्मा गाँधी द्वारा किया गया भारत छोड़ो आंदोलन एक निर्णायक आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश सरकार को भारत स्वतंत्र करने को विवश कर दिया।
उत्तर- गाँधीजी का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके प्रयासों तथा किए गए आंदोलन के चलते ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसा और सत्याग्रह दो अस्त्रों का सहारा लिया। उन्होंने बिहार में चंपारण आंदोलन तथा अहमदाबाद में सत्याग्रह आंदोलन किया। गाँधीजी ने 1920 ई० में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन आरंभ किया, जिसमें विदेशी वस्तुओ तथा सरकारी पदों का बहिष्कार किया गया। इसके बाद 1930 ई० में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन किया। इसका आरंभ उन्होंने 12 मार्च 1930 ई० को दांडी यात्रा से किया। दांडी पहुँचकर उन्होंने नमक कानून भंग किया। इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार को अधिक आर्थिक क्षति पहुँची। इसके बाद महात्मा गाँधी का निर्णायक आंदोलन 1942 ई० में हुआ, जो भारत छोड़ो आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस आंदोलन में सभी देश के लोगों को भाग लेने की अपील किए तथा उन्होंने करो या मरो का नारा दिया। इस आंदोलन से ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई, जिसके कारण ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना पड़ा। अतः भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी का बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णायक योगदान रहा।
उत्तर- 1905 ई० में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की योजना को लागू किया। लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन दो भागों— पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल में कर दिया। बंगाल विभाजन को लेकर भारतीयों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। लोगों ने बंगाल विभाजन के विरोध में बंग-भंग आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं का व्यापक रूप से बहिष्कार किया गया। इस आंदोलन में श्रमिक, सामान्य जनता तथा प्रमुख मुसलमान नेताओं ने भी भाग लिया। इसके विरोध में गुप्त क्रांतिकारी संगठन भी स्थापित हुए तथा क्रांतिकारी गतिविधियाँ भी बढ़ गई। इस आंदोलन का प्रसार बंगाल के बाहर भी हुआ। अतः बढ़ते विरोध के कारण सरकार ने 1911 ई० में बंगाल विभाजन को निरस्त करने की घोषणा की।