उत्तर- राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है, जो सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की भावना उत्पन्न करती हैं । राष्ट्रवाद की भावना यूरोप में पुनर्जागरण के काल से ही आरंभ हो चुका था लेकिन 1789 ई०की फ्रांसीसी क्रांति के बाद यह उन्नत और आक्रमक रुप में उभर कर सामने आया ।
उत्तर- प्रभु सत्ता का अर्थ है कि - “जनता ही राष्ट्र की शक्ति का आधार हैं” । लोगों के ऊपर कोई शासक नहीं होगा, केवल एक गणतंत्र होगा और सरकार लोगों के प्रति उत्तरदायी होगी।
उत्तर- राष्ट्रवाद के कारण लोगों में एकता की भावना उत्पन्न हुई और वे एकमत होकर निरंकुश राजतंत्र को समाप्त करके गणतंत्र राज्य सरकार की स्थापना किए । इसके फलस्वरूप सविंधान बनाया गया । इससे लोगों को मौलिक अधिकार दिए गए और जनता की इच्छा को सर्वोपरी माना गया।
उत्तर- 1815 ई० मे एक वियना सम्मेलन हुआ, जिसका चांसलर मेटरनिख था। इस सम्मेलन में ब्रिटेन, प्रशा, रूस और ऑस्ट्रिया शामिल हुए। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य गणतंत्र को समाप्त करके फिर से राजतंत्र को स्थापित करना था और नेपोलियन द्वारा किए गए कामों का विरोध करना था।
उत्तर- यूरोप में राष्ट्रवाद का प्रारंभ फ्रांस से ही माना जाता है । सर्वप्रथम फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने राष्ट्रवाद की भावना प्रेरित कर लोगों को एक मत किया और वहाँ के तानाशाही और निरंकुश राजवंश को समाप्त किया । इस कारण राजशाही शासन का अंत कर के सविधान बनाया गया और सभी लोगों को समान अधिकार दिया गया । इस राष्ट्रवाद का प्रभाव विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा।
उत्तर- 1815 ई० के बियना सम्मेलन के बाद यूरोप के शासकों ने अपनी ताकत को और मजबूत करने का प्रयास किया । उन्होंने अपने और दूसरे देशों में चलने वाले क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने का पूरा प्रयास किया । प्रेस की आजादी छीन ली गई और क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बड़ी संख्या में जासूस भर्ती किए गए और शक के आधार पर उनको मारा जाने लगा । यूरोप में क्रांतिकारी आंदोलन को दबाने के लिए वहाँ के शासकों ने जो उपाय किए, वे असफल सिद्ध हुए । इसके कारण लोगों में बहुत आक्रोश उत्पन्न हो गया और फिर से वहाँ के लोग एक मत होकर वहाँ के राजा के खिलाफ विद्रोह की, जो 1830 ई० की क्रांति के नाम से जाना गया । इस क्रांति के बाद वहाँ का राजा फ्रांस छोड़कर इंग्लैंड भाग गया और पुनः निरंकुश राज तंत्र की जगह संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया गया।
उत्तर- वियना की संधि की मुख्य शर्तें निम्नलिखित हैं—
फ्रांस द्वारा विजित प्रदेशों को वापस कर दिया गया।
प्रशा को अनेक नए महत्वपूर्ण क्षेत्र दिए गए।
फ्रांस और स्पेन में पुनः राजवंश को स्थापित किया गया।
जर्मन महासंघ को बनाया रखा गया।
उत्तर- 1830 ई० की क्रांति के बाद 1848 ई० में पुनः क्रांति हुई फरवरी 1848 ई० में व्यापक रुप में बेरोज़गारी बढ़ गई थी। नए-नए कल-कारखाने स्थापित ना होने के कारण दिन-प्रतिदिन बेरोज़गारी बढ़ रही थी, जिसके कारण भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो रही थी। सर्व साधारण लोग जैसे- किसान, मज़दूर इत्यादि लोगों को सत्ता से अलग रखा जा रहा था। उनकी सत्ता में कोई भागीदारी नहीं थी और उनको कोई विशेष सुविधा नहीं मिल रही थी। लोगों का आक्रोश दिन- प्रतिदिन बढ़ते जा रहा था। इन सबसे त्रस्त होकर फ्रांस के लोग सड़कों पर उत्तर आए और राजा के खिलाफ आंदोलन कर दिए। इस आंदोलन के कारण जगह-जगह दंगे हुए, जिसके चलते सैनिक और आम लोग मारे गए। इन दंगों के कारण लोगों में आक्रोश और अधिक बढ़ गया और लोग एक बार फिर से पूरी तरह एकजुट होकर राजा के खिलाफ विद्रोह कर दिए। इस विद्रोह के कारण वहाँ का राजा डर के कारण फ्रांस छोड़कर इंग्लैंड भाग गया।
1848 ई० के क्रांति के निम्नलिखित परिणाम हुए—
1848 ई० के क्रांति के बाद लुई फिलिप, जो वहाँ का राजा था डर के कारण राज छोड़कर इंग्लैंड भाग गया। उसके बाद फ्रांस में लोकतंत्र की स्थापना की गई। सभी लोगों को समान मताधिकार प्रदान किया गया अर्थांत् सभी लोगों को समान मत देने का अधिकार दिया गया। सभी लोगों को रोज़गार देने की गारंटी दी गई। इसके लिए नए-नए कारखाने खोले गए। यह क्रांति फ्रांस के राजतंत्र को पूरी तरह से समाप्त करने में सफल तो नहीं रहा, लेकिन उनकी शक्ति को काफी कमजोर कर दिया। इस क्रांति में श्रमिक (मज़दूर) वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अतः इस क्रांति के बाद श्रमिक वर्ग एक नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया।
उत्तर- जर्मनी के एकी़करण में निम्नलिखित बाधाऍं थी—
जर्मनी 300 से अधिक छोटे-छोटे राज्य में बँटा हुआ था ।
इन राज्यों के सभी राज़ाओं की अलग-अलग सोच थी ।
जर्मनी की जनता में अपने राष्ट्र के प्रति देश प्रेम का अभाव था ।
जर्मनी की राजनीतिक स्थिति बहुत दयनीय थी और उसकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी ।
जर्मनी की धार्मिक एवं जातीय रूप में भी एक़जु़टता नहीं थी ।
ये सभी जर्मनी के एकीकरण में बाधाएं थी ।
उत्तर- जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की महत्वपूर्ण भूमिका थी—
बिस्मार्क जर्मनी के एकीकरण के लिए “रक्त और तलवार” की नीति अपनाई । उसने डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और फ्रांस के साथ युद्ध किया, जिसके कारण जर्मनी का एकीकरण 1871 ई० में संभव हुआ । जर्मनी के एकीकरण के लिए सर्वप्रथम बिस्मार्कं ने अपने सैन्य शक्ति को मजबूत किया । इसके लिए उसने धन एकत्र करने का हर संभव प्रयास किया । इस तरह उसने धन एकत्र करके प्रशा की सैन्य शक्ति को मजबूत किया । इस कार्य में उसे अद्भुत सफलता मिली । उसने अपनी सैन्य शक्ति को पूरी तरह से सुसंगठित किया और उसे पूरी तरह तैयार करके शक्तिशाली बना दिया ।
इसके बाद उसने तीन युद्ध किए—
डेनमार्क से युद्ध:- बिस्मार्क ने कूट नीति का सहारा लेकर ऑस्ट्रिया के साथ समझौता कर लिया और डेनमार्क को युद्ध में पराजित कर उसके बहुत सारे राज्यों पर अधिकार कर लिया।
ऑस्ट्रिया से युद्ध:- डेनमार्क से युद्ध के बाद विस्मार्क ऑस्ट्रिया पर भी अधिकार करना चाहता था । इसके लिए वह फ्रांस, रूस और इंग्लैंड के साथ मिल गया । 1866 ई० में से सेडोवा का युद्ध हुआ । युद्ध के बाद विस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के बीच बहुत सारे भू-भागों पर अधिकार कर लिया ।
फ्रांस के साथ युद्ध:- जर्मनी के एकीकरण करने के लिए फ्रांस से युद्ध बहुत आवश्यक था । फ्रांस को पराजित करने के बाद जर्मनी का एकीकरण करना आसान था । इसलिए विस्मार्क ने अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ फ़्रांस के विरुद्ध युद्ध किया और सीडान के युद्ध में फ्रांस को बुरी तरह पराजित किया ।
उत्तर-
मेजिनी:- मेजिनी एक उदारवादी/ राष्ट्रवादी क्रांतिकारी था । वह इटली को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना चाहता था और इटली को एकीकृत गणतंत्र के रूप में देखना चाहता था । उसने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए “यंग इटली” नामक एक संगठन बनाया, जिसमें युवा सदस्यों का शामिल किया गया । ये युवा सदस्य लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करते थे । मेजिनी ने अपने लेखों और रचनाओं के माध्यम से भी लोगों को इटली के एकीकरण के लिए प्रेरित करता था ।
काउंट काबूर:- सन् 1848 ई० में सार्डिनिया के शासक ने काउंट काबूर को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया । काउंट काबूर इटली के एकीकरण का पक्का समर्थक था । उसने इटली के एकीकरण के लिए फ्रांस, ब्रिटेन से मित्रता किया और उसने ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध के लिए मदद मांगी । फ्रांस और ब्रिटेन ने काउंट काबूर की मदद की और इन तीनों देश की सेनाओं ने मिलकर ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध किया । इस युद्ध में ऑस्ट्रिया बुरी तरह पराजित हुआ और युद्ध में पराजित होने के बाद इटली के प्रमुख राज्य वेनेशिया और लोम्बार्डी पर से ऑस्ट्रिया का अधिकार समाप्त हो गया और काउंट काबूर में अपने इन प्रमुख राज्यों को इटली में मिला लिया । इस तरह इटली के एकीकरण में काउंट काबूर का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
गैरीबाल्डी:- गैरीबाल्डी का भी इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा । गैरीबाल्डी युद्ध के बल पर इटली का एकीकरण करना चाहता था । इसके लिए उसने एक क्रांतिकारी संगठन बनाया और उसमें बहुत सारे क्रांतिकारी युवा शामिल किए गए । गैरीबाल्डी अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ सिसली द्वीप पहुंचा और 3 महीने के अंदर वहाँ के राजा को पराजित करके उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया । उसके बाद उसने नेपल्स के राजा को भी पराजित करके उस पर अपना अधिकार कर लिया । इस तरह उसने युद्ध के बल पर इटली के बहुत सारे छोटे राज्यों के राजाओं को पराजित करके उन पर अधिकार कर लिया और उन्हें इटली में मिला लिया । इस तरह इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
उत्तर- इटली तथा जर्मनी के एकीकरण के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक ऑस्ट्रिया था । ऑस्ट्रिया को बिना पराजित किए इटली तथा जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं था । इसलिए ऑस्ट्रिया से मुक्ति (निजात) पाने के लिए उसको युद्ध में पराजित करना जरूरी था । इसके लिए इटली तथा जर्मनी के सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई तथा उनकी स्थिति मजबूत की गई और साथ-साथ कूट नीति के आधार पर ऑस्ट्रिया को युद्ध में पराजित किया, जिसके बाद इटली तथा जर्मनी का एकीकरण संभव हो सका।
उत्तर- फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद नेपोलियन बोनापार्ट ने बहुत सारे राज्यों पर आक्रमण किया । यह युद्ध फ्रांस और पुरानी व्यवस्था का समर्थन करने वाले देशों के बीच हुआ । नेपोलियन के नेतृत्व में उसकी सेनाएँ फ्रांस के बड़े-बड़े इलाकों में प्रवेश किया और उन पर अधिकार करके बहुत सारे सुधार किए । नेपोलियन बोनापार्ट ने पुरानी व्यवस्था में सुधार कर के नए-नए युग का प्रारंभ किया जिसके कारण लोगों में उत्साह बढ़ा और उनमें राष्ट्रवाद की भावना विकसित हुई । जर्मनी तथा इटली के एकीकरण में भी नेपोलियन बोनापार्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा । इस तरह यूरोप में राष्ट्रवाद फैलाने का काम में नेपोलियन बोनापार्ट ने तथा उनकी सेनाओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
उत्तर- 1861 ई० में विलियम फर्स्ट(I) प्रशा का सम्राट बना। राजा बनते ही सबसे पहले वह अपनी सेना को संगठित और मजबूत करने का प्रयास किया। इसके लिए उसे काफी धन की आवश्यकता थी। प्रतिनिधि सभा विलियम फ़र्स्ट के इस योजना के खिलाफ थी और उसने विलियम फ़र्स्ट को धन देने से इंकार कर दिया, जिसके कारण विलियम फ़र्स्ट और प्रतिनिधि सभा(संसद) के बीच संघर्ष आरंभ हो गया। इस संकट की घड़ी में विलियम फ़र्स्ट ने बिस्मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया। प्रधानमंत्री बनते ही बिस्मार्क में सर्वप्रथम जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। बिस्मार्क ने वहाँ के लोगों को और संसद को बताया कि जर्मनी के भविष्य का निर्णय वहाँ का राजा और संसद नहीं करेगी, बल्कि वहाँ की सेना करेगी। इसके बाद बिस्मार्क को अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने का विलियम फ़र्स्ट द्वारा पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। विलियम फ़र्स्ट की मदद से बिस्मार्क ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूतकिया और सैनिकों की मदद से युद्ध करके जर्मनी के बिखरे राज्यों पर अधिकार किया और उसे जर्मनी में मिला लिया। इस तरह हम कह सकते हैं कि विलियम फ़र्स्ट के बगैर जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था।