VVI Subjective Questions
Very Very Important Questions & Answers | Class 10th | Bihar Board
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उत्तर- मुद्रा वह वस्तु है, जो विनिमय के माध्यम एवं मूल्य मापन का कार्य करती है। रॉबर्टसन के अनुसार— "मुद्रा वह वस्तु है, जिसे वस्तुओं का मूल्य चुकाने तथा अन्य प्रकार के व्यवसायिक दायित्वों को निपटाने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
मुद्रा के निम्न कार्य है—
विनिमय का माध्यम:- मुद्रा के प्रयोग से विनिमय आसान हो गया है क्योंकि वस्तु विनिमय में अनेकों कठिनाइयाँ और असुविधाएँ होती थी। अतः मुद्रा विनिमय माध्यम का कार्य करती है।
मूल्य को मापने का साधन:- मुद्रा का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को मापना है। मुद्रा के प्रयोग से मूल्यों को मापने की कठिनाई दूर हो गई है।
विलंबित भुगतान का मान:- मुद्रा के प्रयोग से ऋण लेने तथा उसका भुगतान करने में बहुत ही आसानी हो गई है।
मूल्य का संचय:- वस्तुओं का संचय करने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता होती है तथा उनकी देख-रेख में भी कठिनाई होती है। अतः मूल्य अथवा धन के संचय के लिए मुद्रा अधिक उपयुक्त है।
उत्तर- मुद्रा के पूर्व वस्तु-विनिमय का प्रचलन था। इस प्रणाली के अंतर्गत लोग अपनी वस्तुओं का आदान-प्रदान करके विनिमय करते थे। जैसे:- चावल देकर कपड़ा लेना, गेहूँ देकर दाल लेना इत्यादि । अतः वस्तु विनिमय में अनेकों कठिनाइयाँ और असुविधाएँ थी तथा वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत दो व्यक्तियों में संपर्क होना भी आवश्यक था जिनके पास एक-दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति की वस्तुएँ हो। इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है। वस्तु-विनिमय की इन समस्याओं को मुद्रा ने दूर कर दिया। मुद्रा से कोई भी वस्तु का क्रय-विक्रय आसानी से किया जा सकता है तथा मुद्रा को आसानी से एक जगह से दूसरे जगह ले जा सकते है।
उत्तर- मुद्रा से समाज को अनेक लाभ हुए है तथा इसके लाभ के साथ-साथ कुछ हानि भी हुई है। मुद्रा के मुख्य दोष निम्न है—
मूल्य में अस्थिरता:- मुद्रा का एक प्रमुख दोष मूल्य में अस्थिरता अर्थात वस्तु के मूल्य में होने वाला परिवर्त्तन है। मुद्रा के मूल्य में होने वाले तीव्र तथा अचानक परिवर्तनों का हमारी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है।
आय और धन के वितरण में असमानता:- मुद्रा से समाज में आय और धन की वितरण की असमानता बढ़ती है। मुद्रा ने ही समाज को धनी और निर्धन इन दो वर्गों में विभाजित कर दिया है।
ऋणग्रस्तता में वृद्धि:- मुद्रा ने उधार लेने और देने के कार्य को सरल बना दिया है। इससे लोगों को ऋण लेने में प्रोत्साहन मिलता है। अतः मुद्रा के कारण समाज में ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है।
व्यापार् चक्रों की उत्पति:- मुद्रा के प्रयोग से व्यापार चक्रों की उत्पति होती है अर्थात व्यापार के क्षेत्र में तेजी और मंदी आती है।
उत्तर- हमारी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। मुद्रा के प्रयोग से उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र को बहुत लाभ हुआ है। मुद्रा के अभाव में बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं है। मुद्रा विनिमय का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। मुद्रा के प्रयोग से वस्तु का मूल्य निर्धारण तथा वस्तुओं का क्रय-विक्रय आसान हो गया है। मुद्रा के अभाव में कोई भी काम आसान तथा संभव नहीं है। इसलिए मुद्रा को आधुनिक अर्थतंत्र की धुरी कहा जाता है।
उत्तर- साख का अर्थ विश्वास या भरोसा होता है। आर्थिक शब्दों में जब हम किसी व्यक्ति या संस्था से ऋण लेते है और जब उस व्यक्ति को ईमानदारी पूर्वक तथा आसानी से ऋण लौटाते है, तो उससे साख का बोध होता है।
साख के तीन मुख्य आधार है—
साख का पहला आधार विश्वास है।
साख का दूसरा आधार ऋणी व्यक्ति का चरित्र तथा उसकी ईमानदारी है।
साख का तीसरा आधार सही समय पर ऋण लौटने की क्षमता है।
उत्तर- साख पत्रों का अर्थ उन पत्रों या साधनों से होता है, जिनका साख-मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन साख पत्रों के आधार पर ऋण का आदान-प्रदान होता है तथा वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है। आधुनिक अर्थव्यवस्था के संचालन में साख-पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अधिकतर व्यापारिक लेन-देन साख पत्रों के माध्यम से ही होती है। साख पत्र के कई प्रकार है, जिनमें चेक, बैंक ड्राफ्ट, यात्री चेक, हुंडी इत्यादि आते है।