उत्तर- चुम्बक→ ऐसा पदार्थ जो लोहा, इस्पात, कोबाल्ट तथा निकेल के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है, उसे चुम्बक कहते हैं।
चुम्बक दो प्रकार के होते हैं।
प्राकृतिक चुम्बक
कृत्रिम चुम्बक
उपयोग → चुम्बक का उपयोग रेडियो, रेफ्रिजरेटर, कंप्यूटर बच्चों के खिलौने में किया जाता है।
उत्तर- किसी चुम्बक के चारों ओर का क्षेत्र जिसमें आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है, उसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं।
उत्तर-
उत्तर- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के निम्न गुण होते हैं।
चुम्बकीय बल रेखाये बन्द वक्र होते हैं।
दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऍं कभी भी एक-दूसरे को प्रतिछेद नहीं करती हैं।
जहाॅं चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऍं एक-दूसरे के निकट रहती है, वहाॅं चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है।
उत्तर- यदि दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऍं किसी एक बिंदु पर प्रतिछेद करती है तो उस बिंदु पर दो अलग दिशा प्राप्त होगी, जो संभव नहीं है। इसलिए दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऍं एक-दूसरे को प्रतिछेद नहीं करती हैं।
उत्तर- दिक्सूचक (कंपास) की सुई भी एक छोटा चुम्बक ही होता है। जब उसे चुम्बक के निकट लाया जाता है, तो क्रियाशील आकर्षण या प्रतिकर्षण बल के कारण दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है।
उत्तर-
उत्तर- जब किसी चालक तार से विधुत धारा प्रवाहित होती है, तो इसके इर्द-गिर्द चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, तो इस प्रभाव को विधुत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते है। इस तथ्य की खोज ओर्स्टेड द्वारा 1820 ई० में किया गया था।
उत्तर- जब किसी अचालक पदार्थ के ऊपर चालक तार की कुंडली लपेट दी जाती है, तो ऐसी व्यवस्था को परिनालिका कहते है। परिनालिका का एक सिरा चुंबकीय उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव की तरह कार्य करता है।
उत्तर- परिनालिका के अंदर नर्म लोहे की छड़ रखने पर धारा के कारण छड़ चुंबकित हो जाती है, ऐसे छड़ को क्रोड कहते है। नर्म लोहे के ऐसे क्रोड को विधुत चुंबक कहते है।
उत्तर- विधुत चुंबक के निम्न उपयोग है—
विधुत चुंबक का उपयोग क्रेन में होता है, जिससे लोहे के भारी टुकड़ों को उठाने में आसानी होती है।
विधुत चुंबक का उपयोग विधुत घंटी, माइक्रोफोन, टेलीविजन, लाउड स्पीकर इत्यादि में होता है।
उत्तर- विद्युत चुम्बक
विद्युत चुम्बक एक अस्थायी चुम्बक होता है।
विद्युत चुम्बक का आकर्षण बल प्रबल होता है।
विद्युत चुम्बक की शक्ति फेरों की संख्या पर निर्भर करती है।
स्थायी चुम्बक
छड़ चुम्बक एक स्थायी चुम्बक होता है।
स्थायी चुम्बक का आकर्षण बल कमजोर होता है।
स्थायी चुम्बक की शक्ति निश्चित होती है।
उत्तर- फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार– यदि बाऍं हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अँगूठे को परस्पर लम्बवत इस प्रकार फैलाऍं कि यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा धारा की दिशा दर्शाता हो तो अँगूठा धारावाही चालक पर लगे बल की दिशा को व्यक्त करेगा।
उत्तर- जब चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उन गतिशील इलेक्ट्रॉन पर बल लगते है, जिसे लॉरेन्ज बल कहते हैं। ये बल इलेक्ट्रानों के वेग तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशाओं के लम्बवत लगते है।
उत्तर- चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर लगने वाला बल निम्न बातों पर निर्भर करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र की सामर्थ्य पर
विद्युत धारा के प्राबल्य पर
चालक की लंबाई पर
उत्तर- एक ऐसा विशेष तकनिक जिसका उपयोग करके शरीर के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिम्ब प्राप्त करने का आधार बनता है, उसे चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिम्ब करते हैं।
उत्तर- विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है, जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित कर देती है। इसका उपयोग विद्युत पंरते, कपड़ा धोने की मशीनों, रेफ्रिजरेटरो इत्यादि के निर्माण में किया जाता है।
उत्तर- परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र (फ्लक्स) के कारण किसी चालक में धारा उत्पन्न होने की घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं। विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोज 1831 ई० में फैराडे के द्वारा किया गया।
उत्तर- समतल सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र के समतल सतह अभिलम्ब घटक तथा सतह के क्षेत्रफल के गुणनफल के सतह को चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। चुम्बकीय फ्लक्स का SI मात्रक वेवर होता है।
उत्तर- फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार :- यदि दाहिने हाथ की तर्जनी मध्यमा और अँगूठे को परस्पर लम्बवत इस प्रकार फैलाये की यही तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, अँगूठा चालक के गति के दिशा को व्यक्त करें तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा को व्यक्त करेंगी।
उत्तर- फैराडे का विद्युत चुम्बकीय प्रेरण नियम:- फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण नियम के अनुसार किसी परिपथ में प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिणाम उस परिपथ से होकर जाने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं के परिवर्तन की दर तथा परिपथ में फेरों की संख्या के समानुपाती होता है।
लेंज का नियम:- जब कभी विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से किसी परिपथ में धारा उत्पन्न होती है, तो उसकी दिशा ऐसी होती है कि वह उसका ही विरोध करती है, जिससे वह उत्पन्न होती है। इसे ही लेंज का नियम कहते हैं।
उत्तर- विद्युत जनित्र:- विद्युत जनित्र (डायनेमो) एक ऐसी युक्ति है, जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
बनावट:- विद्युत जनित्र (डायनेमो) में एक शक्तिशाली नाल चुम्बक होता है। जिसे क्षेत्र चुम्बक कहते हैं। क्षेत्र चुम्बक के ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाली एक कुंडली होती है जिसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर में कुंडली के अनेक फेरे होते हैं, जो नर्म लोहे की पट्टियों पर लिपटे रहते हैं। इसे आर्मेचर का क्रोङ़ करते हैं। आर्मेचर के तार का छोर पीतल के वलयो से ढँके रहते हैं तथा इन वलयो से कार्बन की पट्टियाँ हल्का स्पर्श करती हैं। इन पत्तियों को ब्रश कहा जाता है। परिपथ को इन्हीं ब्रश में लगे पेंचो से जोड़ दिया जाता है।
क्रिया विधि:- जब आर्मेचर को घुमाया जाता है, तो कुंडली के भीतर के चुम्बकीय क्षेत्र (फ्लक्स) में प्रत्येक क्षण परिवर्तन होते हैं। इसमें प्रत्येक घुर्णन के आधे चक्र में धारा की दिशा बदल जाती है अर्थात एक अर्द्ध चक्र में धारा शून्य से मध्यम तक पहुँचती है, और दूसरी बार धारा मध्यम से घटकर शून्य हो जाती है। इस प्रकार एक घुर्णन में एक दिशा में धारा शून्य से मध्यम तथा मध्यम से शून्य पुनः विपरीत दिशा में शून्य से मध्यम और मध्यम से शून्य मान को प्राप्त करती है। धारा के परिवर्ती मान होने के कारण इस धारा को प्रत्यावर्ती कहते हैं तथा इस प्रकार के डायनेमो को प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो अर्थात ए0 सी0 डायनेमो कहते हैं।
उत्तर- प्रत्यावर्ती धारा से निम्न लाभ है।
प्रत्यावर्ती धारा को ट्रांसफार्मर की सहायता से इसका विद्युत वाहक बल बढ़ाकर इसे बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।
प्रत्यावर्ती धारा की क्षमता अधिक होने के कारण इसका उपयोग बड़े-बड़े कल कारखानों में किया जाता है।
प्रत्यावर्ती धारा के विद्युत वाहक बल को कम करके 6 वोल्ट की बत्ती भी जलाई जा सकती है।
प्रत्यावर्ती धारा को कम से कम ऊर्जा हानि पर नियंत्रण किया जा सकता है।
उत्तर- प्रत्यावर्ती धारा निम्न हानियाँ है।
प्रत्यावर्ती धारा से विद्युत लेपन तथा बैटरियों का आवेशन नहीं किया जा सकता है।
प्रत्यावर्ती धारा को संचालक सेल में संवित नहीं किया जा सकता है।
प्रत्यावर्ती धारा काफी घातक होती है।
प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग विद्युत चुंबक में नहीं किया जा सकता है।
उत्तर- विद्युत उत्पादन केंद्र से विशेष प्रकार के तारों की व्यवस्था द्वारा उपभोक्ताओं के घरो तक विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था को विद्युत वितरण व्यवस्था कहते हैं।
उत्तर- घरों में विद्युत परिपथ लगाने के लिए दो तार लिए जाते हैं। इनमें से एक का विभव 220 V तथा आवृत्ति 50 H2 होता है तथा दूसरा तार पृथ्वी के संपर्क में होता है। इन 220 V वाली तार को जीवित तार तथा पृथ्वी के संपर्क में रहने वाले तार को उदासीनता कहते हैं।
उत्तर-
विद्युत मोटर:- विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है। इसका उपयोग विद्युत पंखा, वाशिंग मशीन, रे फ्रिजरेटरों इत्यादि के निर्माण में किया जाता है।
बानावट:- विद्युत मोटर में एक नाल चुम्बक होता है जिसे क्षेत्र चुम्बक कहते हैं चुम्बक के ध्रुव खंडों के बीच नर्म लोहे की प्लेटों से बने क्रोड पर लिपटी ताँबे के तार की कुंडली होती है, जिसकी फेरों की संख्या काफी अधिक होती है। इसे मोटर का आर्मेचर कहते हैं आर्मेचर के द्वारा पीतल के खंडित वलयो से जुड़े रहते हैं। इन वलयों को कार्बन के ब्रस स्पर्श करते रहते हैं।
क्रियाविधि:- जब आर्मेचर से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो आर्मेचर की दो भुजाओं जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत होती है फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम के अनुसार बल का अनुभव करती है ये बल मान में समान लेकिन दिशा में विपरीत होते हैं इसलिए ये बल-युग्म बनाते हैं जिसके कारण आर्मेचर घुर्णित होता है आधे घूर्णन के बाद वलयों के स्थान की अदला बदली हो जाती है और आर्मेचर पट बल युग्म आर्मेचर को लगातार एक ही दिशा में घूमता रहता है इसलिए इसे डी0 सी0 मोटर भी कहा जाता है।
उत्तर-
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण:- विद्युत और चुम्बकत्व के बीच महत्वपूर्ण संबंध की खोज फैराडे ने 1831 ई0 में कि उन्होंने अपने प्रयोग द्वारा यह साबित किया कि यदि किसी चुम्बक (छर चुम्बक) को बन्द कुंडली के समीप लाया जाता है या उस चुम्बक को उस कुंडली से दूर ले जाया जाता है तो दोनों ही स्थितियों में कुंडली में धारा प्रवाहित होती है यह धारा तब तक प्रवाहित होती है जब तक चुम्बक गतिशील रहता है इस प्रकार चालक में विद्युत वाहक बल और विद्युत धारा प्रवाहित होती है जब तक चुम्बक गतिशील रहता है इस प्रकार चालक में विद्युत वाहक बल और विद्युत धारा प्रेरित होती है जिसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरन भी कहा कहते हैं।
सत्यापन:- इसे दिखाने के लिए सर्वप्रथम हम एक खोखला बेलन लेंगे और उस बेलन के ऊपर अनेक फेरो वाली तार की कुंडली को लपेट देंगे। इसके बाद हम तार से एक गेल्वेनोमीटर (धारामापी) को जोड़ देंगे। अब हम एक छड़ चुम्बक लेकर उसे कुंडली के समीप तेजी से लायेगे तो हम देखेते है कि गेल्वेनोमीटर की सुई एक सुई खासकर दिशा में (माना की दाहिनी ओर) विक्षेपित हो जाती है पुनः जब हम छड़ चुम्बक की कुंडली से दूर ले जाते हैं, तो हम देखते हैं कि गेल्वेनोमीटर की सुई बायी ओर विक्षेपित होने हो जाती है इस प्रकार नजदीक लाने पर छड़ चुम्बक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ता है तथा दूर ले जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र घटता है तथा जब कुंडली और चुम्बक दोनों स्थिर हो जाते हैं तो गेल्वेनोमीटर की सुई में किसी प्रकार का विक्षेपण नहीं होता है।
अतः इस प्रकार से स्पष्ट है कि कुंडली के सापेक्ष चुम्बक की गति से प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसके कारण परिपथ में विद्युत धारा उत्पन्न होती है विद्युत वाहक बल के द्वारा प्रेरित विद्युत धारा के इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।