उत्तर- जब किसी पदार्थ को किसी उचित पदार्थ से रगड़ते है, तो घर्षण के कारण विधुत आवेश की उत्पति होती है। विधुत आवेश प्रत्येक वस्तु का आंतरिक गुण होता है, जो विधुत बल आरोपित करता है या आरोपित करने की प्रवृति रखता है।
विधुत आवेश दो प्रकार के होते है—
धन आवेश
ऋण आवेश
उत्तर- विधुत आवेश के निम्नलिखित गुण है—
समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।
असमान आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते है।
उत्तर- आवेश की उत्पति का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण है। आवेश को (Q) से सूचित किया जाता है तथा आवेश का S.I. मात्रक कूलम्ब या कूलॉम (C) होता है।
उत्तर- किसी चालक में प्रवाहित होने वाले आवेश के प्रवाह की दर को विधुत धारा कहते है। विधुत धारा को (I) से सूचित करते है तथा इसका S.I. मात्रक एम्पियर (A) होता है। यह एक अदिश राशि है।
उत्तर- जब किसी चालक से 1 सेकंड में 1 कूलम्ब आवेश प्रवाहित होता है, तो उस चालक से प्रवाहित धारा 1 एम्पियर कहलाती है।
1 एम्पियर = 1 कूलम्ब/1 सेकंड
उत्तर- इकाई धन आवेश को अनंत से विधुतीय क्षेत्र के किसी एक बिन्दु तक लाने में किये गए कार्य की मात्रा को उस बिन्दु का विधुतीय विभव कहते है। इसका S.I. मात्रक वोल्ट (V) होता है।
उत्तर- इकाई धन आवेश को अनंत से विधुतीय क्षेत्र के किसी एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किये गए कार्य की मात्रा को विभवांतर कहते है। इसका S.I. मात्रक वोल्ट (V) होता है अर्थात् दो विभवों के बीच के अंतर को विभवांतर कहते है।
उत्तर- यदि एक कूलम्ब आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 जूल (J) हो तो उन दोनों बिंदुओं के बीच का विभवांतर 1 वोल्ट (V) होता है।
1 वोल्ट = 1 जूल/1 कूलम्ब
उत्तर- ऐसी व्यवस्था जिससे लगातार विधुत धारा प्राप्त होती है, उसे विधुत परिपथ कहते है। विधुत परिपथ में विभिन्न स्रोत जैसे:- सेल, बैटरी, बल्ब, चालक तार, स्विच, ऐमीटर, वोल्टमीटर इत्यादि से जुड़े रहते है।
उत्तर-
ऐमीटर:- ऐसा विधुतीय यंत्र जिसके द्वारा विधुत परिपथ में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहते है। ऐमीटर को विधुत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
वोल्टमीटर:- ऐसा विधुतीय यंत्र जिसके द्वारा परिपथ के दो बिंदुओं के बीच के विभवांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहते है। वोल्टमीटर को समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
उत्तर-
चालक:- ऐसा पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक जगह से दूसरी जगह आसानी से चले जाते है, उसे चालक कहते है। जैसे:- सोना, चाँदी, ताँबा इत्यादि।
अचालक:- ऐसा पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश प्रवाहित नहीं हो सकते है, उसे अचालक कहते है। जैसे:- रबड़, काँच, प्लास्टिक, इत्यादि।
उत्तर-
अर्द्धचालक:- ऐसा चालक जिसकी विशिष्ट चालकता, अचालक और चालक पदार्थों की विशिष्ट चालकताओं के बीच होती है, उसे अर्द्धचालक कहते है। जैसे:- जर्मेनियम और सिलिकॉन।
अतिचालक:- ऐसा पदार्थ जिनमें अति निम्न ताप पर बिना किसी प्रतिरोध के विधुत का गमन होता है, उसे अतिचालक कहते है। जैसे:- शीशा, जिंक, इत्यादि।
उत्तर- चालक पदार्थ का वह गुण, जो उस पदार्थ से होकर प्रवाहित होने वाली विधुत धारा का विरोध करता है, उसे प्रतिरोध कहते है। प्रतिरोध को (R) से सूचित करते है तथा इसका S.I. मात्रक ओम (Ω) होता है।
उत्तर- यदि किसी चालक के दोनों सिरों पर 1 वोल्ट विभवांतर आरोपित करके उससे 1 एम्पियर की धारा प्रवाहित की जाए तो उस चालक के प्रतिरोध को 1 ओम कहते है।
1 ओम = 1 वोल्ट/1 एम्पियर
उत्तर- किसी चालक का प्रतिरोध निम्न बातों पर निर्भर करता है—
चालक की लंबाई पर
चालक की प्रकृति पर
चालक के ताप पर
चालक के अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षेत्रफल पर
उत्तर-
विशिष्ट प्रतिरोध (प्रतिरोधकता):- चालक पदार्थ के इकाई अनुप्रस्थ परिच्छेद वाले इकाई लंबाई के खंड के प्रतिरोध को विशिष्ट प्रतिरोध (प्रतिरोधकता) कहते है।
विशिष्ट चालकता:- विशिष्ट प्रतिरोध के प्रतिलोम को विशिष्ट चालकता कहते है। इसका S.I. मात्रक प्रति ओम प्रति मीटर होता है।
उत्तर- प्रति इकाई ताप वृद्धि से चालक पदार्थ के प्रतिरोध में होने वाली आंशिक वृद्धि को प्रतिरोध ताप गुणांक कहते है। इसे a से सूचित करते है तथा इसका S.I. मात्रक प्रति °C होता है।
उत्तर- जिन मिश्रधातुओं का प्रतिरोध ताप गुणांक काफी अधिक होता है, उसका उपयोग मानक प्रतिरोध बनाने में नहीं किया जाता है। अतः नाइक्रोम का प्रतिरोध ताप गुणांक काफी अधिक होने के कारण इसका उपयोग प्रतिरोध बनाने में नहीं किया जाता है।
उत्तर- प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार का होता है—
श्रेणीक्रम संयोजन
समांतरक्रम संयोजन
उत्तर- किसी चालक से प्रवाहित धारा के कारण उत्पन्न ऊष्मा संबंधी नियम का प्रतिपादन जूल ने किया था, जिसे जूल का ऊष्मीय नियम कहते है। इस नियम के अनुसार चालक में उत्पन्न ऊष्मा—
उस चालक से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा के वर्ग का सीधा समानुपाती होता है तथा
चालक के प्रतिरोध का सीधा समानुपाती होता है।
उत्तर- 1 सेकेंड में किसी विधुतीय उपकरण द्वारा उपभुक्त विधुत ऊर्जा को उस उपकरण की शक्ति कहा जाता है। इसे P से सूचित करते है तथा इसका S.I. मात्रक वाट (Watt) होता है।
P = W/t
उत्तर- 1 जूल प्रति सेकेंड कार्य करने की दर को 1 वाट कहते है।
∵ 1 वाट = 1 जूल/1 सेकेंड
उत्तर- विधुतीय कार्य की मात्रा को विधुत ऊर्जा कहते है। इसका S.I. मात्रक जूल (J) होता है। विधुत ऊर्जा का व्यवसायिक मात्रक किलोवाट घंटा (KWh) होता है।
W = VQ
उत्तर- 1 वोल्ट विभवांतर के अधीन चालक से 1 कूलम्ब आवेश प्रवाहित करने पर किये गए कार्य को 1 जूल कहते है।
∵ 1 जूल = 1 कूलम्ब × 1 वोल्ट
उत्तर-
श्रेणीक्रम संयोजन:- जब पहले प्रतिरोध का अंतिम छोर दूसरे प्रतिरोध के प्रथम छोर से, दूसरे प्रतिरोध का अंतिम छोर तीसरे प्रतिरोध के प्रथम छोर से जुड़ा रहता है तो उस संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते है। श्रेणीक्रम संयोजन में सभी प्रतिरोधों से एक-समान विधुत धारा प्रवाहित होती है।
समांतरक्रम संयोजन:- जब सभी प्रतिरोधों का बायाँ छोर एक बिन्दु पर तथा दायाँ छोर दूसरे बिन्दु पर संयोजित रहता है तथा उन सभी प्रतिरोधों से अलग-अलग धारा प्रवाहित होती है तो ऐसे संयोजन को समांतरक्रम (पार्श्वक्रम) संयोजन कहते है।
उत्तर-
ओम का नियम:- ओम के नियम के अनुसार अचर ताप पर किसी चालक से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा चालक के सिरों के बीच के विभवांतर का सीधा समानुपाती होता है।
∵ V ∝ I (जहाँ ताप अचर है)
चालक का प्रतिरोध ताप के परिवर्तन से बदलता है। ऐसा होने पर चालक से प्रवाहित होने वाली धारा का सही-सही मान प्राप्त नहीं होता है। इसलिए ओम के नियम में ताप को अचर रखा जाता है।
उत्तर-
ओम का नियम:- ओम के नियम के अनुसार अचर ताप पर किसी चालक से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा चालक के सिरों के बीच के विभवांतर का सीधा समानुपाती होता है।
∵ V ∝ I (जहाँ ताप अचर है)
सत्यापन:- ओम के नियम को सत्यापित करने के लिए सर्वप्रथम चालक तार, ऐमीटर, वोल्टमीटर, दाब कुंजी, बैटरी लेंगे। ऐमीटर को श्रेणीक्रम में तथा वोल्टमीटर को समांतरक्रम में जोड़ देंगे।
उसके बाद दाब कुंजी दबाकर बैटरी से धारा प्रवाहित की जाती है। ऐमीटर से धारा का मान तथा वोल्टमीटर से विभवांतर का मान ज्ञात होता है। परिवर्त्तन प्रतिरोध को स्लाइड पर आगे-पीछे खिसकाकर इस प्रयोग को बार-बार दुहराते है और अलग-अलग स्थितियों में ऐमीटर से धारा का मान तथा वोल्टमीटर से विभवांतर का मान ज्ञात करते है। प्राप्त मान को देखने पर पता चलता है कि विभवांतर का मान दोगुना होने पर धारा का मान भी दोगुना हो जाता है तथा विभवांतर का मान आधा होने पर धारा का मान भी आधा हो जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चालक के सिरों के बीच का विभवांतर उस चालक से प्रवाहित होने वाली धारा का सीधा समानुपाती होता है।
अब विभवांतर (V) को x-अक्ष पर तथा धारा (I) को y-अक्ष पर रखकर एक ग्राफ खींचा जाता है तो हमें एक सरल रेखा प्राप्त होती है, जो ओम के नियम को सत्यपित करती है।
उत्तर-
विधुत बल्ब→ विधुत बल्ब काँच का बना होता है। इसके अंदर टंग्स्टन तार का बना तंतु (फिलामेंट) होता है। बल्ब के अंदर की हवा निकाल कर उसमें निष्क्रिय गैस भर दी जाती है, क्योंकि यदि हवा की उपस्थिति में फिलामेंट से धारा प्रवाहित करायी जाए तो गर्म होने पर यह ऑक्सीकृत होकर भंगुर हो जाएगा तथा चूर-चूर हो जाएगा। फिलामेंट के सिरों को चालक तार द्वारा बल्ब के आधार से जोड़ दिया जाता है। बल्ब का आधार एक होल्डर से लगाया जाता है, जिससे धातु के पिन चालक तार को स्पर्श करते है। जब स्विच दबाने पर विधुत धारा प्रवाहित होती है, तो फिलामेंट गर्म हो जाता है और गर्म होकर बल्ब दीप्त अर्थात् जलने लगता है।
उत्तर-
विधुत हीटर→ विधुत हीटर में धातु के आधार पर चीनी मिट्टी की एक चिपटी प्लेट लगी रहती है, जिसमें वक्राकार खाँचे बनी होती है। इन वक्राकार खाँचों में नाइक्रोम तार की कुंडली फैली रहती है तथा इसका मुख्य सिरा तारों से जुड़े रहते है। नाइक्रोम तार का विशिष्ट प्रतिरोध तथा गलनांक काफी अधिक होता है, जिसके कारण प्रबल धारा प्रवाहित होने पर भी यह गलता नहीं है। हीटर की कुंडली में प्रबल धारा प्रवाहित करने पर यह कुंडली गर्म होकर लाल हो जाती है और अधिक मात्रा में ऊष्मा प्रदान करती है। इसलिए विधुत हीटर का उपयोग चूल्हे के रूप में भी किया जाता है।
उत्तर-
विधुत इस्त्री (विधुत आयरन)→ विधुत आयरन नाइक्रोम की पतली पत्ती का बना होता है। इसमें अभ्रक की पत्ती पर नाइक्रोम का तार लपेटा रहता है। इस पत्ती को ऊपर और नीचे से अभ्रक की दो पत्तियों के बीच रखते हुए लोहे के प्लेट को ऊपर कस दिया जाता है, जिससे आयरन के बाहरी ढाँचों से विधुत संपर्क ना रहें। जब तार से विधुत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह गर्म होकर लोहे की प्लेट को गर्म कर देती है, जिससे हम अपने कपड़े को इस्त्री करते है।
उत्तर- ऐसी व्यवस्था जिससे लगातार विधुत धारा प्राप्त होती है, उसे विधुत परिपथ कहते है। विधुत परिपथ एक ऐसा पथ होता है, जो विधुत ऊर्जा के स्रोत जैसे:- चालक तार, सेल, बैटरी, ऐमीटर, वोल्टमीटर, प्लग कुंजी इत्यादि से जुड़ा रहता है।
उत्तर- विधुत धारा का S.I. मात्रक ऐम्पियर (A) होता है।
ऐम्पियर:- जब किसी चालक से 1 सेकेंड में 1 कूलम्ब आवेश प्रवाहित होता है, तो उस चालक से प्रवाहित धारा 1 ऐम्पियर कहलाती है।
उत्तर- उस युक्ति का नाम बैटरी है, जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता प्रदान करती है।
उत्तर- यदि एक कूलम्ब आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 जूल (J) हो तो उन दोनों बिंदुओं के बीच का विभवांतर 1 वोल्ट (V) होता है।
1 वोल्ट = 1 जूल/1 कूलम्ब
उत्तर- मोटे तार का अनुप्रस्थ परिच्छेद क्षेत्रफल (A) पतले तार के अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए मोटे तार का प्रतिरोध (R) पतले तार की अपेक्षा कम होगा। इसलिए जिस तार का प्रतिरोध जितना कम होगा उससे होकर प्रवाहित होने वाली धारा उतनी ही अधिक होगी। इसलिए मोटे तार से विधुत धारा आसानी से प्रवाहित होगी।
उत्तर- विधुत टोस्टरों एवं विधुत इस्तरियों के तापन अवयव नाइक्रोम का बना होता है। नाइक्रोम एक मिश्रधातु है। ये तापन अवयव मिश्रधातु के बनाए जाते है, क्योंकि—
मिश्रधातु का गलनांक अधिक होता है।
मिश्रधातु की प्रतिरोधकता उसके अव्ययी धातु से अधिक होता है।
उत्तर- आयरन (Fe) मर्करी (Hg) की तुलना में अच्छा चालक है, क्योंकि आयरन की प्रतिरोधकता मर्करी की प्रतिरोधकता से कम होती है।
उत्तर- जब अनेक युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है तो प्रत्येक युक्ति समान विभवांतर प्राप्त कर लेता है। इसलिए यदि कभी एक युक्ति बंद या खराब भी हो जाती है, तो अन्य युक्ति कार्य करती रहती है। इसलिए श्रेणीक्रम में संयोजित करने की अपेक्षा वैधुत युक्तियों को पार्श्व क्रम (समांतर क्रम) में संयोजित करना अधिक लाभप्रद है।
उत्तर- विधुत हीटर की डोरी मोटे ताँबे का बना होता है। इसलिए इसका प्रतिरोध अवयव की तुलना में कम होता है। डोरी और अवयव से समान धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न ऊष्मा का मान अवयवों में अधिक होता है। इसलिए अवयव अधिक गर्म होकर उत्तप्त हो जाता है जबकि डोरी ना गर्म होती है और ना उत्तप्त होती है।
उत्तर- विधुत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण, विधुत शक्ति द्वारा किया जाता है।
उत्तर- किसी विधुत परिपथ में दो बिन्दुओ के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को दोनों बिन्दुओं के बीच में समांतर क्रम (पार्श्व क्रम) में संयोजित किया जाता है।
उत्तर- टंगस्टन की प्रतिरोधकता उच्च होती है। इसलिए विधुत आवेश के कारण बिना बहुत अधिक गर्म हुए प्रकाश उत्पन्न कर सकता है तथा इसका गलनांक भी अधिक होता है। इसलिए विधुत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एक मात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है।
उत्तर- मिश्रधातु की प्रतिरोधकता शुद्ध धातु की अपेक्षा अधिक होती है, जिसके कारण उनका जल्दी ऑक्सीकरण नहीं होता है और वें उच्च तापमान को भी सह सकते है। इसलिए विधुत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विधुत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रधातुओं के बनाये जाते है।
उत्तर- घरेलू विधुत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग करने पर विधुत पथ का प्रवाह अलग-अलग बँट जाने के कारण वोल्टेज कम हो जाएगी। इसके अतिरिक्त श्रेणीक्रम संयोजन के कारण सारे घरों के बल्ब, पंखे, इत्यादि एक ही स्विच से चलेंगे अर्थात् उनको स्वतंत्र रूप से जलाया या बुझाया नहीं जा सकेगा। इसलिए घरेलू विधुत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग नहीं किया जाता है।
उत्तर- किसी तार का अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में जैसे-जैसे परिवर्त्तन होता है, वैसे-वैसे उसकी प्रतिरोधकता में भी परिवर्त्तन होता है। किसी तार का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल प्रतिरोध का व्युत्क्रमनुपाती होता है अर्थात् अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से प्रतिरोधकता कम होती है तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में कमी होने से प्रतिरोधकता बढ़ती है।
उत्तर- कॉपर तथा एलुमिनियम के तारों का प्रतिरोध न्यूनतम होता है जिसके कारण इन तारों से विधुत धारा का प्रवाह आसानी से होता है। इसलिए विधुत संचारण के लिए प्रायः कॉपर तथा एलुमिनियम के तारों का उपयोग किया जाता है।