उत्तर- तीव्र प्रकाश में आँख की पुतली सिकुड़ कर छोटी हो जाती है। इसलिए तीव्र प्रकाश से कम प्रकाश वाले कमरे में जाने पर आँख की पुतली को फैलकर बड़ा होने में कुछ समय लग जाता है। इसलिए तीव्र प्रकाश से किसी कम प्रकाश वाले कमरे में जाने पर वहाॅं की वस्तुओं को स्पष्ट देखने में कुछ समय लगता है।
उत्तर- आँखों की ऐसी क्षमता जिससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी अपने आप बदलती रहती है, जिससे नेत्र दूर स्थित तथा निकट स्थित वस्तुओं को आसानी से स्पष्ट रूप से देख सकता है। मानव नेत्र की स्पष्ट रूप से देखने की इस क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहते है।
उत्तर-
निकट बिंदु:- आँख के निकट का वह बिंदु जहाँ पर रखी वस्तुएँ स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है, उसे निकट बिंदु कहते है। सामान्य आँख के लिए निकट बिंदु 25 cm होता है।
दूर बिंदु:- आँख से दूरस्थ (दूर) का वह बिंदु जहाँ पर रखी वस्तुएँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, उसे दूर बिंदु कहते है। सामान्य आँख के लिए दूर बिंदु अनंत होता है।
उत्तर- निकट बिंदु से दूर बिंदु तक के बीच की दूरी को दृष्टि विस्तार कहते है। दृष्टि के लिए हमारे दो नेत्र होते है क्योंकि दो नेत्रों के कारण हमारा दृष्टि क्षेत्र विस्तृत (बढ़) जाता है। हमारे एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150⁰ होता है जबकि हमारे दो नेत्रों का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र 180⁰ होता है।
उत्तर- जब मानव नेत्र का निकट बिंदु या दूर बिंदु प्रभावित हो जाता है, तो वह नेत्र दोषयुक्त कहलाती है और उस दोषयुक्त आँख से देखने की क्रिया दृष्टिदोष कहलाती है।
दृष्टिदोष मुख्यतः चार प्रकार की होती है—
निकट दृष्टिदोष
दीर्घ (दूर) दृष्टिदोष
जरा दृष्टिदोष
अबिंदुकता
उत्तर- आँख का वह दोष जिसमें कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है लेकिन वह दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता है। आँख के ऐसे दोष को निकट दृष्टिदोष कहते है।
कारण:- निकट दृष्टिदोष होने के निम्न कारण है—
नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाना।
उपचार:- निकट दृष्टिदोष को दूर करने के लिए हमें उचित फोकस दूरी के अवतल लेंस का उपयोग करना चाहिए।
उत्तर- आँख का वह दोष जिसमें कोई व्यक्ति दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है लेकिन वह निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता है। आँख के ऐसे दोष को दीर्घ (दूर) दृष्टिदोष कहते है।
कारण:- दीर्घ (दूर) दृष्टिदोष होने के निम्न कारण है—
नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
नेत्र लेंस की फोकस दूरी बढ़ हो जाना।
उपचार:- दीर्घ (दूर) दृष्टिदोष को दूर करने के लिए हमें उचित फोकस दूरी के उत्तल लेंस का उपयोग करना चाहिए।
उत्तर- आँख का वह दोष जिसमें कोई व्यक्ति निकट तथा दूर स्थित दोनों वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है, आँख के ऐसे दोष को जरा दृष्टिदोष कहते है।
उपचार:- इस दोष को दूर करने के लिए बाइफोकल लेंस के चश्मे का उपयोग किया जाता है। इस लेंस का ऊपरी भाग अवतल तथा निचला भाग उत्तल लेंस का होता है।
उत्तर- आँख का वह दोष जिसमें किसी वस्तु का प्रतिबिंब कभी रेखीय, कभी वृतीय (गोलाकार), कभी बेलनाकार या किसी अन्य आकार का बनता है, तो आँख के ऐसे दोष को अबिन्दुकता कहते है।
उपचार:- इस दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस के चश्मे का उपयोग किया जाता है।
उत्तर-
प्रिज्म:- काँच का बना वह पारदर्शी माध्यम जिनके कोई भी दो सम्मुख फलक आपस में समांतर नहीं होते है, उसे प्रिज्म कहते है। प्रिज्म में पाँच (5) सतहें होती है। इन पाँच सतहों में दो त्रिभुजाकार तथा तीन अन्य सतहें आयताकार होती है।
प्रिज्म कोण:- प्रिज्म के किन्हीं दो अपवर्तक सतहों के बीच के कोण को प्रिज्म का कोण कहते है।
उत्तर- जब सूर्य का प्रकाश (श्वेत प्रकाश) किसी प्रिज्म से गुजरता है, तो वह अपने विभिन्न अवयवी रंगों में विभक्त हो जाता है। सूर्य के प्रकाश को विभिन्न रंगों में विभक्त होने की घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते है।
उत्तर- जब सातों रंग प्रिज्म के दूसरी ओर एक परदे पर रंगीन पट्टी के रूप में प्राप्त होती है, तो उसे वर्ण पट्ट या स्पेक्ट्रम कहते है। वर्ण पट्ट पर प्राप्त रंगों के क्रम इस प्रकार होते है— बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
उत्तर-
शुद्ध वर्णपट्ट:- वह वर्णपट्ट जिस पर प्राप्त सभी रंग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते है, उसे शुद्ध वर्णपट्ट कहते है।
अशुद्ध वर्णपट्ट:- वह वर्णपट्ट जिस पर एक रंग दूसरे रंग पर आच्छादित (overlap) हो जाते है, उसे अशुद्ध वर्णपट्ट कहते है।
उत्तर- कुछ मनुष्य ऐसे होते है, जिनके आँख की रेटिना में शंकु नहीं होते है। शंकु आकृति के तंतु रंग परिवर्त्तन की समझ के लिए उत्तरदायी होते है। अतः शंकु नहीं होने के कारण वे कुछ रंगों को नहीं देख पाते है। ऐसे मनुष्य को वर्णांध कहते है।
उत्तर- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है अर्थात् सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है या विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाति है, तो प्रकाश का अपवर्त्तन होता है। वायुमंडल में घटने वाले प्रकाश के इस अपवर्त्तन को वायुमंडलीय अपवर्त्तन कहते है।
उत्तर- वायुमंडलीय अपवर्त्तन के कारण तारों से निकलने वाला प्रकाश क्रमिक रूप से बढ़ता-घटता रहता है। अतः तारों से निकलने वाला प्रकाश जब बढ़ता है, तो चमकीला प्रतीत होता है, लेकिन जब तारों का प्रकाश घटता है, तो धुँधला दिखाई पड़ता है। इस तरह बार-बार तारों का चमकीला या धुँधला दिखाई देने के कारण तारे टिमटिमाते नजर आते है।
उत्तर- तारों की तुलना में ग्रह पृथ्वी के काफी नजदीक है। इसलिए तारों की अपेक्षा ग्रहें बड़ी दिखाई पड़ती है, जिसके कारण ग्रहों से प्राप्त होने वाले प्रकाश की तीव्रता अधिक होती है। इसलिए ग्रह नहीं टिमटिमाते है।
उत्तर- जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न गैसों के अणु और परमाणु को अवशोषित कर लेता है। गैसों के ये अणु और परमाणु सभी दिशाओं में प्रकाश को पुनः अवशोषित करते है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है।
उत्तर- कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना प्रदर्शित करने वाले प्रभाव को टिंडल प्रभाव कहते है।
उत्तर- बैंगनी तथा नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन अन्य रंगों की तुलना में अधिक होता है। हमारी आँख बैंगनी रंग की तुलना में नीले रंग के लिए अधिक प्रभावी होता है। इसलिए नीले रंग का प्रकीर्णन प्रचुर मात्रा में दिखाई देता है, जिसके कारण स्वच्छ आकाश का रंग नीला होता है।
उत्तर- सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज के समीप रहता है। क्षितिज के समीप नीले रंग का अधिकांश भाग वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा प्रकीर्णित हो जाता है तथा लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है, जिसके कारण लाल रंग का प्रकाश ही हमारे नेत्रों तक पहुँच पाता है। इसलिए सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ (रक्त के जैसा लाल) प्रतीत होता है।
उत्तर- लाल रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता है, जिसके कारण लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। अतः लंबी दूरी से भी लाल रंग को देखा जा सकता है। इसलिए खतरे का संकेत लाल होता है।
उत्तर- Will be published soon...