प्रकाश→ प्रकाश वह बाह्य भौतिक कारण है, जिससे हमें किसी वस्तु को देखने की अनुभूति होती है। प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है। प्रकाश हमेशा सीधी रेखा में गमन करती है। निर्वात में प्रकाश का वेग 3×10⁸ m/s होता है। प्रकाश एक विधुत चुंबकीय तरंग भी है।
किरण→ प्रकाश के गमन पथ की दिशा को किरण कहते है।
उत्तर- किरणों के समूह को किरणपुंज कहते है।
किरणपुंज तीन प्रकार के होते है—
अभिसारी किरणपुंज
अपसारी किरणपुंज
समांतर किरणपुंज
उत्तर- जब प्रकाश की किरणें किसी चिकनी सतह से टकराकर लौट जाती है, तो उसे प्रकाश का परावर्त्तन कहते है।
उत्तर-प्रकाश के परावर्त्तन के दो नियम होते है—
आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिन्दु पर खींचा गया अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते है।
आपतन कोण, परावर्त्तन कोण के बराबर होता है।
उत्तर- किसी बिन्दु स्रोत से आती हुई प्रकाश की किरणें परावर्त्तन या अपवर्त्तन के बाद किसी बिन्दु पर काटती है या काटती हुई प्रतीत होती है, तो उसे उस वस्तु का प्रतिबिंब कहते है।
प्रतिबिंब दो प्रकार के होते है—
वास्तविक प्रतिबिंब
आभासी या काल्पनिक प्रतिबिंब
उत्तर-
उत्तर- वैसा चिकना सतह, जो प्रकाश का परावर्त्तन करता है, उसे दर्पण कहते है।
दर्पण तीन प्रकार के होते है—
गोलीय दर्पण
समतल दर्पण
परवलयिक दर्पण
उत्तर- वैसा दर्पण जिसका परावर्तक सतह गोलाकार हो, उसे गोलीय दर्पण कहते है।
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है—
अवतल दर्पण
उत्तल दर्पण
उत्तर-
अवतल दर्पण:- वैसा दर्पण जिसका परावर्त्तक सतह धँसा हुआ हो तथा उभरे हुए भाग पर कलई (रंजतित) की गई हो, उसे अवतल दर्पण कहते है।
उत्तल दर्पण:- वैसा दर्पण जिसका परावर्त्तक सतह उभरा हुआ हो तथा उभरे हुए भाग पर कलई (रंजतित) की गई हो, उसे अवतल दर्पण कहते है।
उत्तर- अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण में निम्न अंतर है—
उत्तर-
समतल दर्पण:- वैसा दर्पण जिसका परावर्त्तक सतह समतल हो, उसे समतल दर्पण कहते है।
परवलयिक दर्पण:- वैसा दर्पण जिसका परावर्त्तक सतह पूरी तरह गोल नहीं होता है, उसे परवलयिक दर्पण कहते है।
उत्तर-
वक्रता त्रिज्या:- दर्पण के वक्रता केंद्र तथा दर्पण के ध्रुव के बीच की दूरी को वक्रता त्रिज्या कहते है। इसे R से सूचित करते है।
फोकस दूरी:- दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते है। इसे f से सूचित करते है।
उत्तर- अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण के निम्न उपयोग है—
उत्तर- गोलीय दर्पण द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिंब कभी दर्पण के सामने बनता है, तो कभी दर्पण के पीछे बनता है। इसलिए इन दोनों स्थितियों में अंतर स्पष्ट करने के लिए एक परिपाटी की आवश्यकता होती है, जिसे चिह्न परिपाटी कहते है।
उत्तर- प्रतिबिंब की ऊँचाई और वस्तु (बिम्ब) की ऊँचाई के अनुपात को आवर्धन कहते है। इसे m से सूचित करते है।
आवर्धन (m) = प्रतिबिंब की ऊँचाई/ बिंब की ऊँचाई = h₂/h₁
उत्तर- अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण में निम्नलिखित अंतर है—
उत्तर- अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर और निकटवर्ती सभी आपतित किरणें परावर्त्तन के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिंदु पर अभिसरित होती है, उस बिंदु को अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहते है। इसे f से सूचित करते है।
उत्तर- उत्तल दर्पण का उपयोग वाहनों में साइड मिरर के रूप में इसलिए होता है क्योंकि उत्तल दर्पण में हमेशा सीधा प्रतिबिंब बनता है तथा यह विस्तृत दृष्टिक्षेत्र बनाता है।
उत्तर- आवर्धन (m) = h₂/h₁ = +1, अर्थात् h₂ = h₁
इससे स्पष्ट है कि प्रतिबिंब की ऊँचाई और वस्तु की ऊँचाई आपस में बराबर है तथा धनात्मक चिह्न यह दर्शाता है कि प्रतिबिंब काल्पनिक और सीधा है।
उत्तर- वाहनों के अग्रदीपों (हेडलाइट) में अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है क्योंकि प्रकाश स्रोत दर्पण के फोकस पर व्यवस्थित हो जाती है तथा परावर्त्तन के बाद प्रकाश की किरण समांतर रूप से फैल जाती है, जिसके कारण वाहनों के आगे की वस्तुओं को देखने में आसानी होती है। इसलिए वाहनों के अग्रदीपों (हेडलाइट) में अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है।
उत्तर-
∵ R = 20 cm
f = R/2
f = 20/2 = 10 cm