उत्तर- कार्बन एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। हमारे दैनिक उपयोग में तथा सभी उपयोगी वस्तुओं जैसे- कपड़ा, दवाई, खाद्य पदार्थो, पेय पदार्थो इत्यादि में कार्बन के यौगिकों का उपयोग होता है। कार्बन प्रकृति में स्वतंत्र तथा संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है। मुक्त अवस्था में यह कोयला के रूप में और संयुक्त अवस्था में या कार्बोनेट, हाइड्रोजन कार्बोनेट, पेट्रोलियम तथा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के रूप में पाया जाता है। भूपर्पटी में खनिजों के रूप में 0.02% कार्बन उपस्थित है, तथा वायुमंडल में 0.03% CO₂ के रूप में उपस्थित है। कार्बन का संकेत C और परमाणु संख्या 6 होता है।
उत्तर- कार्बन की परमाणु संख्या 6 होती है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 4 होता है, अर्थात इसके बाहरी कोश में 4 इलेक्ट्रॉन होता है। अतः कार्बन को अपना अष्टक पूरा करने अर्थात स्थायी संरचना प्राप्त करने के लिए 4 इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने या त्याग करने की आवश्यकता होती है लेकिन 6 प्रोट्राॅन वाले नाभिक के लिए 4 इलेक्ट्रॉन ग्रहण करना या 4 इलेक्ट्रॉन का त्याग करना मुश्किल है। इसलिए कार्बन अपने अन्य परमाणुओं अथवा अन्य तत्त्वों के परमाणुओं के साथ साझेदारी करता है और अणुओं का निर्माण करता है। इसलिए कार्बन परमाणु हमेशा सह-संयोजी यौगिक का निर्माण करते है।
उत्तर-
सह-संयोजी आबंध → जब दो परमाणुओं के बीच समान अर्थात बराबर इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी होती है, तो उससे बनने वाले आबंध (बंधन) को सह-संयोजी आबंध कहते हैं।
आबंध युग्म → जो इलेक्ट्रॉन युग्म साझा में भाग लेते हैं, और आबंध बनाते हैं, उसे आबंध युग्म कहते हैं।
उत्तर- सह-संयोजी आबंध वाले अणुओं में अंदर प्रबल आबंध होता है, लेकिन इनका अंतराणुक बल कमजोर होता है। जिनके कारण कम ताप के कारण भी इनके कमजोर अंतराणुक बल आसानी से टूट जाते है। इसलिए सह-संयोजी यौगिक के क्वथनांक तथा गलनांक कम होते हैं।
उत्तर- इनके परमाणुओं के बीच बराबर-बराबर अर्थात समान इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी होती है, जिसके कारण ये आवेश उत्पन्न नहीं करते हैं। इसलिए सह-संयोजी यौगिक विधुत के सुचालक होते हैं।
उत्तर- सह-संयोजक यौगिक दो प्रकार के होते हैं।
अध्रुवीय सह-संयोजी आबंध
ध्रुवीय सह-संयोजी आबंध
अध्रुवीय सह-संयोजी आबंध:- जब दो समान परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉन की साझेदारी होती है, तब आबंधित इलेक्ट्रॉन परमाणुओं के नाभिकों द्वारा समान रूप से आकर्षित रहती है, जिसके कारण किसी भी परमाणु पर ध्रुव नहीं बन पाता है। ऐसे सह-संयोजी आबंध को अध्रुवीय सह-संयोजी आबंध कहते हैं जैसे:- H₂, O₂, N₂ इत्यादि।
ध्रुवीय सह-संयोजी आबंध:- जब दो असमान परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी होती है, तब आबंधित इलेक्ट्रॉन विधुत ऋणात्मक परमाणु की ओर आकर्षित रहती है। अतः ऐसे सह-संयोजी आबंध को ध्रुवीय सह-संयोजी आबंध कहते हैं। जैसे:- HCl, CH₃Cl इत्यादि।
उत्तर- सह-संयोजी यौगिकों के निम्न गुण होते हैं—
इसके क्वथनांक तथा गलनांक निम्न होते हैं।
ये विधुत के कुचालक होते हैं।
ये द्रव तथा गैसीय अवस्थाओं में पाए जाते हैं।
ये अध्रुवीय तथा ध्रुवीय यौगिक होते हैं।
उत्तर- कोई तत्त्व प्रकृति में विभिन्न भौतिक गुणों के साथ विविध रूपों में पाया जाता है, तो उस तत्त्व के विभिन्न रुप को अपरूप कहते हैं तथा इस घटना को अपरूपता कहते हैं। हीरा तथा ग्रेफाइट कार्बन के दो मुख्य अपरूप है।
उत्तर- हीरा कार्बन का सबसे शुद्ध रूप है। इसकी संरचना नियमित चतुष्फलक होती है। इसमें कार्बन का प्रत्येक परमाणु कार्बन के अन्य चार परमाणुओं के साथ आबंधित होता है। इसमें आठ फलक होते हैं। इसका अपवर्तनांक उच्च होता है, जिसके कारण हीरा चमकीला दिखाई पड़ता है। इसमें कोई भी इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र नहीं होते हैं, जिसके कारण हीरा विधुत और ऊष्मा का कुचालक होता है। हीरा का उपयोग काॅंच काटने, पत्थरों में छेद करने तथा आभूषण बनाने में होता है।
उत्तर- ग्रेफाइट कार्बन का शुद्धतम तथा स्थायी अपरूप है। इसकी संरचना षट्फलकीय होती है। इसमें कार्बन का प्रत्येक परमाणु कार्बन के तीन अन्य परमाणुओं के साथ आबंधित होते हैं। इसके परतों के बीच का आकर्षण बल कमजोर होता है, जिसके कारण यह चिकना तथा फिसलनशील होता है। ग्रेफाइट में चौथा संयोजी इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रह जाता है, जिसके कारण ग्रेफाइट विधुत और ऊष्मा का सुचालक होता है। ग्रेफाइट का उपयोग पेंसिल बनाने और विधुत संयंत्रों में इलेक्ट्रॉड के रूप में होता है।
उत्तर- फुलेरीन कार्बन अपरूप का एक अन्य वर्ग है। इसमें कार्बन के परमाणु फुटबॉल के रूप में व्यवस्थित होते है। इसमें 20 फलक होते हैं। इसमें कार्बन परमाणुओं के बीच एक-बंध और द्वि-बंध होते हैं। यह ना अधिक कठोर होता है और ना अधिक मुलायम। कुछ फुलेरीन विधुत के चालक होते हैं तथा इनके द्रवणांक उच्च होते हैं।
उत्तर- कार्बन यौगिकों की विशाल संख्या होने के दो निम्न कारण है—
कार्बन यौगिकों में श्रृंखलन का गुण होना।
कार्बन की चतु: संयोजकता का गुण होना।
उत्तर- कार्बन परमाणु को अपने आप में जुड़ने का गुण होता है। कार्बन के इस गुण को श्रृंखलन या स्वबंधन या कैटिनीकरण कहते हैं। इस गुण के कारण कार्बन परमाणु आपस में जुड़कर सीधी लंबी श्रृंखला, शाखायुक्त श्रृंखला या बंद श्रृंखला बनाते हैं।
| | | |
सीधी श्रृंखला:- – C–C–C–C–
| | | |
↑ ↑ ↑
शाखायुक्त श्रृंखला:- –C–Ç–C–
↓ ↓ ↓
–C–
↓
बंद श्रृंखला:- \/
C
/ \
=C C=
| |
=C C=
\ /
C
/\
उत्तर-
संतृप्त यौगिक:- कार्बन परमाणुओं के बीच केवल एक-आबंध से जुड़े कार्बन के यौगिक को संतृप्त यौगिक कहते हैं।
असंतृप्त यौगिक:- द्वि-आबंध या त्रि-आबंध से जुड़े कार्बन के यौगिक को असंतृप्त यौगिक कहते हैं।
उत्तर- केवल कार्बन तथा हाइड्रोजन से बने यौगिक को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। जैसे:- CH₄ (मिथेन), C₂H₆ (एथेन) इत्यादि।
हाइड्रोकार्बन मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं।
संतृप्त हाइड्रोकार्बन
असंतृप्त हाइड्रोकार्बन
ऐलिसाइक्लिक हाइड्रोकार्बन
एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन
उत्तर-
संतृप्त हाइड्रोकार्बन:- वैसे हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन परमाणु की चारों संयोजकताऍं एकल बंधन द्वारा जुड़ी रहती है, उसे संतृप्त हाइड्रोकार्बन कहते हैं। ये कम अभिक्रियाशील होते हैं।
असंतृप्त हाइड्रोकार्बन:- वैसे हाइड्रोकार्बन जिनमें दो परमाणुओं के बीच में द्वि-बंध या त्रि-बंध होता है, उसे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन कहते हैं । ये अधिक अभिक्रियाशील होते हैं।
उत्तर-
उत्तर-
ऐल्कीन:- वैसे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें अंतिम दो कार्बन परमाणु आपस में द्वि-बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। उसे एल्कीन कहते हैं। ऐल्कीन का सामान्य सूत्र CnH2n होता है। एथीन इसका प्रथम सदस्य होता है।
ऐल्काइन:- वैसे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें अंतिम दो कार्बन परमाणु आपस में त्रि-बंध द्वारा जुड़े रहते हैं, उसे एल्काइन कहते हैं। इसका सामान्य सूत्र CnH2n-2 होता है। एथाइन इसका का प्रथम सदस्य होता है।
उत्तर- वैसे कार्बनिक यौगिक जिसके गुण संतृप्त और असंतृप्त कार्बन यौगिक के समान होते हैं लेकिन उसकी संरचना में कार्बन परमाणुओं की वलय संरचना होती है, उसे ऐलिसाइक्लिक हाइड्रोकार्बन कहते हैं। इसका सामान्य सूत्र एल्कीन के सामान CnH2n होती है। जहाँ n= 1, 2, 3, 4,......... इत्यादि।
जैसे– साइक्लो प्रोपेन (C₃H₆)
उत्तर- वैसे हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन के कम से कम 6 परमाणु एक बंद श्रृंखला में रहते हैं और वे आपस में एक के बाद एकल बंधन तथा द्वि-बंधन से जुड़े रहते हैं, उसे एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन कहते हैं। इसका प्रथम सदस्य ऐथीन (C₆H₆) होता है। इस यौगिक में एक विशेष प्रकार की सुगंध होती है इसलिए इसमें इसे एरोमैटिक कहा जाता है।
उत्तर- हाइड्रोकार्बन की निम्न भौतिक अवस्थाऍं होती हैं।
C₁ से C₄ वाले हाइड्रोकार्बन→ गैसीय अवस्था
C₅ वाले हाइड्रोकार्बन→ द्रव तथा गैसीय अवस्था
C₆ से C₁₆ वाले हाइड्रोकार्बन→ द्रव अवस्था में
C₁₆ से अधिक वाले हाइड्रोकार्बन→ ठोस अवस्था में होते हैं।
उत्तर- ऐसे विभिन्न कार्बनिक यौगिक जिसका अनुसूत्र समान हो लेकिन संरचना सूत्र भिन्न-भिन्न हो, उसे समावयवी कहते हैं और इस घटना को समावयता कहते हैं।
उत्तर-
नॉर्मल एल्केन:- सीधी श्रृंखला वाले एल्केन को नॉर्मल एल्केन कहते हैं।
आइसो एल्केन:- जब एक कार्बन परमाणु से तीन कार्बन परमाणु संलग्ल (जुड़े) होते हैं तो उसे आइसो एल्केन कहते हैं।
नीयो एल्केन:- जब एक कार्बन परमाणु से चार परमाणु संलग्न (जुड़े) होते हैं, उसे नीयो एल्केन कहते हैं।
उत्तर-
विषम परमाणु:- हाइड्रोजन को हटाने वाले तत्वों को विषम परमाणु कहते हैं। ये विषम परमाणु हाइड्रोकार्बन यौगिकों मे से हाइड्रोजन को हटाकर स्वयं उसका स्थान ग्रहण कर लेते हैं।
प्रकार्यात्मक समूह:- किसी कार्बन यौगिक में उपस्थित वें समूह जिनके ऊपर उसी यौगिक का रासायनिक गुण निर्भर करता है, उसे प्रकार्यात्मक समूह कहते हैं।
जैसे:- एथीन (C₂H₄) में उपस्थित ऐल्कीन समूह प्रकार्यात्मक समूह है और एथेनॉल में उपस्थित ऐल्कोहाॅली समूह प्रकार्यात्मक समूह है।
उत्तर- कार्बन यौगिकों की ऐसी श्रृंखला जिसके सभी सदस्यों में एक ही प्रकार्यात्मक समूह रहता है तथा दो क्रमागत सदस्यों के अणुसूत्र में (–CH₂) का अंतर रहता है, उसे समजातीय श्रेणी कहते हैं।
जैसे– मेथेन (CH₄) और एथेन (C₂H₆) में (–CH₂) का अंतर है।
उत्तर- समजातीय श्रेणी की निम्न विशेषताऍं हैं—
समजातीय श्रेणी के सभी सदस्यों का सामान्य सूत्र एक ही होता है।
समजातीय श्रेणी के सभी सदस्यों में एक ही प्रकार्यात्मक समूह उपस्थित रहता है।
समजातीय श्रेणी के सभी सदस्य एक ही रसायनिक गुण दर्शाते हैं।
समजातीय श्रेणी के दो क्रमागत सदस्यों में –CH₂ का अंतर होता है।
समजातीय श्रेणी के सदस्यों के भौतिक गुणों में क्रमिक परिवर्तन पाया जाता है।
उत्तर- कार्बन यौगिक को ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलाने पर उष्मा एवं प्रकाश के साथ-साथ CO₂ गैस भी देता है, जिसे दहन कहते हैं। दहन एक ऑक्सीकरण क्रिया है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन का संयोग होता है।
जैसे:- CH₄ + 2O₂ → CO₂ + 2H₂O + उष्मा एवं प्रकाश
उत्तर-
जीवद्रव्यमान→ पेड़ पौधे तथा जीव जंतुओं के शरीर में स्थित पदार्थों को जीवद्रव्यमान कहते हैं।
पेट्रोलियम→ पृथ्वी के अंदर विभिन्न गहराइयों में पाये जाने वाले काले रंग के गाढ़े चिपचिपे एवं विशेष गंध वाले अत्यंत ज्वलनशील तरल पदार्थ को पेट्रोलियम कहते हैं। यह विभिन्न हाइड्रोकार्बन का एक जटिल मिश्रण है।
उत्तर- वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिनमें ऑक्सीजन का संयोग होता है, उसे ऑक्सीकरण अभिक्रिया कहते हैं।
उत्तर-
संकलन अभिक्रिया→ वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें कार्बन यौगिकों में द्वि-बंध तथा त्रि-बंधन प्रतिकारकों का योग होता है, उसे संकलन अभिक्रिया कहते हैं।
उत्प्रेरक→ उत्प्रेरक ऐसे पदार्थ को कहते हैं, जो किसी अभिक्रिया की दर को बढ़ा या घटा देते हैं, लेकिन वे स्वयं अभिक्रिया के अंत में अपरिवर्तित रहते हैं, क्योंकि ये अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।
उत्तर- किसी यौगिक की हाइड्रोजन के साथ संकलन अभिक्रिया को हाइड्रोजनीकरण अभिक्रिया कहते हैं। इस क्रिया का उपयोग वनस्पति तेल से वनस्पति घी बनाने में होता है।
उत्तर-
भौतिक गुण—
यह रंगहीन होता है।
इसमें मीठी गंध होती हैं।
यह एक अच्छा विलायक है।
इसे थोड़ी मात्रा में पीने से भी मादकता पैदा हो जाती है।
इस का क्वथनांक 351K(78°C) होता है।
इस का गलनांक 156K(–117°C) होता है।
रासायनिक गुण—
यह उदासीन होता है।
इसका लिटमस पत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
एथेनॉल (एल्कोहाॅल) सोडियम से अभिक्रिया करके सोडियम एथाॅक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस बनाता है।
उत्तर- एथेनॉल (एल्कोहाॅल) के निम्न उपयोग है—
वीयर, विस्की, शराब में।
घावों तथा सिरिंजो को रोगाणु रहित करने में।
ईधंन के रूप में।
ठंडे देशों के वाहनों के रेडिएटरो में।
तेल तथा इत्र के निर्माण में।
मृत जीवों तथा पौधों के संरक्षण में।
उत्तर- गन्ना, सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में बदलने में सबसे अधिक सक्षम होता है। गन्ने के रस से सिरा (मोलेसस) बनाया जाता है, तथा सिरा के किण्वन से एथेनॉल बनाया जाता है।
उत्तर-
भौतिक गुण:-
यह रंगहीन तथा तीखी गंध वाला द्रव होता है।
यह जल तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है।
जल में विलेय होने से ताप की उत्पत्ति होती है।
रासायनिक गुण:-
यह अम्लीय होता है।
यह नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता है।
यह सोडियम कार्बोनेट से अभिक्रिया करके सोडियम, लवण, जल तथा CO₂ गैस बनाता है ।
उत्तर- एथेनॉइक अम्ल के निम्न में उपयोग है—
आँवले के रूप में
विलायक के रूप में
औषधि, साबुन, इत्र इत्यादि के रूप में
आचार बनाने तथा ठंडे पेय पदार्थ में
उत्तर- कार्बोक्सिलिक अम्ल एवं अल्कोहल की अभिक्रिया से एस्टर बनता है। एस्टर बनने की इस क्रिया को एस्टीकरण कहते हैं।
कार्बोक्सिलिक अम्ल + एल्कोहाॅल → एस्टर + जल
एस्टर की गंध मृदु होती है। यह प्रकृति में फलों तथा फूलों में पाये जाते हैं। एस्टर का उपयोग कृत्रिम इत्र तथा सुगंधित पदार्थ बनाने में होता है।
उत्तर- एस्टर अम्ल या क्षारक की उपस्थिति में अभिक्रिया करके पुनः कार्बोक्सिलिक अम्ल और एल्कोहाॅल बनाता है। इस क्रिया को साबुनीकरण कहते हैं। इस क्रिया का उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है।
उत्तर-
क्षार के साथ अभिक्रिया
कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया
क्षार के साथ अभिक्रिया:- एथेनाॅइक अम्ल क्षार के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाता है।
NaOH + CH₃COOH → CH₃COONa + H₂O
क्षारक + एथेनाॅइक अम्ल → लवण (सोडियम एथेनाेट) + जल
कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट:- एथेनाॅइक, अम्ल कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके सोडियम एसीटेट (सोडियम एथेनाेट) जल और CO₂ गैस बनाता है।
2CH₃COOH + Na₂Co₃ → 2CH₃COONa + H₂O + CO₂
उत्तर-
साबुन:- लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों या वसा अम्लों के सोडियम अथवा पोटैशियम तत्वों को साबुन कहते हैं।
अपमार्जक:- लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्ल के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण को अपमार्जक कहते हैं।
उत्तर- साबुन के निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ तेल या वसा सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) तथा साधारण नमक (NaCl) है।
बनाने की विधि:- 1 बीकर में तेल या वसा को लेकर उसमें सोडियम हाइड्रोक्साइड के विलयन में मिला देंगे। इस मिश्रण को धीरे-धीरे गर्म करेंगे। इस मिश्रण को 10-15 मिनट तक उबालने देंगे। इसके बाद इसमें साधारण नमक डालकर घोल को ठंडा होने देंगे। साधारण नमक साबुन की जल में घुलनशीलता को कम करती है। थोड़ी देर बाद बीकर में घोल के ऊपरी सतह पर साबुन एक ठोस के रूप में अलग हो जाता है। इस तरह साबुन को हम ऊपर से निकाल लेते हैं।
उत्तर- अच्छे साबुन की निम्न विशेषताएँ होती हैं।
अच्छे साबुन में मुक्तक्षार उपस्थित नहीं होता है।
अच्छा साबुन ऐल्कोहाॅल में विलेय होता है।
यह प्रयोग करते समय टूटता नहीं है।
यह प्रयोग करने के बाद सूखने पर फटता नहीं है।
इस में नमी की उपस्थिति 10% से अधिक नहीं होती है।
उत्तर- जब किसी गंदे कपड़े पर साबुन को जल के साथ मिलाकर हाथ से या बस से रगड़ा जाता है तो मिसेल का निर्माण होता है। मैल मिसेल के हाइड्रोकार्बन वाले भाग से चिपक जाते हैं, और चारों ओर से ऋण आवेश से घिर जाते हैं ताकि वे फिर साफ होने वाली कपड़ों से पुनः चिपक ना जाये। कपड़े पर जल डालने पर मैल मिसेल के रूप में कपड़े को तुरंत छोड़कर जल में निलंबित हो जाते हैं, और हमारे कपड़े साफ हो जाते हैं।
उत्तर- कठोर जल में कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण घुले रहते हैं। जब साबुन कठोर जल के संपर्क में आता है, तो साबुन में उपस्थित वसा अम्ल उन लवणो से अभिक्रिया करके अघुलनशील आवेश बनाते हैं। जब ये घुलनशील लवण अवशोषित होकर अलग हो जाते हैं तब झाग बनता शुरू होता है। इसलिए कठोर जल में कपड़ा साफ करने पर अधिक साबुन खर्च होता है तथा सफाई में कठिनाई भी होती है।
उत्तर- अपमार्जक कठोर जल में भी पर्याप्त झाग उत्पन्न करता है, क्योंकि अपमार्जक कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम या मैग्नीशियम लवणों के साथ साबुन की तरह अघुलनशील लवण नहीं बनाते हैं इसलिए अपमार्जक के द्वारा कठोर जल में भी आसानी से कपड़े घोले जा सकते हैं।
उत्तर-
अपमार्जक की सफाई कार्य विधि:- अपमार्जक का सफाई कार्य साबुन के जैसे ही होता है। अपमार्जक के अणु के दो मुख्य भाग होते हैं। एक भाग लंबी कार्बनिक श्रृंखला वाला भाग और दूसरा भाग (–SO₃Na या –SO₄Na) एक ऋणात्मक सिरा वाला होता है। लंबी कार्बनिक श्रृंखला वाला भाग जल को प्रतिकर्षित करता है, जिसके कारण कपड़े की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कण इससे जुड़ जाते हैं। जिसका दूसरा भाग जल को आकर्षित करता है, जिसके कारण लंबी कार्बनिक श्रृंखला वाले भाग में चिपके धूल तथा चिकनाई के कणों को अपने साथ खींचकर जल में ले जाता है। इस तरह अपमार्जक मैले कपड़े को साफ कर देता है। अपमार्जको का उपयोग सर्फ, रीन, एरियल इत्यादि में तथा अन्य कपड़ा धोने के उत्पाद बनाने में भी होता है।
उत्तर- अपमार्जको ने साबुन का स्थान ले लिया है इस के निम्न कारण है।
अपमार्जक कठोर जल के साथ भी पर्याप्त मात्रा में झाग देते हैं जबकि साबुन कठोर जल के साथ पर्याप्त मात्रा में झाग नहीं देता है।
अपमार्जक में सफाई क्षमता साबुन की तुलना में अधिक होता है।
अपमार्जक की जल में घुलनशील का साबुन की तुलना में अधिक होती है।
उत्तर- साबुन तथा अपमार्जक में निम्नलिखित अंतर है—
उत्तर-
CH₃CH₂OH → CH₃COOH + H₂O
इस अभिक्रिया में ऑक्सीजन की वृद्धि और हाइड्रोजन की कमी होती है। इसलिए एथेनॉल से एथेनाॅइक अम्ल में परिवर्तन को ऑक्सीकरण अभिक्रिया कहते हैं।
उत्तर-
CH₃CH₂OH → CH₃COOH + H₂O
एथाइल ऑक्सीजन में जलकर ऑक्सी ऐसीटिलीन ज्वाला उत्पन्न करती है, जिसका ताप लगभग 3000°C होता है। इसलिए इसका उपयोग वेल्डिंग में किया जाता है।
एथाइल को वायु के साथ मिश्रित कर दहन की क्रिया कराने से एथाइन को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। इसलिए एथाइल के दहन के लिए वायु का उपयोग नहीं किया जाता है।
उत्तर- ऑक्सीजन प्रदान करने वाले पदार्थों को ऑक्सीकारक कहते हैं।
जैसे:- पोटैशियम परमैग्नेट (KMnO₄)तथा पोटेशियम डाईक्रोमेट (K₂Cr₂O₇)
उत्तर- नहीं क्योंकि डिटर्जेंट कठोर एवं मृदु जल के साथ समान रूप से झाग बनाता है और सफाई का कार्य करता है।
उत्तर- कार्बन और उसके यौगिक का उपयोग अधिकतर कार्यों में ईंधन के रूप में होता है इस के निम्न कारण है।
ये दहन के फलस्वरुप अधिक मात्रा में ऊष्मा देते हैं।
इसका रखरखाव आसान होता है।
इसके दहन पर नियंत्रण संभव है।
इसमें कार्बन तथा हाइड्रोजन की मात्रा अधिक होने के कारण इसका ज्वलन ताप सामान्य होता है।
उत्तर- साबुन की प्रकृति क्षारीय होती है इसलिए यह लिटमस पत्र को नीला कर देता है।