उत्तर-
धातु:- जिस तत्त्व में एक विशेष चमक होती है, आघातवर्ध्य तथा तन्य होती है और जो ताप और विधुत का सुचालक होती है, जो इलेक्ट्रॉन का त्याग करके धनायन बनाते हैं, वैसे तत्त्वों को धातु कहते हैं। जैसे:- सोना, चाँदी, मैग्नीशियम, पोटैशियम, लिथियम इत्यादि।
अधातु:- जिन तत्त्वों में एक विशेष चमक नहीं होती है, वे आघातवर्ध्य तथा तन्य नहीं होते हैं। वे ताप तथा विधुत के कुचालक होते हैं, जो इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करके ऋणायन का निर्माण करते हैं। वैसे तत्त्वों को अधातु कहते हैं। जैसे:- कार्बन, गंधक, फॉस्फोरस, हाइड्रोजन ऑक्सीजन, क्लोरीन, हीलियम, ऑर्गन इत्यादि।
उपधातु:- वैसे तत्त्व जिनमें धातु तथा अधातु दोनों गुण पाए जाते हैं, वैसे तत्त्वों को उपधातु कहते हैं। जैसे:- बोराॅन (B), सिलिकाॅन (Si), जर्मेनियम (Ge), आर्सेनिक (As), ऐंटिमनी (Sb), टेल्पुरियम एवं पोलोनियम (Po)
उत्तर-
आघातवर्ध्य:- कुछ धातुओं को पीटकर पतली चादर बनायी जा सकती है। धातुओं के इस गुण को आघातवर्ध्य कहते हैं। सोना तथा चाँदी सबसे अधिक आघातवर्ध्य होती है। सोना को पीटकर 0.0004 mm पतली चादर बनायी जा सकती है।
तन्यता:- कुछ धातुओं को पतले तार के रूप में खींचा जा सकता है। धातुओं के इस गुण को तन्यता कहते हैं। सबसे अधिक तन्य धातु चाँदी है।
उत्तर- धातुओं को लंबे समय तक वायु (हवा) में खुला रखने पर वे अपनी चमक खो देते है क्योंकि वह हवा के अवयव ऑक्सीजन, CO₂, जल इत्यादि से अभिक्रिया करके ऑक्साइड, कार्बोनेट, सल्फाइड इत्यादि बनाते हैं। जिसके कारण धातुओं पर इनकी परत जम जाती है । इसलिए धातुओं की सतह धुंधली हो जाती है।
उत्तर- धातु जब किसी कठोर सतह से टकराते हैं, तो उनमें एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अतः धातुओं में उत्पन्न इस विशेष ध्वनि को ध्वानिक कहते हैं।
उत्तर- धातु के बाहरी कोश में 1, 2 या 3 इलेक्ट्रॉन होते हैं, जिसके कारण धातु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करके विद्युत धनात्मक आयन बनाते हैं।
उत्तर- जब धातुओं को वायु में दहन किया जाता है तो वे ऑक्सीजन से संयोग करके धातु के ऑक्साइड बनाते है। यह धातु के ऑक्साइड क्षारकीय होते हैं क्योंकि ये जल से भींगे हुए लाल लिटमस पत्र को नीला कर देते हैं। यह धातुओं के ऑक्साइड जल में घुलनशील होते हैं।
धातु + ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड
2Mg + O₂ → 2MgO
उत्तर- सोडियम, पोटैशियम या लिथियम को हवा में खुला छोड़ने पर यह ऑक्सीजन से अभिक्रिया करके स्वत: (लगभग 23°C पर) आग पकड़ लेती है अर्थात् जलने लगती है । इसलिए इसको सुरक्षित रखने के लिए इसे किरोसीन तेल में डुबो कर रखा जाता है क्योंकि यह किरोसीन तेल के साथ ना कोई अभिक्रिया करती है और ना इसमें घुलती है।
उत्तर-
उभयधर्मी ऑक्साइड:- कुछ धातु के ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय और क्षारीय दोनों होती है, ऐसे धातु के ऑक्साइड को उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं। जैसे:- ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al₂O₃), जिंक ऑक्साइड (ZnO)
एनोडीकरण:- ऐलुमिनियम पर मोटी ऑक्साइड की परत बनने की क्रिया को एनोडीकरण कहते हैं।
उत्तर-
ठंडे तथा गर्म जल के साथ अभिक्रिया:- जब धातु ठंडे या गर्म जल के साथ अभिक्रिया करती है तो धातु हाइड्राॅक्साइड और हाइड्रोजन गैस बनाती है।
2K + 2H₂O (ठंडा जल) → 2KOH + H₂ (उष्मीय ऊर्जा)
Mg + 2H₂O (गर्म जल) → Mg(OH)₂ + H₂
भाप के साथ अभिक्रिया:- जब धातु भाप के साथ अभिक्रिया करती है तो धातु ऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस बनाती है।
2Al + 3H₂O → Al₂O₃ + 3H₂
उत्तर- ताँबा जल के साथ किसी भी स्थिति में अभिक्रिया नहीं करता है लेकिन लोहा उबलते पानी के भाप से अभिक्रिया करके ऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस बनाता है। इसलिए गर्म जल का टैंक बनाने में ताँबे का उपयोग होता है लेकिन इस्पात का नहीं होता है।
उत्तर- धातु अम्ल के साथ अभिक्रिया करती है तो लवण तथा हाइड्रोजन गैस बनाती है।
धातु + अम्ल → लवण + हाइड्रोजन गैस
Mg + 2Hcl → Mgcl₂ + H₂
उत्तर- सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सांद्र नाइट्रिक अम्ल के 3:1 के अनुपात के ताजा मिश्रण को एक्वारेजिया कहते हैं। यह एक दहकता द्रव है। यह गोल्ड और प्लैटिनम को भी गला सकता है । जब पुराने और मलीन सोने के आभूषण को एक्वारेजिया विलयन में डाला जाता है तो वह नये आभूषण की तरह चमकने लगता है।
उत्तर- विस्थापन अभिक्रिया के आधार पर धातुओं को उनकी घटती हुई अभिक्रियाशीलता के क्रम में सजाया गया, जिसे धातुओं की सक्रियता श्रेणी कहते हैं। इसमें सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु ऊपर और सबसे कम अभिक्रियाशील धातु नीचे रहता है।
उत्तर- जो धातुऍं सबसे अधिक अभिक्रियाशील होती है, वे प्रकृति में संयुक्त अवस्था में पाए जाते हैं।
जैसे:- लिथियम, पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम।
जो धातुऍं कम अभिक्रियाशील होती हैं, वे प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती हैं।
जैसे:- प्लैटिनम, सोना, चाँदी (सिल्वर), मर्करी (पारा), कॉपर।
उत्तर- धातु की तरह हाइड्रोजन भी इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है तथा धनात्मक आयन बनाता है । इसलिए अधातु होते हुए भी हाइड्रोजन को सक्रियता श्रेणी में जगह नहीं दी गई है।
उत्तर- अधातुओं के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में (हाइड्रोजन तथा हीलियम को छोड़कर) 4, 5, 6, 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अतः अधातुऍं इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करके ऋणात्मक आवेश वाले आयन बनाते हैं । इसलिए अधातुऍं विधुत ऋणात्मक होती हैं।
उत्तर-
अधातुऍं ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके अम्लीय ऑक्साइड बनाती है।
S + O₂ → SO₂ (अम्लीय)
कुछ अधातुऍं ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके उदासीन ऑक्साइड बनाते हैं।
2H₂ + O₂ → 2H₂O (उदासीन)
उत्तर- भौतिक गुणों के आधार पर धातु और आधातु में निम्नलिखित अंतर हैं—
उत्तर- रासायनिक गुणों के आधार पर धातु तथा अधातु में निम्नलिखित अंतर हैं—
उत्तर- हीलियम, निऑन तथा ऑर्गन उत्कृष्ट गैसें हैं । इन गैसों के बाह्यतम कोश पूर्ण होते हैं। इसलिए यह अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।
उत्तर- धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण से बने यौगिकों को आयनिक यौगिक या वैधुत संयोजक यौगिक कहते हैं।
आयनिक यौगिकों के गुण होते हैं—
आयनिक यौगिक ठोस और कठोर होते हैं।
आयनिक यौगिकों के गलनांक और क्वथनांक उच्च होते हैं।
आयनिक यौगिक जल में घुलनशील होते हैं।
ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विधुत का चालन नहीं करते हैं अर्थात् विधुत के कुचालक होते हैं।
आयनिक यौगिक जलीय विलयन या गलित अवस्था में विधुत का चालन करते हैं।
उत्तर- धातुऍं प्रकृति में दो अवस्था में पाई जाती हैं—
स्वतंत्र अवस्था:- जो धातुऍं सबसे कम अभिक्रियाशील होती हैं वह स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती हैं। जैसे:- सोना, चाँदी ...
संयुक्त अवस्था:- जो धातुऍं सबसे अधिक अभिक्रियाशील होती हैं वह संयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं। जैसे:- पारा, कॉपर ...
उत्तर-
खनिज– भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं।
अयस्क– वह खनिज जिनसे धातुऍं आसानी से तथा कम खर्च में प्राप्त की जा सकती है, उसे अयस्क कहते हैं।
उत्तर- खनिज तथा अयस्क में निम्न अंतर है—
उत्तर- अयस्क से शुद्ध धातु प्राप्त करने की प्रक्रिया को धातुकर्म कहते हैं।
इसके विभिन्न चरण निम्न है—
अयस्क का सांद्रण।
सांद्रित अयस्क का धातु के ऑक्साइड में परिवर्त्तन।
धातु के ऑक्साइड से धातु का निष्कर्षण।
धातु का शुद्धिकरण।
उत्तर- खनिजों में उपस्थित मिट्टी, बालू , पत्थर के टुकड़े इत्यादि अशुद्धियों को गैंग (मैट्रिक्स) कहते हैं तथा अयस्कों के साथ उपस्थित अशुद्धियों को आधात्री कहते हैं।
उत्तर- अयस्कों का समृद्धिकरण की निम्न विधियाँ है—
हाथ से चुनकर
गुरुत्व पृथक्करण विधि
फेन-प्लवन विधि
विधुत चुंबकीय पृथक्करण विधि
रासायनिक पृथक्करण विधि।
उत्तर- अभिक्रियाशीलता के आधार पर धातुओं को तीन वर्गों में बाँटा गया है—
निम्न अभिक्रियाशील धातुऍं– प्लैटिनम, सोना, सिल्वर, मर्करी (पारा), कॉपर
मध्य अभिक्रियाशील धातुऍं– मैग्नीशियम, एलुमिनियम, जिंक, आयरन, टिन, लेड
उच्च अभिक्रियाशील धातुऍं– लिथियम, पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम
उत्तर-
भर्जन (जारण)– सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में बदल जाता है और वाष्पशील अशुद्धियाँ बाहर निकल जाती है। इस प्रक्रिया को भर्जन (जारण) कहते हैं।
2ZnS + 3O₂ → 2ZnO + 2SO₂
निस्तापन- कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में बदल जाता है और वाष्पशील अशुद्धियाँ बाहर निकल जाती हैं। इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते हैं।
ZnCo₃ → ZnO + Co₂
उत्तर- भर्जन तथा निस्तापन में निम्नलिखित अंतर हैं—
उत्तर- जब लोहे को हवा में अधिक समय तक खुला छोड़ देने पर वह प्रकाश तथा नमी के संपर्क में आने के कारण धीरे-धीरे उस पर भूरे रंग की एक परत जम जाती है, जिसे जंग कहते हैं।
जंग से बचाव के लिए उपाय है—
लोहे की धातुओं को पेंट करके।
ग्रीस या तेल लगा कर।
उत्तर- संक्षारण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें क्रियाशील धातु नमी युक्त हवा से अभिक्रिया करके अवांछनीय पदार्थों का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया में धातु वायुमंडल में उपस्थित नमी तथा ऑक्सीजन या दूसरी गैसों से अभिक्रिया करके धातु के ऑक्साइड, हाइड्रॉक्साइड, कार्बोनेट या सल्फाइड बनाती है, जिसके कारण धातु की परत झड़ते जाते हैं, जिसे संक्षारण करते हैं।
उत्तर-
संक्षारण होने की निम्न शर्तें—
वायु (ऑक्सीजन) की उपस्थिति
नमी (जल) की उपस्थिति
अभिक्रियाशील धातु की उपस्थिति
संक्षारण को कम करने के निम्न उपाय—
धातुओं को पेंट करके
तेल तथा ग्रीस लगाकर
यशदलेपन तथा ऐनोडीकरण द्वारा करके
उत्तर-
यशदलेपन:- लोहे को जंग लगने से बचाने के लिए लोहे पर जिंक धातु की पतली परत चढ़ाने की क्रिया को यशदलेपन (जस्तीकरण) कहते हैं।
मिश्रधातु:- दो या दो से अधिक धातुओं अथवा धातु और अधातु के समांगी मिश्रण को मिश्रधातु कहते हैं।
अमलगम:- जब मिश्रधातु में एक धातु पारा होता है, तो उसे अमलगम कहते हैं। जैसे:- सोडियम अमलगम, टिन अमलगम इत्यादि।
उत्तर- जब जिंक को आयरन सल्फेट के विलयन में डाला जाता हैं तो जिंक, आयरन सल्फेट के विलयन से आयरन को विस्थापित कर देता है।
Zn + FeSO₄ → ZnSo₄ + Fe
उत्तर- आयनिक यौगिक धन एवं ऋण आवेश युक्त आयनों से बने होते है तथा ये आयन विधुत आकर्षण बल द्वारा एक-दूसरे से काफी मजबूती से बंधे रहते हैं। इस आकर्षण बल को कम करने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिए आयनिक यौगिक का गलनांक उच्च होता है।
उत्तर-
हाइड्रोजन को तनु अम्ल से विस्थापित करने वाली धातु– मैग्नीशियम (Mg), जिंक (Zn)
हाइड्रोजन को तनु अम्ल से विस्थापित नहीं करने वाली धातु– कॉपर (Cu), सोना (Au)
उत्तर- अशुद्ध M धातु के एक मोटे टुकड़े को एनोड बनाया जाता है, और शुद्ध M धातु के एक पतली पट्टी को कैथोड बनाया जाता है। जल में घुलनशील M धातु के लवण का उपयोग विद्युत अपघटन के रूप में किया जाता है।
उत्तर- अधातुऍं ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर अम्लीय या उदासीन ऑक्साइड बनाती हैं।
C + O₂ → CO₂ (अम्लीय ऑक्साइड)
2C + O₂ → 2CO (उदासीन ऑक्साइड)
उत्तर- प्लैटिनम, सोना और चाँदी बहुत ही कम अभिक्रियाशील धातु होती है, जिनके कारण इनका संक्षारण नहीं होता है, और इनकी चमक भी बनी रहती है। इसलिए इनका उपयोग आभूषण बनाने में लिए किया जाता है।
उत्तर- एलुमिनियम ऊष्मा का अच्छा चालक है। इसका संक्षारण भी बहुत कम होता है। इसलिए अत्यंत अभिक्रियाशील धातु होते हुए भी एलुमिनियम का उपयोग खाना बनाने वाले बर्तन में किया जाता है।
उत्तर- सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में ऑक्साइड अयस्क से धातु का निष्कर्षण अधिक आसान होता है। इसलिए निष्कर्षण प्रक्रम में कार्बोनेट और सल्फाइड अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित कर दिया जाता है।
उत्तर-ताॅंंबा पर क्षारीय कॉपर कार्बोनेट की हरी परत जम जाने के कारण उसका रंग मलीन हो जाता है। जब नींबू या इमली के रस से इन बर्त्तनों को साफ किया जाता है, तो नींबू या इमली में उपस्थित अम्लीय पदार्थ क्षारीय कॉपर कार्बोनेट से अभिक्रिया करके उसे तांबे के बर्त्तन से अलग कर देता है, जिससे बर्त्तन साफ होकर चमकने लगता है।
(a) इसका उपयोग करके धातुओं और अधातुओं के नमूनो के बीच आप कैसे विभेद कर सकते हैं?
उत्तर:- सर्वप्रथम हम सभी उपकरणों को सजाकर एक परिपथ बनायेंगे। उसके बाद हम परिपथ में लगाये गये स्विच को ऑन करेंगे। यदि बल्ब जलता है, तो दिया गया नमूना धातु है।
(b) धातुओं और अधातुओं में विभेदन के लिए इन परीक्षणों की उपयोगिताओं का आकलन करें।
उत्तर:- धातुओं और अधातुओं में विभेदन के लिए यह परीक्षण बहुत उपयोगी है। इसमें केवल ग्रेफाइट एक अपवाद है, क्योंकि ग्रेफाइट अधातु होते हुए भी विधुत का सुचालक होता है।
(a) गैस की क्रिया क्या होगी?
1. सूखे लिटमस पत्र पर:- सूखे लिटमस पत्र पर कोई क्रिया नहीं होती है।
2. आर्द्र लिटमस पत्र पर:- आर्द्र नीले लिटमस पत्र को गैस लाल कर देती है।
(b) ऊपर की अभिक्रियाओं के लिए संतुलित रासायनिक समीकरण लिखें।
उत्तर:- S + O₂ → SO₂
उत्तर- हाँ, वह विलयन ऐक्वारेजिया है, जो 3:1 के अनुपात में सांद्र HCl अम्ल और सांद्र HNO₃ अम्ल का ताजा मिश्रण होता है, जिसमें सोना को गलाने की क्षमता होती है।
उत्तर- हम जानते हैं कि अधिक अभिक्रियाशील धातु कम अभिक्रियाशील धातु के ऑक्साइड से धातु को विस्थापित करती है। अतः तीनों धातुओं में मैग्नीशियम सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु होगी। उसके बाद जिंक और कॉपर होगा।
उत्तर-
उत्तर- अधातुओं की तीन अवस्थाऍं होती हैं—
ठोस:- कार्बन, गंधक, फाॅस्फोरस, आयोडीन
द्रव:- ब्रोमीन
गैस:- हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, क्लोरीन, हीलियम, ऑर्गन
उत्तर-
जल के साथ अभिक्रिया:- अधातुऍं जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती है। यदि कोई अधातु जल के साथ अभिक्रिया करती है, तो वह हाइड्रोजन गैस नहीं बनाती है।
अम्ल के साथ अभिक्रिया:- अधातुऍं अम्ल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन विस्थापित नहीं करती है, क्योंकि अधातुऍं दूसरे परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन ले सकती है लेकिन दूसरे को इलेक्ट्रॉन नहीं दे सकती है।
(a). भाप के साथ आयरन
⇒ 2Al + 3H₂O (भाप) → Al₂O₃ + 3H₂
(b). जल के साथ कैल्शियम
⇒ Ca + 2H₂O (ठंडा जल) → Ca(OH)₂ + H₂
(c). जल के साथ पोटैशियम
⇒ 2K + 2H₂O (ठंडा जल) → 2KOH + H₂
(d). जल के साथ सोडियम
⇒ 2Na + 2H₂O (ठंडा जल) → 2NaOH + H₂ + ऊष्मीय ऊर्जा
(e). ऑक्सीजन के साथ कॉपर
⇒ 2Cu + O₂ + 2CuO
(f). ऑक्सीजन के साथ एलुमिनियम
⇒ 4Al + 3O₂ → 2Al₂O₃
(g). आयरन के साथ H₂SO₄
⇒ Fe + H₂SO₄ → FeSO₄ + H₂
(h). एलुमिनियम ऑक्साइड के साथ HCl
⇒ Al₂O₃ + 6HCl → 2AlCl₃ + 3H₂O
उत्तर-
उत्तर- अयस्क मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं—
ऑक्साइड अयस्क
सल्फाइड अयस्क
कार्बोनेट अयस्क
हैलाइड अयस्क
उत्तर-
लिथियम (Li) का परमाणु द्रव्यमान = 7
पोटैशियम (K) का परमाणु द्रव्यमान = 39
(a) स्टील (स्टेनलेस स्टील):- लोहा → 73%, निकेल → 8%, क्रोमियम → 18%, कार्बन → 1%
उपयोग:- मोटर और साइकिल के पार्ट्स, बर्त्तन, चाकू, ब्लेड इत्यादि बनाने में।
(b) पीतल:- ताॅंबा → 80%, जस्ता → 20%
उपयोग:- बर्त्तन, मूर्ति, सिक्के, ताला, कारतूस इत्यादि बनाने में।
(c) काँसा:- ताॅंबा → 88%, टिन → 12%
उपयोग:- बर्त्तन, मूर्ति, सिक्के इत्यादि बनाने में।
(d) इस्पात:- लोहा → 98.5%, कार्बन → 1.5%
उपयोग:- पुल, जहाज, भवन, रेल लाइन इत्यादि में।
उत्तर- उत्प्रेरक ऐसे पदार्थ को कहते हैं, जो किसी अभिक्रिया की दर को बढ़ा देते हैं या घटा देते हैं लेकिन वे स्वयं अभिक्रिया के अंत में अपरिवर्तित रहते हैं क्योंकि ये अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।
उत्तर- धोबिया सोडा (धोवन सोडा) और बेकिंग सोडा में निम्न अंतर है—
उत्तर- आसवित जल में लवण की मात्रा बहुत ही कम रहती है, जबकि वर्षा जल में लवण की मात्रा बहुत अधिक रहती है। इसलिए लवण की मात्रा अधिक होने से वर्षा जल विधुत का चालक होता है और आसवित जल विधुत का चालक नहीं होता है।
उत्तर- किसी तत्व के परमाणु के बाह्यतम कोश मे उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या को उस तत्त्व की संयोजकता कहते है।
मैग्नीशियम की परमाणु संख्या = 12
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 2
इसकी संयोजकता = 2