उत्तर- जनन वह प्रक्रम है जिसमें जीव अपने समान संतति को उत्पन्न करता है।
जनन दो प्रकार के होते हैं
लैंगिक जनन- यह बहुकोशिकीय जीव में होता है।
अलैंगिक जनन- यह एककोशिकीय जीवो में होता है।
उत्तर- लैंगिक जनन:-
लैंगिक जनन बहुकोशिकीय जीव में होता है।
लैंगिक जनन से जीवो में विविधता उत्पन्न होता है।
लैंगिक जनन में अर्धसूत्री विभाजन होता है।
लैंगिक जनन में युग्म का संयोग होता है।
लैंगिक जनन उच्च कोटि के बहुकोशिकीय जीवो में होता है।
अलैंगिक जनन:-
अलैंगिक जनन एककोशिकीय जीव में होता है।
अलैंगिक जनन से जीवो में विविधता उत्पन्न नहीं होती है।
अलैंगिक जनन में अर्धसूत्री विभाजन नहीं होता है।
अलैंगिक जनन में युग्म का संयोग नहीं होता है।
अंलैंगिक जनन निम्न कोटि के एककोशिकीय जीव में होता है।
उत्तर- द्विखंडन:-
द्विखंडन विधि मैं एक कोशिका दो अनुजात कोशिकाओं में समान रूप से विभाजित होता है।
द्विखंडन सामान्य परिस्थितियों में होता है।
द्विखंडन एक तल में होता है।
बहुखंडन:-
बहुखंडन विधि में एक कोशिका बहुत सी कोशिकाओं में सामान्य रूप से विभाजित होती है।
बहुखंडन विषम परिस्थितियों में होता है।
बहुखंडन विभिन्न तलो में होता है।
उत्तर- DNA प्रकृति का प्रजनन में निम्न महत्व है:-
DNA प्रतिकृति से जीवो में विभिन्नताऍं उत्पन्न होती है।
DNA प्रतिकृति बनने से कोशिका विभाजन होता है। जो प्रजनन के लिए अनिवार्य है।
उत्तर- DNA प्रतिकृति से जीवो मे विभिन्नताएं उत्पन्न होती है। इन विभिन्नताओं के कारण जैव विकास होता है। DNA के कारण कोई पूर्ण रूप से विकसित होती है तथा उसका विकास होता है। DNA के बिना कोई भी कोशिका जीवित नहीं रह सकती है इसलिए DNA की प्रकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है।
उत्तर- शरीर के क्षतिग्रस्त बेकार अंगों की मरम्मत अथवा जीव के शरीर के हिस्से से नए जीव की उत्पत्ति का अलैंगिक प्रक्रम जो किसी प्रौढ़ जीवधारी के जीवन काल में स्वत: संचालित होता है उसे पुनरुद्भव कहते हैं।
उत्तर- अलैंगिक जनन की विधि में कोशिका भाग में एक बल्ब जैसी उभार बनता है। इसके बाद कोशिका का केंद्रक दो भागों में विभाजित हो जाता है तथा इसका एक भाग बल्ब में आ जाता है। यह बल्ब जैसी रचना मुल कोशिका से अलग हो जाती है जिसे मुकुल कहते हैं तथा इस मुकुलन से नये जीवो के विकसित होने को मुकलन कहते हैं।
उत्तर- जब पौधे के कायिक अथवा बर्हि भाग जैसे जड़, तना अथवा पत्ती से प्राकृतिक रूप से या कृत्रिम रूप से नया पौधा विकसित होता है तथा किया जाता है, उसे कायिक प्रवर्धन या बर्हि प्रचारण कहते हैं।
कायिक प्रवर्धन के दो विधि होती है।
प्राकृतिक विधि तथा
कृत्रिम विधि
उत्तर- पौधे में कायिक प्रवर्धन की निम्न विधियां है।
जड़ों द्वारा कायिक प्रवर्धन
तनों द्वारा कायिक प्रवर्धन
पतियों द्वारा कायिक प्रवर्धन
उत्तर- पौधे में कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियां निम्न है।
कलम लगाना
कर्तन विधि
दाब लगाना
कली रोपड़
उत्तर- लाभ:-
कुछ पौधों के बीजों में नए पौधे उपजाने की क्षमता नहीं होती है, जिसे कायिक प्रवर्धन विधि द्वारा कायम रखा जाता है।
जिस पौधों के बीजों की सुप्तावस्था अधिक लंबी होती है, उसे कायिक प्रवर्धन द्वारा कम समय में ही उसे उगा लिया जाता है।
हानि:-
कायिक प्रवर्धन द्वारा पौधों में अनुवांशिक विविधता उत्पन्न नहीं होती है।
कायिक प्रवर्धन के कारण पौधों में पर्यावरण के साथ अनुकूल होने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे जल्दी सूख जाते हैं।
उत्तर- कुछ पौधे को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है क्योंकि :-
कायिक प्रवर्धन पौधे के वार्ही भाग के माध्यम से नए पौधे उत्पन्न करने की क्षमताएं होती है।
कायिक प्रवर्धन द्वारा विकसित किए गए पौधे में फल और फूल जल्दी निकल आते हैं।
कायिक प्रवर्धन द्वारा विकसित किए गए सभी पौधे में पैतृक क्षमताएं पायी जाती है।
उत्तर- एकलिंगी जीव:- वे जीव जो केवल नर जनन कोशिका अर्थात शुक्राणु उत्पन्न करते हैं तथा वे जीव जो केवल मादा जनन कोशिका अर्थात अंडाणु उत्पन्न करते हैं वैसे जीव को एकलिंगी जीव कहते हैं। जैसे:- मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली इत्यादि।
उभयलिंगी जीव:- कुछ ऐसे जीव होते हैं, जिनके एक ही शरीर में नर तथा मादा दोनों जनन कोशिकाएं उत्पन्न होती है, ऐसे जंतुओं तथा पौधे को उभयलिंगी जीव कहते हैं। जैसे:- केंचुआ, हाइड्रा।
उत्तर- फूलों में परागकोष में परागकण उपस्थित होते हैं, जो नर युग्मको को उत्पन्न करते हैं तथा अंडाशय में बीजाण्ड उपस्थित होते हैं जो मादा युग्मको को उत्पन्न करते हैं। अतः जब नर युग्मक तथा मादा युग्मक जब आपस में संलयन होते हैं, तो उस क्रिया को निषेचन कहते हैं।
उत्तर- पर परागकण:- उभयलिंगी पुष्पो में नर और मादा जनन एक साथ होते हुए भी जब उनमें दूसरे पदार्थो से आये हुए परागकणों द्वारा ही परागकण की क्रिया पूरी होती है उसे पर परागण कहते हैं।
स्व परागकण:- जब फूल में नर और मादा अंग एक साथ परिपक्व होते हैं और उन फूलों के परागकणों के द्वारा परागण की क्रिया पूरी हो जाती है, उसे स्व परागकण कहते हैं। जैसे:- सूर्यमुखी, गुलाब इत्यादि।
उत्तर- नर जनन तंत्र के निम्न भाग होते हैं।
शुक्राशय
शुक्रवाहिनी
मूत्राशय
शिश्न
प्रोस्टेट ग्रंथि
वृषण
वृषण कोश
एरोसॉल का कम प्रयोग किया जा रहा है।
वृक्षरोपण करके
जेट विमान एवम् रॉकेट में प्रयुक्त के एरोसॉल नियंत्रक बनाया गया है।
लैंगिक जनन में नर और मादा से प्राप्त होनेवाला नर युग्मक और मादा युग्मक के निषेचन से लैंगिक जनन होता है क्योंकि ये दोनों भिन्न प्राणियों से प्राप्त होता है इसलिए संतान विशेषताओं को प्रकट करते हैं।
लैंगिक जनन से गुणसूत्रों को नए जोड़े बनते हैं। इससे विकासवाद की दिशा को नया आयाम प्राप्त होता है। इससे जीवो को श्रेष्ठ गुणों के उत्पन्न होने के अवसर काफी हद तक बढ़ जाती है।
श्वसन एक जैव रासायनिक क्रिया है।
इस क्रिया में निकली ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है।
दहन
दहन एक अजैविक क्रिया है।
इस क्रिया में निकली ऊर्जा प्रकाश एवं ताप के रूप में वातावरण में निकलती है।
पोषण आवश्यकता के निम्नलिखित प्रकार है:-
जीवन की उपापचायी क्रियाओं के संचालन के लिए।
उपापचायी क्रियाओं में ऊर्जा की आपूर्ति के लिए।
शरीर की विधि के लिए।
टूटे-फूटे उतकों की मरम्मत के लिए।
अपने जीवन में अस्तित्व को बनाए रखने के लिए।