उत्तर- हमारी नींद कविता सुविधाभोगी, आरामपसंद जीवन से लाभ उठाने वाली अत्याचारी लोगों के जीवन का चित्रण करती है।
उत्तर- कवि यहाँ उन अत्याचारियों का जिक्र करता है जो हमारे सुविधाभोगी, आरामपसंद जीवन से लाभ उठाते हैं। हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जाने वाले जीवित नहीं रह पाते हैं और इस अवस्था में अत्याचारी अत्याचार करने के बाह्य और आंतरिक सभी साधन जुटा लेते हैं।
उत्तर- "हमारी नींद"कविता का शीर्षक विषय-वस्तु प्रधान हैं। इसका शीर्षक छोटा है और आकर्षक भी है। इसका शीर्षक पूर्णरूप से केन्द्र में चक्कर लगाता है, जहाँ शीर्षक सुनकर ही जानने की इच्छा प्रकट हो जाती है। अत: सब मिलाकर शीर्षक सार्थक है।
उत्तर- कवि गरीब बस्तियों के उल्लेख के माध्यम से कहना चाहता है कि जहाँ के लोग दो जून रोटी के लिए काफी मसक्कत करने के बाद भी तरसते हैं वहाँ पूजा-पाठ, देवी जागरण जैसा महोत्सव के बहाने कुछ स्वार्थी लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए गरीब लोगों का उपयोग करते हैं।
उत्तर- मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का आशय है निम्न स्तरीय जीवन की संकीर्णता को दर्शाना। सृष्टि में अनेक जीवन-क्रम चलता रहता है। वह जीवन-क्रम की व्यापकता को लेकर कर्मठता और अकर्मठता का बोध कराता है लेकिन मक्खी का जीवन-क्रम केवल सुविधाभोगी एवं परजीवी जीवन का बोध कराता है।
उत्तर- आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे हठधर्मी हैं जो संवैधानिक और वैधानिक स्तर पर कई गलतियाँ कर जाते हैं लेकिन अपनी भूलें या गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं। वे साफ तौर पर अपनी भूल को इनकार कर देते हैं।
उत्तर- प्रश्न के आलोक में यह स्पष्ट जाहिर होता है कि यह भाषा की शक्ति है क्योंकि भाषा को किसी सीमा में बाँधकर रखना भाषां के विकास पर पहरा देना है। भाषा के उन्मुक्त रहने से ही भाषा की व्यापकता संभव हो सकती है। अतः, यह कविता भाषा की सीमा नहीं होकर उसकी शक्ति है।
उत्तर- कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि वीरेन डंगवाल ने मानव जीवन का एक बिंब उपस्थित किया है। सुविधाभोगी-आरामपसंद जीवन नींदरूपी अकर्मण्यता की चादर से अपने-आपको ढंककर जब सो जाता है तब भी प्रकृति के वातावरण में एक छोटा बीज अपनी कर्मठतारूपी सींगों से धरती के सतह रूपी संकटों को तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है । यहाँ नींद, अंकुर, कोमल सींग, फूली हुई बीज, छत ये सभी बिम्ब रूप में उपस्थित हैं।
उत्तर- "हमारी नींद" शीर्षक कविता विरेन डँगवाल द्वारा रचित की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि कहते है कि जब हम नींद में सोते हैं, इसका यह अर्थ कतई नहीं होता कि सृष्टि का विकास क्रम रुक गया है। हमारी नींद में भी प्रकृति का विकासक्रम अग्रसर होता है।
हमारी नींद जितने घंटे की होती है, उसमें मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हो जाता है। मक्खी के अनेक शिशु पैदा होते हैं और उनमें से अनेक मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं।
हम जगकर भले ही सोचें कि हमारे सोने में प्रकृति का सारा विकास रुका हुआ था, पर यह सोचना एकदम सही नहीं होता। जीवन को घेरने, बाँधने, रोकने के अनेक प्रयास होते हैं।
हम में अधिक संख्या में ऐसे हैं जो बाधाओं का सामना नहीं कर पाते, उनके सामने झुक जाते हैं। पर, कुछ ऐसे भी हैं जो भीतर से बहुत मजबूत होते हैं, वे झुकना नहीं जानते। वे अस्वीकार का दुष्परिणाम जानते हुए भी बड़े साहस के साथ साफ-साफ इनकार करने का आदी होते हैं।
प्रस्तुत कविता जीवन की जय की कविता है। जीवन अवरोधों को नहीं जानता। वह हर अवरोध को हँसता हुआ पार करता है। उसकी प्रकृति सतत विकास की होती है। वह रुकना नहीं जानता, वह झुकना नहीं जानता।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के 'हमारी नींद' नामक शीर्षक से उद्धत है। इस अंश में हिन्दी काव्यधारा के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने वैसे लोगों का चित्रण किया है जो आरामतलबी जीवन पसंद करते हैं।
प्रस्तुत अंश में कवि कहते हैं कि जीवनक्रम कभी रुकता नहीं है। समय का चक्र के समान बिना किसी की प्रतीक्षा किये हुए अनवरत आगे ही बढ़ता जाता है। यदि हमारे समाज का कोई व्यक्ति सुविधाभोगी आराम का जीवन पसंद करता है तो कहीं एक पक्ष जरूर ऐसा भी होता है जिसका सिलसिला हमेशा आगे बढ़ते जाता है जो कर्मवाद का संदेश देता है।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल के द्वारा लिखित 'हमारी नींद' से ली गई है। इस अंश में कवि ने उन लोगों का चित्र खींचा जो गरीब बस्तियों में जाकर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए देवी जागरण जैसे महोत्सव का आयोजन करते हैं।
कवि कहते हैं कि आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे स्वार्थपरक लोग हैं जिनके हृदय में गरीबों के प्रति हमदर्दी नहीं है। केवल उनसे समय-समय पर झूठे वादे करते हैं। नेता, पूँजीपति एवं अत्याचारी ये सभी गरीबों की आंतरिक व्यथा से खिलवाड़ कर उनकी विवशता से लाभ उठाते हैं।