हिरोशिमा

अध्याय-7 | कवि का नाम- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन (अज्ञेय)

Subjective Questions and Answers

प्रश्न-1. हिरोशिमा में मनुष्य की साक्षी के रूप में क्या है?

उत्तर- आज भी हिरोशिमा में साक्षी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर, दीवारें पड़ी हुई हैं। यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सड़कों पर, घर की दीवारों पर लाश के निशान छाया के रूप में साक्षी हैं।

प्रश्न-2. 'हिरोशिमा' कविता से हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर- हिरोशिमा कविता मानवीय संवेदना स्थापित करते हुए चेतावनी के रूप में प्रस्तुत है। इस कविता में आधुनिक सभ्यता की दुर्दीत मानवीय विभीषिका का चित्रण है जिससे हमें संदेश मिलता है कि हम विकास-क्रम में मानवता को नहीं भूलें एवं हिंसक प्रवृत्ति पर नियंत्रण करें।

प्रश्न-3. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं? स्पष्ट करें। अथवा छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती है? 'हिरोशिमा' शीर्षक कविता के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- सूर्य के उगने से जो भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब या छाया का निर्माण होता है वे सभी दिशाहीन होती हैं। क्योंकि, आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसकी कोई निश्चित दिशा नहीं होती है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं, परन्तु चतुर्दिक फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है।

प्रश्न-4. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है? वह कैसे निकलता है?

उत्तर- कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है।

प्रश्न-5. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं?

उत्तर- मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं। जहाँ-तहाँ घरं की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं।

प्रश्न-6. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है?

उत्तर- हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चतुर्दिक फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रह गये। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया।

प्रश्न-7. आज के युग में इस कविता की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- 'हिरोशिमा' नामक कविता वर्तमान की प्रासंगिकता पर पूर्ण रूप से आधारित है। यह कविता आधुनिक सभ्यता की दुर्दान्त मानवीय विभीषिका का चित्रण करने वाली एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है।

यदि मानव प्रकृति से खिलवाड़ करना बाज नहीं आया तो प्रकृति ऐसी विनाशलीला खड़ा करेगा, जहाँ मानवीय बुद्धि की परिपक्वता छिन्न-भिन्न होकर बिखर जायेगी। हिरोशिमा में बम-विस्फोट का परिणाम इतना भयावह होगा इसकी कल्पना शायद उस दुर्दान्त मानव को भी नहीं होगा जिसने इसका प्रयोग किया।

सारांश

प्रश्न-8. अज्ञेय रचित 'हिरोशिमा' शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- "हिरोशिमा" शीर्षक कविता 'अज्ञेय' द्वारा रचित की गई है। द्वितीय विश्वयुद्ध में 6 अगस्त, 1945 को अमेरिका के एक बमवर्षक विमान से जापान के हिरोशिमा नगर पर अणुबम गिराया गया। इससे जान-माल की अपार क्षति हुई। ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता की पृष्ठभूमि यही है।

कवि कहता है कि नगर के चौक पर एक दिन सहसा सूरज निकला। यह सूरज प्रकृति का सूरज नहीं था, बल्कि मानव निर्मित अणुबम के विस्फोट से उत्पन्न सूरज था। इस अणुबम रूपी सूरज के उदित होने से मानव-जन की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ीं।

यह मानव निर्मित सूर्य कुछ ही क्षणों के अपने उदय-अस्त से सारी मानवता को विध्वस्त कर गया। उस सूर्य के उदित होते ही सारे मानव-जन वाष्प बनकर इस दुनिया से दूर चले गए। आज भी उनकी छायाएँ झुलसे हुए पत्थरों और उजड़ी हुई सड़कों की गच पर पड़ी हुई हैं।

सारे मानव-जन विनष्ट हो गए। उनकी पत्थरों पर पड़ी हुई छायाएँ उनकी साक्षी हैं। साक्षी हैं छायाएँ कि कभी यहाँ भी इनसान रहते थ। साक्षी हैं ये छायाएँ कि इनसान इतना निर्दय हो सकता है कि इनसान को मिटान म उसे थोड़ी भी हिचक नहीं होती।

यह कविता भौतिकवादी और साम्राज्यवादी मानव की दृष्टि के विरोध में एक तीखा व्यंग्य लेकर उपस्थित होती है। यह कविता युद्ध और शांति की समस्या से मुठभेड करती है और हमारे भीतर यथार्थ चित्रण से करुणा का स्रोत प्रवाहित करती है।

सप्रसंग व्याख्या करें।

प्रश्न-1. "मानव का रचा हुआ सूरज/मानव को भाप बनाकर सोख गया" की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी साहित्य के प्रयोगवादी कवि तथा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कवि 'अज्ञेय' के द्वारा लिखित 'हिरोशिमा' नामक शीर्षक से उद्धत है। प्रस्तुत अंश में हिरोशिमा पर आण्विक अस्त्र का प्रयोग कितना भयानक रहा, इसी का चित्रण यहाँ किया गया है।

प्रकृति पर नियंत्रण करने का होड़ मानव की बचपना स्पष्ट दिखाई पड़ने लगती है। यही स्थिति हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद देखने को मिली। मानव ने बमरूपी सूरज का निर्माण कर अपने-आपको ब्रह्माण्ड का नियामक समझ लिया था, लेकिन वह विस्फोट मानव को ही भाप बनाकर सोख लिया, अर्थात् वही विस्फोट मानव के लिए अभिशाप बन गया।

प्रश्न-2. "काल-सूर्य के रथ के / पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में" की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी साहित्य के महान प्रयोगवादी कवि 'अज्ञेय' के द्वारा लिखित 'हिरोशिमा' नामक शीर्षक से उद्धत है। प्रस्तुत अंश में यह कहा जा रहा है कि हिरोशिमा में बम का विस्फोट होना एक नहीं अनेक सूर्य की शक्ति के बराबर ज्वाला उगला था।

कवि को लगता है कि जैसे महाकालरूपी सूर्य के रथ का पहिया टूटकर दसों दिशाओं में बिखर गया हो। जहाँ-तहाँ पड़ी हुई लाशें सूर्यरूपी महाकाल की टूटी हुई पहियों के रूप में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया था।