उत्तर- भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था। परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी, भारतमाता चुपचाप अपने पुत्रों पर किये गये अत्याचार को देख रही थी। इसलिए कवि ने परतंत्रता को दर्शाते हए मुखरित किया है कि भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है।
उत्तर- भारतमाता के स्वरूप में ग्राम्य शोभा की झलक है। मुखमंडल चंद्रमा के समान दिव्य प्रकाशस्वरूप हँसी है, मुस्कुराहट है । लेकिन, परतंत्र होने के कारण वह हँसी फीकी पड़ गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रमा को राहु ने ग्रस लिया है।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। परतंत्र भारतवासियों को नंगे बदन तथा भूखे रहना पड़ता था। यहाँ की जनता असभ्य, अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी।
उत्तर- सुमिनानंदन पंत का जन्म 1900 ई. में कौसानी (अल्मोड़ा) उत्तरांचल में हुआ था।
उत्तर- परतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा हुई कि यहाँ के लोग खुद दिशाविहीन हो गये, दासता में बँधकर अपने अस्मिता को खो दिये । आत्म-निर्भरता समाप्त हो गई। इसलिए कवि कहता है कि भारतमाता गीता-प्रकाशिनी है, फिर भी आज ज्ञानमूढ़ बनी हुई है।
उत्तर- कविता के प्रथम अनुच्छेद में भारतमाता को ग्रामवासिनी मानते हुए तत्कालीन भारत का यथार्थ चित्रण किया गया है कि भारतमाता का फसलरूपी श्यामल शरीर है, धूल-धूसरित मैला-सा आँचल है । गंगा-यमुना के जल अश्रुस्वरूप हैं।
उत्तर- भारतमाता ने गाँधी जैसे पूत को जन्त दिया और अहिंसा का स्तनपान अपने पुत्रों को कराई है। अतः विश्व को अंधकारमक्त करनेवाली पूर्ण संसार को अभय का वरदान देनेवाली भारत माता का तप-संयम आज सफल है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत रचित कविता ‘भारतमाता’ से उद्धृत हैं। ये कविता की शुरुआती पंक्तियाँ हैं। इनके माध्यम से कवि कहता के भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। गाँवों में बसनेवाली भारतमाता का आँचल मैला हो गया है। वह अपनी दीन-दशा पर उदास है तथा मलिन है।
उत्तर- प्रस्तुत कविता "भारतमाता" कवि 'सुमित्रानंदन पंत' द्वारा रचित किया गया है। इसमें उन्होंने तत्कालीन भारत (परतंत्र भारत) का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। कवि कहते है कि भारतमाता गाँवों में निवास करती है। ग्रामवासिनी भारतमाता का धूल से भरा हुआ, मैला-सा श्यामल आँचल खेतों में फैला हुआ है।
वह मिट्टी की प्रतिमा-सी उदास दिखाई पड़ती है। गरीबी ने उसे चेतनाहीन बना दिया है। वह युग-युग के अंधकार से उसको मन विषादग्रस्त है। वह अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है।
पंत ने प्रस्तुत प्रगीत में भारतवासियों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। भारतवासियों के तन पर पर्याप्त वस्त्र नहीं है। वे अधनंगे हैं। उन्हें कभी भरपेट भोजन नहीं मिलता। वे शोषित और निहत्थे हैं। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन हैं। वे विवश और असहाय हैं।
ग्लानि और क्षोभ से उनके मस्तक झुके हुए हैं। भारत की सारी समृद्धि विदेशियों के पैरों पर पड़ी हुई है। भारतमाता धरती-सी सहिष्णु है। उसका मन कुंठित है। शरदेंदुहासिनी भारतमाता का हास राहुग्रसित है अर्थात अब उसके जीवन में हास के लिए कोई स्थान नहीं है।
गीता प्रकाशिनी भारतमाता ज्ञानमूढ़ है। आज उसका तप और संयम सफल हो गया है। उसने अहिंसा रूपी अमृत के समान अपना दूध पिलाकर भारत के लोगों के मन के भीतर के अंधकार और भय को दूर कर दिया है। भारतमाता जगजननी और जीवन को नई दिशा देनेवाली है।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश गोधूलि पाठ्य पुस्तक के 'भारतमाता' पाठ से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि सुमित्रानंदन पंत ने पराधीन भारत का यथार्थ चित्रण किया है। उन्होंने चित्रित किया है कि खेतों में चमकीले सोने के समान लहलहाती हुई फसल किसी दूसरे के पैरों के नीचे रौंदी जा रही है और हमारी भारत माता धरती के समान सहनशील होकर हृदय में घटन और कंठन का वातावरण लेकर जीवन जी रही है। मन ही मन रोने के कारण भारत माता के अधर काँप रहे हैं। उसकी मौन मुस्कान भी समाप्त हो गयी है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के 'भारतमाता' पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारतमाता के उदासीन, दुःखी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकड़ी भारतमाता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है। माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर रहे हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने परतंत्रता की दु:खद स्थिति का दर्शन कराया गया है।