उत्तर- कवि घनानंद ने अपनी कविता 'मो अँसुवानिहिं लै बरसौ' में बादलों को 'परजन्य' कहा है क्योंकि बादल परहित के लिए देह धारण करते हैं तथा अपने अमृत स्वरूप जल से वे सूखी धरती को सरस बनाते हैं।
उत्तर- परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है क्योंकि बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है तथा प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है।
उत्तर- कवि अपने आँसुओं को अपने प्रेयसी सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहता है, क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा के आँसुओं से प्रेयसी को भिंगो देना चाहता है।
उत्तर- कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। कवि इस कविता में प्रेम में संपूर्ण समर्पण की भावना को उजागर किया है।
उत्तर- कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताते हैं। ये कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है।
उत्तर- घनानंद का द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघ का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है।
उत्तर- कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेमपथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि-बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्ति की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है । प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेशमात्र भी नहीं होता।
उत्तर- पाठयपुस्तक में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद मार्ग पर चलने वाले महान प्रेमी घनानंद (घन आनंद) के दो सवैये पाठयपुस्तक में संकलित हैं। प्रथमा सवैया में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की बात कही गई है और दूसरे सवैया में मेघ की अन्योक्ति के द्वारा विरह-वेदना से भरे हृदय की तड़प को अत्यंत कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।
घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग तो अत्यंत सीधा, सरल और निश्छल होता है। यहाँ चतुराई के लिए कोई स्थान नहीं होता। हृदय से सीधे लोग ही प्रेम कर सकते हैं, सांसारिक और चतुर लोग नहीं । यहाँ तनिक भी चतुराई का टेढ़ापन नहीं चलता। यहाँ सच्चे हृदय का चलता है। जो अपने अहंकार का त्याग कर देता है, वही प्रेम कर सकता है। कपटी लोग प्रेम नहीं कर सकते।
दूसरे सवैया में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से घनानंद ने अपनी विरह-वेदना की अभिव्यक्ति की है। कवि कहता है-हे मेघ, तुमने दूसरों के लिए ही देह धारण की है, अपना यथार्थ स्वरूप दिखलाओ। अपनी सज्जनता का परिचय देते हुए मेरे हृदय की वेदना को समझो। कवि बादल को अपने प्रेम की आँसुओं को पहुँचाने के लिए कहते है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहते है क्योंकि वह उनकी याद में व्यतीत है और वह अपनी व्यथा के आँसुओं से अपनी प्रेमिका को भिंगो देना चाहते है।
उत्तर- प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि घनानंद-रचित 'अति सूधो सनेह को मारग है', से उद्धृत है। इसमें कवि प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना के सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेममार्ग अमृत के समान अति पवित्र है।
इस प्रेमरूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है। इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वे अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेमरूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इसपर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेसमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है। वह कपटी जो निःशंक नहीं है, इस मार्ग पर नहीं चल सकता।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित 'अति सूधो सनेह को मारग है' पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयसी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं।
प्रेमी निश्छल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।