उत्तर- कवि रसखान का मन मोहन की छवि में डूब गया है। उस नंद के चहेते ने रसखान के मन का मणि यानी चित हर लिया है, इसलिए कवि अब बिना मन का यानी बेमन हो गया है।
उत्तर- रसखान रचित सवैये में ब्रजभूमि के प्रति उनका हार्दिक प्रेम प्रकट होता है। सवैये में उन्होंने कहा है कि ब्रजभूमि की एक-एक वस्तु, स्थान, सरोवर, कँटीली झाड़ियाँ सुखदायक हैं क्योंकि यहाँ ब्रह्म के अवतार श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे।
उत्तर- कवि ने माली-मालिन कृष्ण और राधा को कहा है। क्योंकि, कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल को प्रेम-भरे नेत्र से देखा है । यहाँ प्रेम को वाटिका मानते हैं और उस प्रेम-वाटिका के माली-मालिन कृष्ण-राधा को मानते हैं।
उत्तर- कवि कृष्ण और राधा के प्रेम में मनमुग्ध हो गये हैं। उनकी मनमोहक छवि को देखकर मन पूर्णतः उस युगल में रम जाता है। इसलिए इन्हें लगता है कि इस देह से मनरूपी मणि को कृष्ण ने चुरा लिया है।
उत्तर- प्रस्तुत दोहे में सवैया छन्द में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यन्त मार्मिक है। सम्पूर्ण छन्द में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा सकती है।
उत्तर- प्रेम-रसिक कवि रसखान द्वारा रचित सवैये में कवि की आकांक्षा प्रकट हुई है। इसके माध्यम से कवि कहते हैं कि कृष्णलीला की छवि के सामने अन्य सभी दृश्य बेकार हैं। नन्द की गाय चराने की कृष्णलीला का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनके चराने में आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भुला जाना स्वाभाविक है। ब्रज के वनों के ऊपर करोड़ों इन्द्र के धाम को न्योछावर कर देने की आकांक्षा कवि प्रकट करते हैं।
उत्तर- पाठयपुस्तक में 'प्रेम-अयनि श्री राधिका' शीर्षक के अंतर्गत चार दोहे संकलित हैं। रसखान कवि कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम की खान हैं और श्रीकृष्ण का सारा व्यक्तित्व प्रेम के रंग में सराबोर है। प्रेम रूपी वाटिका (प्रेमोद्यान) के ये दोनों मालिन-माली हैं।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि नन्दकिशोर में जिस दिन से चित्त लग गया है उन्हें छोड़कर कहीं नहीं भटकता। कृष्ण को अपना प्रीतम बताते हुए कहते हैं कि कृष्ण मन को हरने वाले हैं। चित्त को चराने वाले हैं। उनकी मोहनी मूरत अपलक देखते रहने की आकांक्षा कवि व्यक्त करते हैं।
कवि के लिए श्रीकृष्ण की छोटी लाठी (लकुटी) और कंबली (कमरिया) इतनी महत्त्वपूर्ण है कि तीनों लोकों का राज्य भी उनके सामने तुच्छ है। कवि कहते है कि मुझे यदि तीनों लोकों का राज्य भी प्राप्त हो जाए तो मैं कृष्ण की लाठी और कंबली के सामने उसका त्याग कर दूँगा।
मुझे तो नंद की गाएँ चराते समय अपार सुख मिलता है। उसके आगे तो आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भी कुछ नहीं है। कवि कहते हैं कि यदि मुझे यदि कोई सोने-चाँदी के करोड़ों महल दे तब भी मैं उन्हें अस्वीकार कर दूँगा और ब्रज के करील-कुंजों के वैभव से प्राप्त आनंदानुभूति को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण पूँजी मानूंगा।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ करील के कुंजन ऊपर वारौं कविता से ली गई है। इसमें कवि 'रसखान' अपनी हार्दिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण की लाठी एवं कम्बल पर तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँ। नन्द बाबा की गाय चराने का अवसर मिल जाय, तो आठों प्रकार की सिद्धियों तथा नव-निधियों के सुखों का त्याग करने में मुझे कष्ट नहीं होगा। वह सोने के चमचमाते महल में रहने की अपेक्षा वृन्दावन के निकुंजों में वास करना बेहतर समझते हैं। अतः, कवि ने कृष्ण के प्रति अपने आपार प्रेम का परिचय दिया है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति कृष्णभक्त कवि रसखान द्वारा रचित हिंदी पाठ्य-पुस्तक के 'प्रेम-अयनि श्रीराधिका' पाठ से उद्धृत है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि नन्दकिशोर में जिस दिन से चित्त लग गया है उन्हें छोडकर कहीं नहीं भटकता। कृष्ण को अपना प्रीतम बताते हुए कहते हैं कि मन को पवित्र करने वाले चित्तचोर को आठों पहर देखते रहने की कामना समाप्त नहीं होती। कृष्ण मन को हरने वाले हैं। चित्त को चुराने वाले हैं। उनकी मोहनी मूरत अपलक देखते रहने की आकांक्षा कवि व्यक्त करते हैं।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के रसखान-रचित 'करील के कंजन ऊपर वारों' पाठ से उद्धृत है।
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि ब्रज के बागीचे एवं तालाब अति सुशोभित एवं अनुपम हैं। इन आँखों से उनकी शोभा देखते बनती है। कवि कहते हैं कि ब्रज के वनों के ऊपर, अति रमनीय, सुशोभित, मनोहारी मधुवन के ऊपर इन्द्रलोक को भी न्योछावर कर दूं तो कम है। ब्रज के मनमोहक तालाब एवं बाग की शोभा देखते हुए कवि की आँखें नहीं थकतीं। इनकी शोभा निरंतर निहारते रहने की भावना को कवि ने इस पंक्ति के द्वारा बड़े ही सहजशैली में अभिव्यक्त किया है।