उत्तर- लेखक आविन्यों में उन्नीस दिनों तक रहे। वे वहाँ अपने साथ हिंदी का टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें और कुछ संगीत के टेप्स ही ले गए थे। लेखक की उपलब्धि यही रही कि उन्होंने उन्नीस दिनों में पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य रचनाएँ लिखीं।
उत्तर- नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को लगता है कि जल स्थिर है और तट ही बह रहा है। उन्हें अनुभव हो रहा है कि वे नदी के साथ बह रहे हैं। वे स्वयं में नदी की झलक देखते हैं।
उत्तर- नदी तट पर लेखक को विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता याद आती है। क्योंकि लेखक नदी तट पर बैठकर अनुभव करते हैं कि वे स्वयं नदी हो गये हैं।
उत्तर- आविन्यों मध्ययुगीन ईसाई मठ है। यह दक्षिणी फ्रांस में अवस्थित है।। आविन्यों फ्रांस का एक प्रमुख कलाकेंद्र रहा है। यहाँ गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यंत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग-समारोह प्रतिवर्ष होता है।
उत्तर- नदी के किनारे और कविता के पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता। क्योंकि दोनों की अभिभूति से बची नहीं जा सकती। नदी और कविता में हम बरबस ही शामिल हो जाते हैं। इसलिए लेखक के अनुसार नदी के किनारे और कविता के पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं है।
उत्तर- मानवीय जीवन में सुख और दु:ख के समय व्यतीत होते हैं। पत्थर भी मानव की तरह परिवर्तनशील समय का सामना करता है। पत्थर भी प्राचीनता को अपने में सहेजे रखता है, उसी तरह मानव अपनी भावनाओं को प्रकट करता है और पत्थर की तरह मूक रहता है।
उत्तर- रोन नदी की दूसरी ओर आविन्यों का नया गाँव अर्थात् नई बस्ती है। वहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किला बनवाया था। उसी में कार्थसियन संप्रदाय का एक ईसाई मठ निर्मित हआ। उसे "ला शत्रुज" के नाम से जाना जाता है। चौदहवीं शताब्दी से अठारहवीं सदी के मध्य तक इसका धार्मिक उपयोग होता रहा। यह केंद्र लेखन और रंगमंच से जुड़ा हुआ है। नाटककार, अभिनेता, संगीतकार, रंगकर्मी आदि यहाँ आते हैं और ईसाई संतों के चैंबर्स में रहकर रचनात्मक कार्य करते हैं। यह अत्यंत शांत और नीरव स्थान है। कार्थसियन संप्रदाय मौन में विश्वास करता था। अतः इस ईसाई मठ का स्थापत्य कुछ ऐसा है कि इसे देखकर लगता है जैसे इसके चप्पे-चप्पे में मौन और चुप्पी का निवास हो। इसलिए 'ला-शत्रुज' को मौन का स्थापत्य कहा गया है।
उत्तर- "ला-शत्रूज" काथूसियन संप्रदाय का एक ईसाई मठ है। यह आविन्यों के नये गाँव में अवस्थित है जो रोन नदी के दूसरी ओर है और लगभग स्वतंत्र है। आजकल इसका उपयोग एक कलाकेंद्र के रूप में होता है। यह केंद्र आजकल रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है। यहाँ नाटककार, अभिनेता, गीत-संगीतकार, रंगकर्मी आदि आते हैं और पुराने ईसाई संतों के चैंबर्स में रहकर रचनात्मक लेखन करते हैं।
उत्तर- लेखक को आविन्यों के कलाकेंद्र में पीटर क्रुक द्वारा की जा रही 'महाभारत' की प्रस्तुति में दर्शक की हैसियत से आमंत्रित किया गया था। लेखक ने वहाँ देखा कि गर्मियों में आविन्यों के अनेक चर्च और पुरातन ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान रंगस्थल में बदल जाते हैं।
उत्तर- जिस प्रकार नदी सदियों से हमारे साथ रही है उसी प्रकार कविता भी मानव की जीवन-संगिनी रही है। नदी में विभिन्न जगहों से जल आकर मिलते हैं और वह प्रवाहित होकर सागर में समाहित होते रहते हैं। जैसे नदी जल-रिक्त नहीं होती, वैसे ही कविता शब्द-रिक्त नहीं होती। इस प्रकार नदी और कविता में लेखक अनेक समानता पाता है।
उत्तर- आविन्यों फ्रांस में रोन नदी के तट पर बसा एक पुराना शहर है। कभी यह पोप की राजधानी था। आज यह गर्मियों में प्रति वर्ष होने वाले रंग-समारोह का केन्द्र है।
रोन नदी के दूसरी और आविन्यों का एक स्वतंत्र भाग वीलनव्व ल आविन्यों अर्थात् नई बस्ती है। पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए फ्रेंच शासकों ने यहाँ किला बनवाया था। उसी में अब ईसाई मठ है- ला शत्रूज। क्रांति होने पर आम लोगों ने इस पर कब्जा कर लिया। सदी के आरम्भ में इसका जीर्णोद्वार किया गया और इसमें एक कला-केन्द्र की स्थापना की गई। यहाँ रंगकर्मी, अभिनेता, नाटककार कुछ समय रहकर रचनात्मक कार्य करते हैं। यहाँ अनेक सुविधाएँ हैं- पत्र पत्रिकाओं की दुकान है, एक डिपार्टमेंटल स्टोर, रेस्तराँ आदि।
अशोक वाजपेयी को फ्रेंच सरकार ने ला शत्रूज में रहकर कुछ काम करने का न्योता दिया। वे गए और वहाँ उन्नीस दिन रहे और उस एकान्त में 35 कविताएँ और 27 गद्य रचनाएँ कीं।
दरअसल, आविन्यों फ्रांस का प्रमुख कला-केन्द्र है।