उत्तर- जो लोग साहित्य में युग-परिवर्त्तन करना चाहते है, उनके लिए साहित्य की परंपरा का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि साहित्य की धारा को मोड़कर नये प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है।
उत्तर- साहित्य सापेक्ष रूप से स्वाधीन इसलिए होता है क्योंकि यह मनुष्य और परिस्थितियों के द्वन्द्वात्मक संबंध पर निर्भर करता है, ना कि यह किसी एक पर निर्भर करता है।
उत्तर- लेखक के अनुसार आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी परिवर्त्तन समाज में एक जगह से दूसरी जगह संचारित हो सके।
उत्तर- संसार का कोई भी देश बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से भारत का मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि यहाँ राष्ट्रीयता एक जाति द्वारा दूसरी जातियों पर राजनीतिक प्रभुत्व कायम करके स्थापित नहीं हुई है, बल्कि भारत की राष्ट्रीयता, यहाँ की इतिहास और संस्कृति की देन है।
उत्तर- साहित्य के पक्ष में लेखक की यह राय है कि साहित्य मनुष्य के संपूर्ण जीवन से संबंधित होता है। आर्थिक जीवन के अतिरिक्त मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी अपना जीवन बिताता है। अतः साहित्य में बहुत-सी भावनाएँ होती है, जो उसे प्राणी मात्र से जोड़ती है।
उसमें मनुष्य की भावनाएँ भी उत्पन्न होती है। साहित्य का यह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।
उत्तर- लेखक साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक मानते है। लेखक ने इस संबंध में सावधान किया है कि जो मनुष्य साहित्य का निर्माण करते है, तो यह आवश्यक नहीं है कि उनकी रचना में दोष नहीं है। अतः लेखक के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा अपने साहित्य निर्माण को दोषमुक्त माँ लेना साहित्य के विकास में खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
उत्तर- लेखक के अनुसार परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक (ज्ञान) महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मूल्यांकन करते हुए सबसे पहले हम उस साहित्य का मूल्य निर्धारित करते है जो शोषक वर्गों के विरुद्ध जनता के हितों को प्रतिबिंबित करता है।
उत्तर- लेखक का मानना है कि राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी होते है। लेखक इस बात की पुष्टि के लिए अंग्रेज कवि टेनिसन द्वारा रचित उस कविता की चर्चा करते है जिसमें कहा गया है कि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया लेकिन वर्जिल के काव्य सागर की ध्वनि तरंगे आज भी सुनाई देती है और हृदय को आनंदित करती है।
उत्तर- लेखक के अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपव्यय होता है। देश के साधनों का सबसे अच्छा उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। इस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है।
उत्तर- भारतीय सामाजिक विकास में बाल्मीकि और व्यास जैसे कवियों की विशेष भूमिका रही है। भारत में विभिन्न जातियों का मिला-जुला इतिहास रहा है। इस देश के बहुत कवियों ने अनेक जाति के सहारे यहाँ के संस्कृति का निर्माण किया है और विभिन्न जातियों को एक सूत्र में बाँध कर राष्ट्रीयता की जड़ को मजबूत किया है। इस प्रकार भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है।
उत्तर- साहित्य के विकास में जातियों की भूमिका विशेष होती है। जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करते है, उनमें इतिहास एवं सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर निर्मित अस्मिता का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेखक के अनुसार जातीय अस्मिता साहित्यिक परंपरा के ज्ञान का वाहक है।
उत्तर- "परंपरा का मूल्यांकन" निबंध का समापन करते हुए लेखक साहित्यिक परंपरा के ज्ञान-विस्तार का स्वप्न देखता है। इसके लिए उन्होंने समाजवादी व्यवस्था को उत्तम माना है। उसे साकार करने में परंपरा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है क्योंकि समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति से नाता नहीं तोड़ती है।
उत्तर- लेखक ने जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए दोनो में कुछ समानता की भी चर्चा की है। जब राष्ट्र के सभी तत्वों पर मुसीबत आती है, तब राष्ट्रीय अस्मिता का ज्ञान अच्छा हो जाता है। उस समय साहित्य परंपरा का ज्ञान भी राष्ट्रीय भाव जागृत करता है। लेखक के अनुसार समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर जातीय अस्मिता खंडित नहीं होती बल्कि और मजबूत होती है।
उत्तर- साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कहा है कि गुलामी अमेरिका और एथेन्स दोनों में थी लेकिन एथेन्स की सभ्यता ने सारे यूरोप को प्रभावित किया। साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका होते हुए भी साहित्य वही तक सीमित नहीं है क्योंकि साहित्य के क्षेत्र में हमेशा कुछ नया करने की गुंजाइश बनी रहती है। अतः साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन रहता है।
उत्तर- लेखक के अनुसार आर्थिक संबंधों से प्रभावित होना एक बात है, लेकिन उनके द्वारा चेतना का निर्धारित होना और बात है। लेखक के अनुसार सामंतवाद दुनिया भर में कायम रहा लेकिन इस सामंती दुनिया में महान कविता के दो ही केंद्र थे— भारत और ईरान। इन दृष्टांतों के माध्यम से कहा गया कि सामाजिक परिस्थितियों में कला का विकास संभव होता है।