उत्तर- भारतीय विद्वानों के अनुसार गुर्जर प्रतिहार विदेशों से भारत आए थे। ईसा के आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश पर अपना शासन स्थापित किया और बाद में इन्होंने ने कन्नौज पर भी अपना अधिकार कर लिया। मिहिर भोज, महेंद्र पाल इत्यादि प्रसिद्ध प्रतिहार शासक थे।
उत्तर- प्राचीन काल में पटलीपुत्र (पटना) को नगर भी कहा जाता था। आगे चलकर चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने पटना को देवनगर का नाम रख दिया। भारत की प्रमुख लिपि को देवनगर के नाम पर ही देवनागरी नाम कर दिया गया।
उत्तर- देवनागरी लिपि में मुख्यतः मराठी, संस्कृत, पाकृत और हिन्दी भाषाएँ लिखी जाते है।
उत्तर- ईशा के 8 वीं सदी से 11 वीं सदी तक नागरी लिपि पूरे देश में व्याप्त थी। अतः उस समय नागरी लिपि एक सार्वदेशिक लिपि थी।
उत्तर- नागरी नाम की उत्पति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बहुत मतभेद है। एक मत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों में सबसे पहले नागरी लिपि का इस्तेमाल किया था जिसके कारण नागरी नाम पड़ा। एक दूसरे मत के अनुसार बाकी नगर सिर्फ नगर है लेकिन काशी देवनागरी है। इसलिए काशी में लिपि का नाम देवनागरी पड़ा।
उत्तर- करीब दो सदी पहले पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगी। इसके बाद देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी।
उत्तर- लेखक ने गुजराती, बांग्ला, और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
उत्तर- विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत में मिहिर भोज, महेंद्र पाल इत्यादि गुर्जर प्रतिहार राजाओं के अभिलेख में नागरी लिपि के लेख प्राप्त होते है।
उत्तर- नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाओं का भी जन्म हुआ। इस संबंध में लेखक बताते है कि आठवीं सदीं से हिन्दी का साहित्य मिलने लगा तथा इसी काल में मराठी, बांग्ला इत्यादि भाषाओं का भी जन्म हुआ?
उत्तर- दक्षिण भारत की नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख के प्रसंग में लेखक ने इसका उल्लेख किया है।
उत्तर- गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा उसके बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी लकीरें तथा छोटे ठोस तिकोन होते थे लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती है और इन रेखाओं की लंबाई उतनी ही रहती है जितनी अक्षरों की चौड़ाई होती है।
उत्तर- विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे के दक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए है।
उत्तर- 'पदताडितकम्' नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे। लेखक के अनुसार नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है, और यह उत्तर भारत का बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमदित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी का नाम दिया गया।
उत्तर- निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रमाण मिले है। 11 वीं सदी में राजेन्द्र जैसे चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर पाए गए है। 12 वीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर भी शब्द नागरी लिपि में अंकित है। 1000 ईस्वी के आस-पास मालवा नगर में भी नागरी लिपि का इस्तेमाल होता था। 850 ईस्वी में जैन-गणितज्ञ महावीराचार्य के रचना भी नागरी लिपि में है। इस प्रकार 8 वीं सदी से 11 वीं सदी में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी।