उत्तर- प्रारंभिक काल में मानव एवं पशु एक समान थे। नाखून उन दोनों के अस्त्र थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतते गया, मनुष्य पशुओं से भिन्न होता चला गया। मनुष्य बुद्धिमान होने के कारण जो नाखून पहले उसके अस्त्र थे वह अब उसका सौन्दर्य का रूप देने लगा। मनुष्य अपने आप को सँवारने तथा पशुओं से अलग दिखने के लिए बार-बार अपने नाखूनों को काट देता है।
उत्तर- नाखून क्यों बढ़ते है, यह प्रश्न लेखक की छोटी लड़की उनसे पूछ दी। इस प्रकार यह प्रश्न लेखक के आगे उनकी लड़की के माध्यम से उपस्थित हुआ।
उत्तर- लेखक के अनुसार किसी भी प्रकार से बल, छल या बुद्धि से सफल हो जाना सफलता है तथा प्रेम, मित्रता, त्याग और जन-कल्याण का भाव रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना चरितार्थता है।
उत्तर- लाखों वर्ष पहले मनुष्य भी पशुओं की तरह जंगली था। उस समय मनुष्य जंगलों में ही रहता था। अतः उसे अपनी आत्मरक्षा और भोजन के लिए नाखून आवश्यक था क्योंकि उस समय लोहे या अन्य धातुओं के अस्त्र नहीं थे, नाखून ही उसके असली अस्त्र थे। इसलिए लेखक के द्वारा नाखूनों को अस्त्र कहा जाना पूरी तरह से संगत है।
उत्तर- बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती है कि तुम्हारे नाखून वाले अस्त्र को कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि प्राचीन काल में यही नाखून तुम्हारे अस्त्र थे जो तुम्हारे जीवन जीने में सहायता करते थे। तुम वही प्राचीनतम नाखूनों पर आश्रित रहने वाले जीव हो।
उत्तर- लेखक कहते है कि 'स्वाधीनता' शब्द का अर्थ है— अपने ही अधीन रहना। लेखक बताते है कि लोगों ने जितनी भी आजादी के नामकरण किये है, जैसे स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता। इनमें स्व का बंधन आवश्यक है।
उत्तर- लेखक ने रूढ़िवादी विचारधारा और प्राचीन संवेदनाओं से हटकर जीवन यापन करने के प्रसंग में कहा है कि "बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती।" मनुष्य को एक बुद्धिजीवी होने के नाते परिस्थिति के अनुसार साधन का प्रयोग करके अपना विकास करना चाहिए।
उत्तर- लेखक ने कहा है कि मानव जब धीरे धीरे विकसित हुआ तो उसने सभ्य बनने और पशुता की पहचान समाप्त करने के लिए अपने नाखूनों को काटना शुरू कर दिया। भारतवासियों में अपने नाखूनों को सँवारने की कला बहुत पहले विकसित हुई। मनुष्य अपने नाखूनों को त्रिकोण, चंद्राकार, दंतुल इत्यादि विभिन्न आकृतियों के रखने की कला विकसित हुई, जो मनुष्यों के मनोविनोद का साधन बना।
उत्तर- लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है— अपने आप पर अपने द्वारा लगाया हुआ बंधन। भारतीय संस्कृति की विशेषता का ही फल है कि भारतीय हर कार्यों को पराधीनता के रूप में ना सोच कर स्वाधीनता के रूप में सोचता है। यह विशेषता हमारे भारतीय संस्कृति की ही देन है।
उत्तर- मनुष्य की पूछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जायेंगे। प्राणीशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है अर्थात मनुष्य अपनी पशुता को पूर्णतः त्यागकर पूर्ण रूप से मानवता को प्राप्त कर लेगा।
उत्तर- लेखक ने महात्मा गाँधी को बूढ़े के रूप में जिक्र किया है। लेखक की दृष्टि में महात्मा गाँधी के कथनों की सार्थकता उभरकर इस प्रकार आती है कि जिस मनुष्यों में पशुता प्रवृति होती है, उसमें सत्यता, सौन्दर्यं और विश्वसनीयता नहीं होती है क्योंकि महात्मा गाँधी ने सभी लोगों को पशुता वाली प्रवृति अर्थात हिंसा, क्रोध और लोभ से दूर रहने की सलाह दी थी।
उत्तर- मनुष्य के शरीर में उपस्थित विभिन्न प्रकार की सहज वृतियाँ होती है। जिसमें नाखून का बढ़ना भी एक सहज वृति है। लेखक के अनुसार नख बढ़ाने की सहजात वृति पशुत्व का प्रमाण है तथा उसे काटने की प्रवृति मनुष्यता का प्रमाण है। मनुष्य के अंदर पशुत्व है लेकिन मानव पशुता को छोड़ चुका है क्योंकि पशु बनकर वह आगे नहीं बाढ़ सकता। इसलिए पशुता की पहचान नाखून को मनुष्य काट देता है।
उत्तर- सफलता और चरितार्थता में इस प्रकार की भिन्नता प्रतिपादित होती है कि बाहरी उपकरणों के बाहुल्य से तथा गलत तरीकों से किसी भी वस्तु को पा सकता है और उसे अपनी सफलता का नाम दे सकता है लेकिन मनुष्यों की सफलता और चरितार्थता प्रेम में, मित्रता में और त्याग में होती है।
उत्तर- लेखक अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए स्पष्ट रूप से लोगों के सामने यह प्रश्न रखता है कि मनुष्य पशुता की ओर बढ़ रहा है या मनुष्यता की ओर। लेखक के अनुसार मनुष्य पशुता की ओर बढ़ रहा है क्योंकि मनुष्य में बंदूक, बम, मिसाइल इत्यादि विभिन्न प्रकार के अस्त्रों को रखने की प्रवृति बढ़ रही है, जो पशुता की निशानी है।