उत्तर- गाँधीजी के अनुसार शिक्षा का जरूरी अंग यह होना चाहिए कि बालक जीवन-संग्राम में प्रेम से घृणा को, सत्य से असत्य को और कष्ट-सहन से हिंसा को आसानी के साथ जीतना सीखें।
उत्तर- अहिंसक प्रतिरोध को गाँधीजी बढ़िया शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा अक्षर-ज्ञान से पूर्व मिलना चाहिए।
उत्तर- शिक्षा का ध्येय गाँधीजी चरित्र-निर्माण करना मानते थे। उनके विचार से शिक्षा के माध्यम से मनुष्य में साहस, बल, सदाचार जैसे गुणों का विकास होना चाहिए, क्योंकि चरित्र-निर्माण होने से सामाजिक उत्थान स्वयं होगा।
उत्तर- गाँधीजी भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं, क्योंकि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य ने भारतीय जीवन को प्रभावित किया है और स्वयं भी भारतीय जीवन से प्रभावित हुई है।
उत्तर- इन्द्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग करने से मनुष्य की बुद्धि तथा उसका विकास तेजी से होता है। इसलिए इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सीखना जरूरी है।
उत्तर- शिक्षा का प्रारंभ इस तरह किया जाए कि बच्चे उपयोगी दस्तकारी सीखें और जिस क्षण से वह अपनी तालीम शुरू करें उसी क्षण उन्हें उत्पादन का काम करने योग्य बना दिया जाए । इस प्रकार की शिक्षा-पद्धति में मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास संभव है।
उत्तर- गाँधीजी का मानना था कि देशी भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से किसी भी भाषा के विचारों को तथा ज्ञान को आसानी से ग्रहण किया जा सकता है। अंग्रेजी या संसार के अन्य भाषाओं में जो ज्ञान-भंडार पड़ा है, उसे अपनी ही मातृभाषा के द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए गाँधीजी देशी भाषाओं में बड़े पैमाने पर अनुवाद-कार्य आवश्यक मानते थे।
उत्तर- दूसरी संस्कृतियों की समझ और कद्र स्वयं अपनी संस्कृति की कद्र होने और उसे हजम कर लेने के बाद होनी चाहिए, पहले हरगिज नहीं क्योंकि कोई संस्कृति इतने रत्न-भण्डार से भरी हुई नहीं है जितनी हमारी अपनी संस्कृति है। इसलिए दूसरी संस्कृति से पहले अपनी संस्कृति की गहरी समझ जरूरी है?
उत्तर- कताई और धुनाई जैसे ग्रामोद्योगों के संबंध में गाँधीजी की कल्पना थी कि यह एक ऐसी शांत सामाजिक क्रांति की अग्रदूत बने। इससे ग्रामीण जन-जीवन विकसित होगा और गरीब-अमीर में कोई अप्राकृतिक भेद नहीं रहेगा।
उत्तर- गाँधीजी के विचारानुसार अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाकर हम अत्यधिक विकास कर सकते हैं। अपनी संस्कृति के माध्यम से जीवन में तेज गति से उत्थान किया जा सकता है। गाँधीजी का कहना था कि हमें दूसरी संस्कृति की अच्छी बातों को अपनाने में परहेज नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी संस्कति एवं भाषा को आधार बनाकर अन्य भाषाओं से और दूसरी संस्कृतियों से संपर्क बनाना चाहिये।
उत्तर- "शिक्षा और संस्कृति" गाँधीजी द्वारा रचित किया गया है। गाँधीजी के विचार से अहिंसक प्रतिरोध सबसे उत्तम और बढ़िया शिक्षा है। वर्णमाला सीखने के पहले बच्चे को आत्मा, सत्य, प्रेम और आत्मा की छिपी शक्तियों का पता होना चाहिए। यह बताया जाना चाहिए कि सत्य से असत्य को और कष्ट-सहन से हिंसा को कैसे जीता जा सकता है।
प्रारम्भिक शिक्षा में सफाई और तन्दुरूस्त रहने के ढंग बताये जाने चाहिए। प्राथमिक शिक्षा में कताई-धुनाई को शामिल करना चाहिए। ताकि नगर और गाँव एक दूसरे से जुड़ें। इससे गाँवों का ह्वास रूकेगा।
शिक्षा का ध्येय चरित्र-निर्माण होना चाहिए। सभी लोगों में साहस, बल और सदाचार की भावना होनी चाहिये।
संसार की सर्वश्रेष्ठ कृतियों का अनुवाद देश की भाषाओं में होना चाहिए ताकि अपनी भाषा में टॉल्सटाय, शेक्सपियर, मिल्टन, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियों का आनन्द उठा सकें। हमें अपनी संस्कृति के बारे में पहले जानना चाहिए। हमें दूसरी संस्कृतियों के बारे में भी जानना चाहिए।
भारतीय संस्कृति उन भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य का प्रतीक है जिनके पाँव भारत में जम गए हैं, जिनका भारतीय जीवन पर प्रभाव पड़ा है और वे स्वयं भारतीय जीवन से प्रभावित हुई हैं।