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बेदखल के लिए प्रक्रिया जानना चाहते है, उसकी वित्तीय देनदारियों के कारण। हम उसके साथ सभी रिश्तो को कैसे रद्द कर सकते हैं? और उसके कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकते?
"बेदखल" का प्रभाव किसी को अपनी संपत्ति से अस्वीकार करने के लिए है। एक सार्वजनिक नोटिस स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित करना होता है, बड़े पैमाने पर जनता को सूचित करने के लिए। लेकिन अगर संपत्ति पैतृक संपत्ति है तो आप व्यक्ति का अस्वीकरण नहीं कर सकते , लेकिन अगर संपत्ति स्वयं अर्जित है तो, कानूनी वारिस का अस्वीकरण किया जा सकता है। इस सीमित उद्देश्य के लिए, ये अच्छा रहता है की एक रजिस्टर्ड वसीयत हो इन व्यक्तिओ का संपत्ति से अधिकार हटाने के लिए, जिसको की बाद में लड़ा जा सकता है इस आधार पर की वसीयत किसी दवाब में बनायीं गयी थी या उस वक़्त मानसिक हालत ठीक नहीं थी।
कई ऋण कलेक्टरों मानते है कि आप कानूनी वारिस के रूप में ऋण के लिए जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं बल्कि एक व्यक्ति के नुकसान से निपटने के लिए है, और साथ ही ऋण कलेक्टरों द्वारा परेशान किया जाता है। यह पता होना जरुरी है की आप किन देनदारियों के लिए जिम्मेदार हो सकते है। जब तक आप किसी दस्तावेज़ पर सह हस्ताक्षर नहीं करते, तो आप शायद ही कभी इस तरह के एक ऋण के लिए जिम्मेदार होंगे। क्रेडिट कार्ड ऋण और अन्य असुरक्षित ऋण विरासत में नहीं आते हैं।
नई दिल्ली। समाज में फैली अव्यवस्थाओं पर समय-समय पर देश की अदालतें महत्वपूर्ण फैसले सुनाती रही हैं। इस कड़ी में अब दिल्ली हाईकोर्ट ने माता-पिता की संपत्ति पर एक बड़ा फैसला सुनाया है। घर में रहते हुए अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यहार करने वाली संतानों को संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि घर में रह रहे परिजनों को उस पर कब्जा करने की आवश्कता नहीं है। साथ ही यह भी कहा है कि घर में रहने के दौरान अगर संतान चाहे बेटा हो फिर बेटी माता-पिता से दुर्व्यहार करता है तो उसे घर से बेदखल किया जा सकता है।
यह है मामला
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह फैसला सिविल लाइन्स में रहने वाले एक शराबी शख्स की याचिका पर दिया है। शख्स ने ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें माता-पिता से दुर्व्यहार करने पर उसे घर से बेदखल करने का फैसला दिया था। शख्स के माता-पिता अब भी सिविल लाइन्स इलाके में ही रहते हैं।
धारा 23 के मुताबिक, बच्चे अगर अपने मां-बाप और बुजुर्गों की देखभाल करने में असफल होते हैं तो ऐसी स्थिति में मां-बाप संपत्ति का हस्तांतरण कर दोबारा संपत्ति के हकदार हो सकते हैं।
कानून में प्रावधान है कि अगर बच्चे देखभाल का भरोसा देकर संपत्ति हथियाने की कोशिश करते हैं तो वैसी स्थिति में बुजुर्ग दोबारा संपत्ति को अपने नाम पर हस्तांतरित कर सकते हैं।
मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट,2007 आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, नागालैंड, राजस्थान और त्रिपुरा में अधिसूचित है।
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