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अल्लाह से मुहब्बत करने वाला हो।
कसरत से ज़्यदा से ज़्यदा तलबिया पढ़ने वाला हो।
दूसरों की मदद करने वाला हो।
दूसरों की तकलीफ पर सबर करने वाला हो।
मिज़ाज के खिलाफ कुछ हो जाये तो अल्लाह लिए बर्दाश्त करने वाला हो।
सुन्नतों का पाबंद हो।
अल्लाह ने क़ुरान में फ़रमाया - सफर का बेहतरीन साथी तक़वा (अल्लाह से डर और मोहब्बत) है।
गुनाहों से बचता हो।
हमेशा इस बात का ख्याल रखता हो और डरता भी हो के कहीं मेरे आमाल (हज और उमराह ) अल्लाह की बारगाह में रद्द न होजाये।
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने ज़िन्दगी में सिर्फ एक हज किया और हाजी के लिए हज का पैगाम वही है जिसे अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज के मौके पर दिया।
हज करने के ३ महीने बाद अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस दुन्या से पर्दाह फर्मा गए (इंतेक़ाल हुवा)
आखरी वक़्त में कही हुवी बातें काफी एहमियत रखती हैं।
दो मौके पर अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खुत्बा दिया।
हज के तीसरे दिन अराफात के मैदान में
हज के बाद मदीना वापसी के सफर में, ग़दीर खुम मक़ाम पर
हज के खुत्बा के फ़ौरन बाद क़ुरान की आयत नाज़िल हुवी के आज हम ने दीं को मुकम्मल (पूरा) किया -
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया
लोगो ! आपस में एक दूसरे का माल और जान हराम है। एक दूसरे को क़तल करके काफिर(गुमराह) न हो जाना।
औरतों के हुक़ूक़ के बारे में अल्लाह से डरो।
सब बदले और इन्तेक़ाम ख़तम किये और सब से पहले अपने खानदान में एक शख्स के खून का बदला माफ़ किया।
गुलाम (नौकरों) के साथ अच्छा सुलूक करने का हुकुम दिया।जो खुद खाओ, उनको खिलाओ और जो खुद पहनो उनको पहनाओ
अल्लाह ने ज़ात/बिरादरी इस लिए पैदा की तुम एक दूसरे को पेहचान सको , लेहाज़ा कोई काला, गोरा, अरबी,गैर अरबी (अजमी) एक दूसरे से बड़ा नहीं है। अल्लाह के नज़दीक इज़्ज़त वाला वही है जो अल्लाह से ज़्यदा डरने(तक़वे) वाला है।
मीरास (जायदाद) और वसीयत के बारे में हुकुम दिया।
नमाज़ की पाबन्दी, रमजान के रोज़े, ज़कात और हज करने का हुकुम दिया।
दीनी बातों में घुलु (छोटी छोट बातों में सख्ती और बे-वजह गहरायी में जाना) से बचना।
सूदी लेन-देन को ख़तम किया और अपने चाचा अब्बास (र) का सूद माफ़ किया
मैं आखरी नबी हूँ और तुम आखरी उम्मत।
अल्लाह के नबी ने हर एक पर ज़िम्मेदारी डाली की मेरी कही हुवी बातें, उन लोगों तक पोहचए जो यहाँ मौजूद नहीं हैं।
हज के बाद मक्काः से मदीना वापसी पर ग़दीर खुम (जहफ़ह) -
ये वही मक़ाम है जहाँ अल्लाह के नबी के कहा, जिसका मैं मौला, अली (र) उसके मौला।
अल्लाह के नबी ने कहा के क़ुरान और मेरे अहले बैत (घर वालों) का साथ पकड़ के रखो। गुमराह नहीं होंगे।
और दूसरी जगह कहा के क़ुरान और मेरी सुन्नत(तरीके) को मज़बूती से पकड़ना।
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपनी ६३ साल की ज़िन्दगी में सिर्फ १ हज और ४ उमराह किये।
इस हज को हज्जतुल-वदा भी कहते हैं।
इस हज के लिए आप मदीना से रवाना हुवे।
हज के मौके का अराफात के मैदान का खुत्बा (बयान) को काफी एहमियत हासिल है।
हर हाजी को ये खुत्बा पढ़ना और इस पर अमल करना चाहिए।
इस हज के ३ महीने बाद अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस दुन्या से परदह फार्मा गए, आपका इंतेक़ाल हुवा।
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ४ उमराह की तफ्सील -
पेहला उमराह - 6 हिजरी (मदीना हिजरत के 6 साल बाद). अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हुदैबिया से वापस जाना पड़ा। उमराह नहीं कर पाए , सूरह फ़तेह नाज़िल हुवी।सुलह हुदैबिया हुवी
दूसरा उमराह - सुलह हदैबिया के अगले साल 7 हिजरी में
तीसरा उमराह - जुरनाह के मक़ाम से गज़वा(जंग) हुनैन से वापसी पर
चौथा उमराह - फ़तेह मक्काः के बाद , हज के साथ
Video Title 1: अल्लाह के नबी ने कितने हज और उमराह किये
https://youtu.be/ydxZeVDPzwg
विडियो २: अल्लाह के नबी ने कितने उमरह किये 
https://youtu.be/-DHNaWVL5vI