यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ||
(अथर्ववेद 10-8-1)
जो भूत, भविष्य और सबमें व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी
जो भूत, भविष्य और सबमें व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी
अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म को प्रणाम है.
अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म को प्रणाम है.