केंद्रीय हिंदी संस्थान के मैसूरु केंद्र एवं भारतीय भाषा संस्थान, मैसूरु के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा एवं भारतीय भाषा संस्थान, मैसूरु भारत के दो ऐसे महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं, जिनकी चर्चा किए बिना भारत का भाषाई विवेचन अधूरा होगा। केंद्रीय हिंदी संस्थान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 1961 में स्थापित ‘केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल‘ द्वारा संचालित अखिल भारतीय स्तर की एक स्वायत्तशासी संस्था है। इसकी स्थापना उस दौर में हुई थी, जब भारत सरकार ने हिंदी को राजभाषा स्वीकार करने के पश्चात् हिंदी के विकास के लिए इस स्वीकारोक्ति के साथ व्यापक कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे कि हिंदी के विकास और समृद्धि के लिए पूरे देश में प्रयास किए जाएँ और साथ ही विदेशों में भी हिंदी के अध्यापन के लिए उचित कदम उठाए जाएँ। केंद्रीय हिंदी संस्थान अनेक अकादमिक कार्य करता है, लेकिन सबके मूल में हिंदी के विकास के साथ इसके माध्यम से देश का राष्ट्रीय एकीकरण एवं यहाँ के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन ही है। वास्तव में यह संस्थान हिंदी को भारत की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता को मजबूत करने की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखता है। ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान‘ हिंदी की विभिन्न बोलियों के साथ-साथ अनेक अल्पज्ञात मातृभाषाओं के प्रति भी काफी संजीदा है। हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना के अंतर्गत 48 लोकभाषाओं के शब्दकोश निर्माण का कार्य किया जा रहा है। जहाँ तक अल्पज्ञात भाषाओं के प्रलेखन की बात है, तो संस्थान हिंदी से लुशाई, अंगामी, लोथा, मिज़ो, निशी, कॉकबरक, बल्ती, भूटिया, लेप्चा, लिंबू जेलियांग, नोक्ते, मोनपा, सुरती, सौराष्ट्री, पट्टणी, निकोबारी, आदी, सिंग्फो, सेमा, गालो इत्यादि मातृभाषाओं के अध्येता कोशों को तैयार करवा रहा है, जिनमें से कुछ प्रकाशित हो चुके हैं तथा कुछ प्रकाशनाधीन हैं। इन कोशों से इन मातृभाषाओं का प्रलेखन तो हो ही रहा है, साथ ही ये भाषाएँ हिंदी के माध्यम से अपनी पहुँच पूरे भारत में बना रहीं हैं।
भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर की स्थापना ही संपूर्ण भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने के लिए हुई थी। अल्पज्ञात भाषाओं का प्रलेखन संस्थान में स्थापना के समय से ही प्रारंभ हो गया था। वर्तमान में ‘लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण एवं संचयन‘ (Scheme for the Preservation and Protection of Endangered Languages (SPPEL) शीर्षक से एक परियोजना चल रही है, जिसमें तकरीबन 500 मातृ-भाषाओं के प्रलेखन को योग्य एवं प्रशिक्षित भाषाविदों द्वारा किया जा रहा है। यह परियोजना भारतवर्ष में संकटापन्न भाषाओं की वास्तविक स्थिति का आधिकारिक विवरण प्रस्तुत करेगी, जिससे भारत सरकार को अपनी भाषा-नीति निर्धारण में सहायता मिलेगी। इस परियोजना में प्रलेखन के माध्यम से इन भाषाओं में सामग्री (व्याकरण, कोश) सृजित की जा रही है, जिससे अल्पज्ञात भाषाओं के संरक्षण के साथ-साथ संवर्धन भी हो सके और इस प्रकार विलुप्त होने की कगार पर खड़ी भाषाओं के पुनरुत्थान की दिशा में पहल किया जा सके।