कल्पांत रेकी साधना *1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स का नया Batch, Online Join करें!
लगभग 1800 ईसा के अंतिम वर्षों में डाँ मिकाओ उशुई ने रैंकी को खोजा ओर उन्हे इसका संस्थापक माना गया हैं। परंतु हमारे ऋषि मुनियों ने, संत महात्माओं ने जीवन के आरंभ में ही इस विधि को जान लिया था। और वह प्रार्थना के द्वारा इसका प्रयोग करते थें। हमारे प्राचीन ऋषियों की संपदा को ही डॉक्टर मिकाओ उशुई ने खोजा और जापानीज सिंबल व जापानी मंत्र दिए, परन्तु कल्पांत रेंकी साधना में हम भारतीय सिंबल व मंत्र के द्वारा रेंकी हीलिंग सीखेंगे और यह रेंकी या ऊर्जा जापानीज रेंकी से हजारों गुना तेजी से काम करेंगी और इसको जानना व सीखना भी आसान होगा।
कल्पांत रेंकी साधना पुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
ग्रन्थो मे भी जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धर्म , अर्थ, काम, ओर मोक्ष का वर्णन किया हैं। अर्थात सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। धर्म के साथ अर्थ , अर्थ के साथ काम, ओर काम के साथ मोक्ष जुड़ा हुआ है। ओर इसी काम को दर्शाने के लिए कामदेव (पुरुष) व रति (स्त्री) देवता के प्रतीक भी बनाये गये हैं। काम व रति के अभाव मैं मनुष्य का हदृय कुंठाओ से भर जाता हैं ओर मति भष्ट हो जाती हैं।
मनुष्य आनंद चहाता हैं ओर वह उसे पाने के लिये लालायित होता है। जीवन मे संभोग आनंद की पराकाष्ठा है क्योंकि उस समय उसके अन्दर कोई भी विचार नही होता है वह निर्विचार सिर्फ वर्तमान मे क्रियाशील हो रहा होता है ओर बिन्दु का आनंद रूपी अमृत नीचे की ओर आकर आनंद की तृप्ति देता है। इस प्रकार काम का उपयोग सीमा मे कर उसे आनंद का साधन बनाना केवल संयम के अधीन ही संभव हैं।
संभोग से आनंद की ओर पुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
जब यह प्रश्न हम अपने आप से पूछेगें तो अनेक जबाब आयेंगे। हम शांति पाना चाहतें है ( अर्थात हम अशांत है।) हम सत्य को जानना चाहते हैं। (अर्थात कुछ ऐसा हैं जो रह्स्य हैं।) हम परमात्मा को पाना चाहते हैं।(अर्थात कोई हैं जो हमसे ज्यादा शक्तिवान है।) हम पूर्ण स्वस्थ होना चाहते हैं। ( क्योकि आज सभी आपने आ को अस्वस्थ महसूस कर रहे हैं।) हम आनंद या सुख को पाना चाहते हैं।( अर्थात कुछ ऐसा रहस्य है जिसको पाकर हम सुखी हो सकते है।) हम तनाव को दूर करना चाहते है।(क्योकि आज का जीवन तनाव से भरा हुआ है।) हम मोक्ष चाहते है।(अर्थात कुछ ऐसा जो इस संसार के दुखो से अच्छा संसार हो उसे पाने की चाह) हम मुक्ति चाहते है। (जीवन से या जीवन के दुखो से) शायद दुखो से क्योकि जीवन से कोई मुक्ति नही चहाता। मृत्यु कोई नही चाहता।
कल्पांत ध्यान साधना पुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
इंद्रीया निष्क्रिय हो गई हैं। परंतु आनंद इन्द्रियों के बस में नहीं हैं। वह तो मन में आत्मा में उठने वाली तरंग ऊर्जा है जो आप को तृप्ति देती हैं। जब भी आप साथी के साथ सक्रिय होंगे तो ऊर्जा बढ़ेगी ही, धडकने बढ़ेगी ही, रोमांच बढ़ेगा ही, हमें उन पलों को जीना है, उन पलों को रोकना है, लंबे समय तक जिससे हमारी तृप्ति हो जाये। और पूर्ण आनंद प्राप्त हो जाये। यहां आत्मिक आनंद से जब आप त्रप्त होंगे, तो जीवन की शिकायतें मिट जायेगी, जीवन जीने का नजरिया बदल जाएगा, हर पल आप वही ऊर्जा वही खुशी महसूस करोगे जो 20 साल की उम्र में किया करते थें।
संभोग से आनंद की ओर पुस्तक से(स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
कल्प वृक्ष साधना हमें अपवित्रता से पवित्रता की ओर, अव्यवस्था से व्यवस्था की ओर, स्थूलता से सुक्ष्मता की ओर, वाहय जगत से अंतः जगत की ओर, ओर वहीगार्मी जगत से अंतःगार्मी जगत की ओर, अर्थात चेतन से अचेतन की ओर, आध्यात्मिक जगत की ओर ले जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनंत संभावनाएं, शक्ति, व गुप्त प्रतिभाएं छुपी पड़ी हैं, जरूरत है उन्हें जगाने की, उजागर करने की, हमें खोजना है उन्है अज्ञात प्रदेश में जहाँ सब कुछ संभव है। जहाँ कल्पनाओ से परे का अनुभव है।
यह रास्ता बड़ा सरल है, क्योंकि आपको वर्तमान शैली का परित्याग नहीं करना है। इस यात्रा मैं केवल आत्मविश्लेषण हेतु रुचि पैदा करनी है, श्रद्धा व विश्वास करना है, अपनी साधना पर, अपनी शक्ति पर, अपने अवचेतन मन पर। जितना चमत्कार हम बाहर देखते हैं, उससे कई गुना ज्यादा चमत्कार हमारे भीतर भरा हुआ है, जिसकी गहराई में डुबकी लगाना अपने वास्तविक स्वरूप को पहचाना ही गहन साधना है। सामान्य मनुष्य अपनी क्षमताओं का 5% ही प्रयोग करता है और विशेष विज्ञानिक आदि7% से 10% और वह इतने चमत्कार करते हैं, तो अगर हमने उसे जागृत करना शुरू कर दिया तो हम क्या नहीं कर सकते, चाहे अपनी मनोकामना की पूर्ति हो या फिर दूसरे की या अपना स्वास्थ्य हो या दूसरे का।
कल्प वृक्ष साधना पुस्तक से(स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
साधना में सजगता का अर्थ है तटस्थ होकर अपने मानसिक व शारीरिक क्रियाकलापों का अवलोकन करना। जब व्यक्ति सजग होता है, तो वह अपनी बाहरी व आंतरिक गतिविधियों को एक साक्षी की तरह देख सकता है। जैसे सामने टीवी पर कोई चलती हुई पिक्चर। यदि आप एक बार भी शरीर व मन की गतिविधियों को साक्षी की तरह देख सके, तो इसका अर्थ है कि आपका स्वभाव शरीर अवचेतन मन की सीमाओं से परे जा सकता है। अर्थात ऐसा कुछ है जो साक्षी बनकर शरीर व मन की क्रियाओं का अवलोकन करता है। यदि आप मात्र इतना ही अनुभव कर लें, तो आपकी स्वयं के प्रति धारणायें बदल जायेगी। सजग होकर हमें बोध होता है कि हमारा स्वभाव मन व शरीर से अलग है। मन व शरीर तो केवल स्थूल शरीर के वाहक है।
इस प्रकार हम जन्म से ही अपने मन में चलने वाले विचारों के नाटक में उलझे रहते हैं, ओर यथार्थ का अनुभव नहीं कर पाते हैं। हम मन व शरीर को ही अपना अस्तित्व मान लेते हैं। परंतु अवचेतन के प्रति सजगता से हम इस जीवन रूपी नाटक के साक्षी हो जाते हैं।
कल्प वृक्ष साधना पुस्तक से(स्वामी जगतेश्वर आनंद जी
1. कल्पांत कल्प वृक्ष साधना (मूल्य मात्र – 250/)
2. संभोग से आनंद की ओर (मूल्य मात्र – 250/)
3. कल्पांत रेंकी साधना 1st डिग्री (मूल्य मात्र – 500/)
4. कल्पांत रेंकी साधना 2nd डिग्री (मूल्य मात्र – 500/)
5. कल्पांत रेंकी साधना 3rd डिग्री (मूल्य मात्र – 1100/)
6. कल्पांत चक्र व देवी देवता साधना (मूल्य मात्र – 500/)
7. कल्पांत त्राटक साधना (मूल्य मात्र – 250/)
8. कल्पांत रोग निवारण शारीरिक तंत्र साधना (मूल्य मात्र – 250/)
9. कल्पांत ब्रह्मांड दर्शन साधना (मूल्य मात्र – 100/)
11. अश्लीलता बनाम योन अत्याचार (मूल्य मात्र – फ्री )
12. मिठास में घुलता जहर (मूल्य मात्र – फ्री )
13. ईश्वेर के वचन (मूल्य मात्र – फ्री )
14. कावंड का रहस्य (मूल्य मात्र – फ्री )