Ayurveda evam Samagra Swasthya Shodhamala 2024;6(1):1

आँवला नवमी (भारतीय संस्कृति का पर्व / त्यौहार) का ज्ञान विज्ञान - व्यक्तिगत एवं वैश्विक समस्याओं के समाधान की दृष्टि से

Saurabh Mishra*, Alka Mishra**


* Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Gayatrikunj-Shantikunj, Haridwar, Uttarakhand, India

** Department of Ayurveda and Holistic Health, Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Gayatrikunj-Shantikunj, Haridwar, Uttarakhand, India


Corresponding Author: Saurabh Mishra - Email: sau.dsvv@gmail.com

Abstract

वर्तमान समय में विभिन्न कारणों से जैसे अस्त-व्यस्त जीवनचर्या, प्राकृतिक खाद्य-पदार्थों एवं जड़ीबूटियों का सेवन न करने, प्रकृति के सम्पर्क में न रहने, आदि के कारण मनुष्य समाज विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रोगों से ग्रसित देखा जाता है। साथ ही संकीर्णतायुक्त भौतिकवादी मानसिकता, असहिष्णुता, प्रकृति का अत्यधिक दोहन, हरीतिमा के विनाश, आदि के कारण वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण जैसी विकराल समस्याएँ मानव जाति के समक्ष हैं। हालाँकि इन समस्याओं के निराकरण हेतु विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु समस्याओं की बढ़ती गम्भीरता यह दर्शाती है कि ये प्रयास पूर्ण रूप से कारगर नहीं हो रहे हैं, एवं अन्य तरीके खोजना आवश्यक हो गया है।

प्राचीन भारतीय संस्कृति में, जहाँ मनुष्य समाज में समस्त प्राणी जगत के प्रति भाव-सम्वेदनाओं की बहुलता थी, वहाँ इस प्रकार की समस्याएँ दृष्टिगोचर नहीं होती थीं। व्यक्ति आत्मवत् सर्वभूतेषु एवं वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओतप्रोत रहते थे; इस भावना को संस्कृति का अंग बनाने के लिए प्राचीन भारतीय ॠषियों ने सामाजिक परिदृष्य में कई पद्धतियाँ प्रचलित करी थीं, जिनमें से एक है पर्व / त्यौहार। पर्व / त्यौहार के द्वारा जीवन में सरसता, सामूहिकता, आदि का संचार तो होता ही था, साथ ही मनुष्यों को आदर्शवादी बनाने, प्रकृति एवं प्राणीमात्र के प्रति उनकी भाव सम्वेदनाएँ जगाने की भी प्रेरणा इनमें सन्निहित रहती थी। यही कारण था कि प्राचीन समय में मनुष्य में देवत्व  एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण की परिस्थितियाँ दिखाई देती थीं। अत: वर्तमान समय में भी पर्व / त्यौहार के ज्ञान विज्ञान को समझ कर, इनके द्वारा व्यक्तिगत एवं वैश्विक समस्याओं के समाधान का मार्ग खोजा जा सकता है। इसी भाव के अंतर्गत, वर्तमान शोध पत्र में ‘आँवला नवमी’ के ज्ञान विज्ञान का विवेचन किया गया है।

‘आँवला’ नवमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इसमें आँवले के पेड़ का पूजन किया जाता है। पूजन प्रक्रिया से यह ज्ञात होता है कि इसमें विभिन्न उत्कृष्ट प्रेरणाएँ सन्निहित हैं जैसे हरीतिमा सम्वर्धन (आँवले के पेड़ का पूजन, उसकी परिक्रमा, उससे गले मिलना); स्वास्थ्य सम्वर्धन हेतु औषधीय जड़ीबूटियों का सेवन (कच्चा आँवला खाना - आँवले के औषधीय गुण यहाँ वर्णित हैं), एवं हल्दी, खील, आदि का उपयोग; सहकारिता एवं सरसता के साथ मिलजुल कर पूजन करना। यह पूजन महिलाओं के द्वारा किया जाता है - इसके पीछे यह भाव प्रदर्शित होता है कि जैसे प्रकृति सम्वेदनायुक्त है, उसी प्रकार महिलाओं में भी भाव सम्वेदनाओं की बहुलता पाई जाती है, एवं प्रकृति के सम्पर्क, संरक्षण एवं सम्वर्धन में वे अधिक महती भूमिका निभाने में सक्षम हैं - यह भाव वर्तमान समय के कल्चरल ईकोफेमिनिज़्म (cultural ecofeminism) के शोधार्थियों ने भी अनुभव किया है। इस प्रकार, ‘आँवला नवमी’ के ज्ञान विज्ञान को समझ कर इसे अपनाने से विभिन्न समस्याओं के निराकरण में सहयोग मिल सकता है। 

Keywords

आँवला नवमी, भारतीय संस्कृति, पर्व, त्यौहार, ज्ञान विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य सम्वर्धन, कल्चरल ईकोफेमिनिज़्म (cultural ecofeminism)

Cite this research article as follows:

Mishra S, Mishra A. आँवला नवमी (भारतीय संस्कृति का पर्व / त्यौहार) का ज्ञान विज्ञान - व्यक्तिगत एवं वैश्विक समस्याओं के समाधान की दृष्टि से. Ayurveda evam Samagra Swasthya Shodhamala. 2024;6(1):1. [cited date]. Available from: https://sites.google.com/dsvv.ac.in/shodhamala-dahh/asssm61/asssm611

Published Online: 31st March 2024

References

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2. Sharma S. The Great Moments of Change. Haridwar, India: Shantikunj. (Accessed on: 30 January 2024). ( Available from: http://literature.awgp.org/book/The_Great_Momentsof_Change/v2.2 )

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