लछमा एक ऐसी लड़की की कहानी है जो सिर्फ सपनों में मिलती है। कभी-कभी इत्तेफ़ाक से वह हमारे जीवन में आती है और अपने सपनों की छाया हममें छोड़ जाती है, फिर हम उसका सपना जीते हैं और वह सपना जीवन से बड़ा होने लगता है।
लछमा, एक ऐसी लड़की की कहानी जिसको किसी से कोई शिकायत नहीं, न माँ बाप से जिन्होंने एक पागल के पल्ले बांध दिया। न अपनी जेठानियों से जो उसे ताना देती हैं, ना जेठों से जो उसे रोज पीटते हैं और ना देवी-देवताओं से । उसको तो बस एक ही काम आता है खुश रहना और खुशियां बांटना।
लछमा एक अनपढ़, पहाड़न, पहाड़ों सा कठोर जीवन जीने के लिये अभिशप्त पर पहाड़ों सी सरलता लिये जिसने उसे बस एक ही पाठ पढ़ाया है कोई भी दु:ख इतना महान नहीं हो सकता कि हमें हँसने से रोक सके।
'लछमा' के अंत में हमने परिवर्तन किया है क्योंकि कहीं न कहीं मुझे पाठक के रूप में संतुष्टि नहीं मिल पा रही है। लछमा' के मिलने से महादेवी जी की तो एक कथावस्तु मिली पर महादेवी जी के सानिध्य में आने से 'लछमा' को क्या प्राप्त हुआ सिर्फ उनकी यादें? तो यहीं पर बदलाव किया, अनपढ़ लछना' को पढ़ने के लिये प्रेरित किया।
कहानी में दूसरा परिवर्तन है परिवेश का। पूर्णत: हिन्दी में लिखी नई पटकथा में हमने कुमाऊंनी बोली, उसके शब्द, लोकगीत, परिधान का कुछ दृश्य, संवादो का समावेश किया है एवं पहाड़ और मैदान को एक मंच पर लाने का प्रयास किया है। ये प्रयोग कितना सफल होगा ये तो दर्शक ही बता सकते हैं।
अभिषेक मैन्दोला
नाटक "एक है पृथ्वी एक थी गौरा" पर्यावरण को बचाने की बात करता है, गौरा देवी के माध्यम से।
जिसमें पृथ्वी आहवान करती है गौरा देवी का, कि आज मुझे गौरा जैसा प्रेम फरने वाले नहीं रहे । पृथ्वी कहती है तू तो चली गयी कम से कम एक गौरा छोड़ जाती जो मुझसे प्रेम कर सके।
नाटक संदेश देता है कि यदि हम इसी तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब पृथ्वी भी गौरा की तरह हो जायेगी, नाटक बताया है की कुदरत की दी हुई हर एक चीज का एक दूसरे के प्रति जो रिश्ता है उसे अगर मनुष्य छेड़ेगा तो आपदाओं का संकट बढ़ता रहेगा ।
अभिषेक मन्दोला (लेखक/निर्देशक)