Dr.Sudeep Choudhary is a versatile and insightful writer known for his thought-provoking poetry and engaging columns that span a range of genres, from social awareness and lifestyle to love, culture, and human emotions. With a keen eye for detail and a deep understanding of the human condition, Dr. Choudhary uses his words to inspire, provoke thought, and encourage meaningful conversation.
Writing primarily in both English and Hindi, he seamlessly bridge linguistic and cultural divides, offering a unique perspective that resonates with diverse audiences. His poetry, often lyrical and evocative, paints vivid pictures of love, longing, and introspection. At the same time, his columns tackle pressing social issues, shedding light on topics such as mental health, gender equality, social justice, and personal growth, all while maintaining a relatable and empathetic tone.
Whether exploring the nuances of relationships, the dynamics of modern lifestyles, or the urgent need for change in society, Dr. Sudeep Choudhary crafts narratives that challenge, inform, and entertain. Through his work, he aspire to foster a deeper connection with readers, urging them to reflect on their own lives, actions, and perspectives.
सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा:
मेहनती छात्रों के सपनों पर भारी पड़ी राजनीति
आज के दौर में प्रतियोगी परीक्षाएँ युवाओं के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष बन चुकी हैं। युवाओं के लिए यह केवल नौकरी पाने का साधन नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा और परिवार की उम्मीदों से जुड़ा हुआ सपना भी होता हैं। सुबह-शाम घंटों तक पढ़ाई, दौड़ और शारीरिक तैयारी, सामान्य ज्ञान से लेकर मानसिक क्षमता तक की निरंतर अभ्यास। कई छात्र अपने परिवार से दूर रहकर किराए के कमरों में कठिन परिस्थितियों में तैयारी करते हैं। माता-पिता अपनी जमा-पूँजी खर्च करके बच्चों को कोचिंग और किताबें दिलाते हैं। उनके दिल में केवल एक ही ख्वाहिश होती है,
“मेहनत रंग लाएगी और माता पिता की आँखों में चमक लौट आएगी "
लेकिन जब यह खबर आती है कि कुछ ने नकल से परीक्षा पास की है और राजनीतिक दबाव और विरोध प्रदर्शन के चलते पूरी परीक्षा रद्द कर दी जाती है, तो छात्रों के सपने चकनाचूर हो जाते हैं।
जो छात्र वर्षों से परिश्रम कर रहे थे, जिनका कोई दोष नहीं था, वे भी उसी कतार में खड़े कर दिए जाते हैं जहाँ नकल करने वाले खड़े हैं। अब चार साल बाद वह छात्र कहा जायेंगे? इसका सबसे गहरा असर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा। कई छात्र अवसाद में चले जायेंगे। परिवार और समाज की उम्मीदें बोझ बन जाएँगी। कोई छात्र यह दबाव न झेल सका तो? न नक़ल करने वालो को फर्क पड़ेगा न नेताजी को, बर्बाद तो वह माँ बाप होंगे जिनका हीरा राजनीति और नकल की भेंट चढ़ जायेगा।
आवश्यकता है कि दोषियों को अलग कर, ईमानदार छात्रों के भविष्य को सुरक्षित किया जाए। क्योंकि जब एक मेहनती छात्र की उम्मीद टूटती है, तो केवल उसका सपना नहीं टूटता, बल्कि राष्ट्र की संभावनाएँ भी आहत होती हैं।
मैं जनता हूँ की मेरे इस लेख से कुछ नहीं बदलेगा, क्योकि मैं आज किसी पद पर नहीं हूँ मेरे बोलने से कोई नहीं सुनेगा। न कोई उन होनहार छात्रों के बारे में सोचेगा क्योकि वह छात्र न धरने प्रदर्शनों में जाते है, न नेताजी के नाम के नारे लगाते है और इनका वोट प्रतिशत भी इतना काम है की किसी राजनीतिक दल को इनकी परवाह नहीं। इनका दर्द कोई हुड़दंगी नहीं समझ सकता , केवल वही समझ सकता हैं जिसने स्वयं यह सफर तय किया हो।
फिर भी मैंने यह लेख लिखा हैं की शायद सोशल मीडिया के माध्यम से ये किसी ऐसे व्यक्ति तक पहुंच जाये जो इतना प्रभावशाली हो की कुछ बदल सके। अगर कभी मैं इतना बड़ा बन सका तो किसी सही व्यक्ति के साथ इतना बड़ा अन्याय नहीं होने दूंगा। लेकिन आज मैं इतना ही कर सकता हूँ कि उन होनहार छात्रों का दर्द बाट सकता हूँ और अगर उनमे से किसी को भी मेरी मदद चाहिए हो तो मेरे से वह बिना झिझक संपर्क करे। हमेशा याद रखे की हर रात की सुबह होती हैं, घबराना नहीं है बस चलते जाना हैं।
डॉ. सुदीप डांगावास
तेजास्थली; बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को राष्ट्रीय स्तर पर प्रधान मंत्री जी के द्वारा हरीयाणा से २२ जनवरी २०१५ को प्रक्षेपित किया गया था।
इस योजना के चलते बेटियों को पढाई के लिए आर्थिक मदद मिल रही है और लडकियों को ज्यादा पढाई करने के लिए प्रेरित हो रही हैं। जिसके चलते इस योजना की वजह से लड़के और लडकियों के बिच का भेदभाव कम होने लगा हैं और इससे बड़ा फायदा यह हो रहा हैं की बेटियों के भ्रूणहत्या कम हो गयी है|
ऐसी ही एक परियोजना १९९६ में भा.ज.पा. के पूर्व गृह राज्य मंत्री राजस्थान सरकर एवं पूर्व लोकसभा सांसद नागौर (२००४-२००९) स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी ने अपने सीमित संसाधनों से मुंडवा, नागौर में शुरू की थी।
उस समय स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी मेड़ता विधानसभा से विधायक थे और स्वर्गीय श्री भैंरो सिंह शेखावत जी राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। मारवाड़ क्षेत्र में अशिक्षा हमेशा से एक बड़ी परेशानी रही और यहाँ शिक्षण संस्थाओ का अभाव आज़ादी के ४२ साल बाद तक रहा, स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी ने विधायक बनते ही मेड़ता में डिग्री कॉलेज खुलवाया और बेहतर स्वस्थ्य सेवाओं के लिए नए राजकीय चिकित्सा केंद्र का भी निर्माण करवाया। लेकिन बहुत जल्द उन्हें एहसास हुआ की बालिकाओ की दशा अगर सुधारनी है और आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर जीवन देना है तो लड़कियों को पढ़ाना ज़रूरी है। बड़े शहरों में तो शिक्षा के अवसर आसानी से उपलब्ध थे और पैसे वाले लोग अपनी बेटियों को बड़े आवासीय विद्यालयों में पढ़ा लेते थे लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर ग्रामीणों की बेटियों के लिए पढाई सिर्फ सपना थी।
स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी ने संकल्प लिया की वे गरीब घर की बेटियों के लिए एक आवासीय डीम्ड विश्वविद्यालय बनाएंगे जिसमे प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा की विश्वस्तरीय व्यवस्था होगी और बेटियाँ अपने सपनो को साकार कर सकेंगी।
वे तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैंरो सिंह शेखावत जी से मिले और अपनी इच्छाओ से उनको अवगत कराया, शेखावत जी ने कहा "भगीरथ बनना चाहते हो?? अच्छा है किसी ने तो हिम्मत की, आप जगह बताये, आवंटित हो जाएगी।"
फिर शुरू हुई तलाश, एक ऐसी भूमि की जिसकी किसी को ज़रुरत न हो और जहाँ ऐसी संस्था बनायीं जा सके। गाँव-गाँव ढाणी-ढाणी का दौरा किया गया और न जाने कितनी सरकारी फाइल खंगाली गयी, स्वर्गीय श्री गंगाराम जी (तत्कालीन राजस्व मंत्री), स्वर्गीय श्री रामदेव जी बरनवाल (पूर्व विधायक), महेंद्र सिंह चौधरी जी (पी.एस.), जस्सा राम जी बेमोठ (आर.ए.एस.), ओंकार सिंह जी (आई.ए.एस.) एवं श्री संजीव सिंह जी डाँगावास की मदद और अथक प्रयासों के बाद एक ऐसी भूमि तलाशने में कामयाबी मिली, यह जगह उनके विधानसभा क्षेत्र में नहीं थी लेकिन स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी यह कार्य अपने राजनितिक हित के लिए नही कर रहे थे, इसलिए उनके लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती थी।
यह स्थान मिला ग्राम मुंडवा के पास, ४०० बीघा बेकार पड़ी सरकारी ज़मीन मांगने के लिए जब वे पुनः स्वर्गीय श्री भैंरो सिंह शेखावत जी के पास गए तो उन्होंने कहा "वहाँ तो दूर दूर तक उजाड़ बियांबां हैं, ऐसी जगह स्कूल बनाओगे कैसे?? और बना भी ली तो वहां बेटियों को भेजने के लिए किसी को राज़ी कैसे करोगे?? कोई बेहतर जगह ढूंढ लो।" लेकिन डाँगावास जी जानते थे की उपयोगी भूमि मांगने गए तो बहुत से लोग अड़चन बन सकते है, और इतनी बड़ी भूमि एक साथ मिलना बहुत मुश्किल होगा, इसलिए वे नहीं माने और शेखावत जी के कहने पर गंगाराम जी ने यह भूमि आवंटित कर दी।
जब मेड़ता और आस पास के क्षेत्र के लोगो को पता चला की कॉलेज और हॉस्पिटल के बाद अब डाँगावास जी बेटियों के लिए एक बड़ा संसथान बनाने जा रहे है तो बहुत से लोगो ने अपनी तिजोरिया खोल दी, संसथान को चंदा मिलने लगा और १९९८ में "वीर तेजा महिला शिक्षण एवं शोध संसथान" का जन्म हुआ।
स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी की पैंठ ऐसी थी की वे लोग जो अपनी बेटी को घर से बहार गाँव की सरकारी स्कूल तक नहीं भेजते थे, वो अपनी बेटियों को जंगल में बने इस आवासीय स्कूल में दाखिला कराने के लिए लाइन में लगे हुए थे। मारवाड़ की बेटियों के लिए यह एक सुनहरा अवसर था। गरीब से गरीब भी अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दे सके इसलिए स्कूल की फीस बहुत कम रखी गयी और अनाथ बेटियो के लिए संसथान में निशुल्क व्यावस्था रखी गयी। पहले ही साल में सर्वसमाज की ४० बेटिया यहाँ पढ़ने आयी और कुछ ही सालो में इनकी संख्या ३०० से भी अधिक हो गयी।
लेकिन जितना बड़ा संसथान वे बनाना चाहते थे उसके लिए बहुत ज़्यादा धन की ज़रुरत थी, पैसे बचाने के लिए डाँगावास जी अपने निजी वाहन का उपयोग नहीं करते थे। पुलिस गैलेंट्री मैडल से सम्मानित होने के कारण उन्हें रेलवे में मुफ्त टिकट मिलती थी और विधायक होने से राज्य परिवहन निगम की बस में भी मुफ्त सफर करते थे, जिससे संसथान के लिए ज़्यादा से ज़्यादा राशि जुटा सके।
चंदा जुटाने के लिए उन्होंने पूरे देश की ख़ाक छान दी, ज़मीन आसमान एक कर दिया, कोलकाता हो या चेन्नई, उन्होंने देश का कोई कोना नहीं छोड़ा। बहुत बार ऐसा भी हुआ की धनाढ्य व्यक्तियों ने कुछ भी देने से मन कर दिया, कुछ ने तो ज़लील भी किया, लेकिन डाँगावास जी की हिम्मत नहीं टूटी, वे कहते थे की, "मैंने तो सिर्फ हाथ जोड़े है, अगर बेटी पढ़-लिख गयी तो किसी बाप को अपनी पगड़ी दूसरे के पैर में नहीं रखनी पड़ेगी।"
यूँ तो संसथान की स्थापना में बहुत से लोगो का साथ मिला लेकिन उनमे प्रमुख थे स्वर्गीय श्री रामकर्ण बाज्या (पूर्व तहसीलदार), श्री मांगीलाल जी धायल, श्री आर.के.जींझा, श्री प्रकाश जी भंवरिया एवं श्री पुखराज जी धोलिया, जिन्होंने संसथान के निर्माण कार्यो की देखरेख संभाली जिससे डाँगावास जी को चंदा जुटाने के लिए अधिक समय मिल सके।
फिर तलाश शुरू हुई ऐसे शिक्षकों की जो आबादी से दूर जंगल में बने इस संसथान में रहकर गाँव की इन बेटियों को पढ़ाने को राज़ी हो। ग्रामीण परिवेश की इन बच्चियों को पढ़ाना आसान नहीं था, अनपढ़ माँ-बाप की बेटियों को पढ़ाने के लिए उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रुरत थी। ऐसे शिक्षक मिलना आसान नहीं था जो इतना कष्ट उठा कर बेटियों को पढ़ाये। तब उन्हें साथ मिला स्वर्गीय श्री पुरखा राम जी मिर्धा , स्वर्गीय श्रीमति कमल केसकर एवं श्री जंवरी लाल जी (वर्तमान प्रधान अध्यापक) का जिन्होंने इन बेटियों पर मेहनत की और अपने अनुभवों से संसथान को बेहतर बनाने में डाँगावास जी का सहयोग किया।
साल २००७ में श्री संजीव सिंह डाँगावास के अथक प्रयासों से संसथान को बी.एड. कॉलेज के लिए इजाज़त मिली। स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी को हमेशा से अच्छे शिक्षकों की कमी खलती रही थी, बी.एड. कॉलेज ने बेहतरीन शिक्षक तैयार करने के उनके सपनो को साकार किया।
डाँगावास जी का खेलो के प्रति हमेशा से विशेष प्रेम था, वे खुद फुटबॉल, वॉलीबॉल एवं बैडमिंटन के माहिर खिलाडी थे। बेटियों के लिए भी उन्होंने खेल-कूद की पूरी व्यवस्था करवाई। श्री शिव कर्ण घटियाला ने जहाँ संसथान की लड़कियों को कब्बडी, खो-खो और हॉकी में राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया वही सुश्री शीला दत्ता (वर्तमान डायरेक्टर एवं जिमनास्टिक कोच) के बेहतरीन प्रशिक्षण से गाँव की इन बेटियों ने जिमनास्टिक्स की विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओ में मैडल जीत कर देश का नाम रोशन किया। ऐसी कामयाबियां जब अखबारों की सुर्खिया बनी तो इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका शिक्षा को और ज़्यादा बढ़ावा मिला।
संसथान में सिर्फ गरीब ग्रामीण परिवेश की ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रो, यहाँ तक की दूसरे प्रदेशो की बेटिया भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आने लगी। यहाँ से पढ़ी बहुत सारी बेटिया आज डॉक्टर, इंजीनियर, वकील जैसे अहम क्षेत्रों में हैं, और अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए शिक्षा एक नींव का काम करेगी जिसपे भारत का भविष्य उज्जवल होगा।
२ जुलाई,२०१२ में उनके स्वर्गवास के बाद संसथान की गति थोड़ी शिथिल हुई थी लेकिन वर्तमान में संसथान के अध्यक्ष श्री सी.आर.चौधरी जी (केंद्रीय मंत्री) एवं श्री संजीव सिंह डाँगावास जी (कार्यकारी अध्यक्ष) के नेतृत्व में वीर तेजा महिला शिक्षण एवं शोध संसथान प्रगति के पथ पर दौड़ रही हैं। संसथान की कर्मठ कार्यकारिणी इसको बेहतर बनाने में प्रयासरत है जिसमे श्री आर.के.जींझा, श्री रामनिवास बाज्या एवं श्री मंगल सिंह जी चौधरी (उपाध्यक्ष), श्री सुखराम फ़िरोदा (सचिव) एवं कापड़ी बंधुओ की भूमिका एहम हैं।
आज यहाँ B.A., B.Sc., B.C.A., B.Ed., M.Sc.(geography), M.Sc.(chemistry), G.N.M.(nursing) जैसे कोर्स चल हैं और ७०० बेटिया अध्ययनरत हैं।
आज चाहे हम आर्थिक समस्याओ से जूझ रहे है लेकिन हम रुकने वालो में से नहीं, अपनी मेहनत और आमजन के सहयोग से स्वर्गीय श्री भँवर सिंह डाँगावास जी के इस सपने को साकार करने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और एक दिन इसको विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय बनाएंगे।
आपके सहयोग का अभिलाषी
डॉ. सुदीप डाँगावास
अग्निपथ - भारत के अग्निवीर
अग्निपथ - भारत के अग्निवीर, लोग बोल रहे चार साल बाद क्या होगा, 12 लाख से क्या होगा। ये वो बोल रहे जो फौजी होने का अर्थ ही नहीं समझते है और जिन्हे युवाओं के भविष्य से कोई सरोकार नही हैं।
ये परियोजना उन बच्चों के लिए वरदान है जो इंटर हाईस्कूल के बाद दिशाहीन हो कर भटकते हैं और जब तक समझ पाते हैं तब तक काफी देर हो जाती है।
अग्नि-वीर कोई नौकरी नहीं, यह एक व्यवस्था है जो युवाओं को जीवन यापन का एक बेहतर सकारात्मक तरीका सिखायेगी।
एक अनुशासनहीन युवा वर्ग और एक अनुशासित युवा वर्ग, क्या यह बताने की जरूरत है की देश को क्या चाहिये!
हमको क्या चाहिये?? हमारा युवा वर्ग कैसा होना चाहिये?? दिनभर नेताओ की गाडियों के पीछे नारे लगाता, रात को नशे में धुत होकर घर आता, देशी कट्टे हवा में लहराता युवा या फिर वह युवा जो भारत माता का जयकारा लगाये और चार साल बाद अगर घर आये तो एक बेहतर इंसान बन कर आये और स्वयं अपना उज्जवल भविष्य बनाये और देश को एक बेहतर भविष्य दे।
जिन्हें लगता है की फौज से चार साल बाद निकलने वाला युवा चौकीदार या गुण्डा बनेगा, उन्हे शौर्ट सर्विस कमिशन की जानकारी नहीं हैं।
आॉफिसर रैंक के लिए जैसे शौर्ट सर्विस कमिशन होता है, जहां पांच साल की सर्विस के बाद कोई गार्ड या गुण्डा नही बनता, बल्की एक बेहतर इंसान बनता है; वैसे ही सिपाही के लिए अग्नि-वीर है जो उन्हें एक बेहतर इंसान बनायेगा।
"AN ARMYMAN IN HIS PRIME & A GENTLEMAN FOR LIFETIME"
वैसे भी गुण्डा बनाने के लिए राजनीतिक संरक्षण से अधिक कुछ नहीं लगता, तभी तो गली गली में उच्चक्के डॉन बने घूम रहे है, लेकिन जब इन उच्चक्को का सामना किसी अग्निवीर से होगा तो इनकी सारी दादागिरी निकल जाएगी।
समाज में जैसे लोगो की तादात ज्यादा होगी समाज वैसा ही बनेगा, हमारे समाज की आज की ज़रूरत है अनुशासन और यह परियोजना इस जरूरत को बखूबी पूरा करेगी।
दुनिया के कई देशों में अल्प काल के लिये फौज की नौकरी अनिवार्य है, क्योंकि इससे वह एक बेहतर नागरिक तैयार करते है।
राजनितिक विरोध समझ में आता है, लेकिन एक अच्छी व्यवस्था का समर्थन करना चाहिये, क्योंकि हमारे राजनितिक लाभ से ज्यादा जरूरी है हमारे देश का भविष्य।
आपका,
डॉ. सुदीप डांगावास
Gopal is not a Ram devotee and Sharazil does not mean anything to a Muslim, they is not a devotee of either country.
They are the victim of a psychiatric problem which is being caused by our society.
Sharjil Imam is a Muslim fundamentalist who has been on Facebook for a long time. Who feels that Hindus persecute Muslims. He considers himself the Messiah of Muslims. He wants to fulfill the dream of his Islamic nation by jamming the wheel of India. He runs on a different axis. He also has a complaint with Babasaheb. He is also hurt by Kannahiya's popularity.
But then he realizes that if he wants to be seen by everyone, then something has to be done, and then he makes his master plan public, so that everyone's attention goes to him and the plan fails. 😂😂😂😂
He chooses that place to speak his shit where no one would shoot him for his statement.
Rambhakta Gopal has made only five posts on Facebook in 14 months, then the torso posts on Gopal's Hindutva turn on.
He tries to prove himself as the saviour of Hindus by writing 80 posts from 6 January to 30 January.
On January 30, the anniversary of Gandhi's slaughter, he posts "Take me to saffron in my last journey, shout slogans of Jai Shri Ram." Then he goes live on Facebook, with the poor country made pistol from which even a pigeon wont die, waving it in the air, he walks towards the police, and as soon as the policeman came to catch him, he fires a bullet, 😂😂😂😂 because if he would have fired that shot while close to the mob, they would have killed him.
Some time ago, some people came in the headlines overnight by giving the slogan of 'bharat tere tukde honge', one of them got so popular that contested for the Lok Sabha.
No one asks those who give life for the country, those who work for the betterment of the country and society. 😠😠😠
Gimmickers get newspaper headlines.
Due to this, such incidents are increasing.
We ourselves are responsible for this.
Now it is up to society and journalism to decide whether to support them and their methods or boycott them.🙏🙏🙏
गोपाल कोई राम भक्त नहीं है और शरजिल को मुसलमान से कोई मतलब नही है, यह दोनो देश भक्त भी नही है।
यह उस मनोरोग के शिकार है जिसकी वजह हमारा समाज है।
शरजिल ईमाम एक मुस्लिम कट्टरपंथी है, जो लम्बे अरसे से फेसबुक पर चालू है। जिसको लगता है की मुसलमानो पर हिन्दू अत्याचार करते है। यह अपने आप को मुसलमानो का मसीहा मानते है। भारत का चक्का जाम कर यह अपना इस्लामिक राष्ट् का सपना पूरा करना चाहता है। यह अलग ही धूरी पर चलता है। इसको बाबा साहेब से भी शिकायत है। कन्नहैया के हिट हो जाने से भी यह आहत है।
लेकिन फिर इसको एहसास होता है कि सबकी नज़रो में आना है तो कुछ तो करना होगा, और फिर यह अपना मास्टर प्लान सार्वजनिक करते है, जिससे सबका ध्यान इनकी तरफ जाए और प्लान फेल हो जाए। 😂😂😂
यह बोलने के लिए ऐसी जगह चुनता है जहां इसके बयान के लिए कोई इसको गोली न मारे।
रामभक्त गोपाल ने 14 महीने में गिनी चुनी सिर्फ पांच पोस्ट फ़ेसबुक पर डाली है, वो 6 जनवरी से 30 जनवरी तक 80 पोस्ट लिखकर खुद को हिंदुओ का विधाता सिद्ध करने का प्रयास करता है। गोपाल की हिंदुत्व पर धड़ा धड़ पोस्ट चालू हो जाती हैं। 30 जनवरी को गांधी वध की बरसी पर "मेरी अंतिम यात्रा में मुझे भगवा में ले जाए, जय श्री राम के नारे लगवाए।" फिर फेसबुक पर लाईव हो कर, जिस घटिया देशी कट्टे से कबूतर भी नही मरता, उसको हवा मे लहराता हुआ वह पुलिस की तरफ गया, और जैसे ही पुलिस वाला पकडने आया, उसने एक गोली चला दी।😂😂😂 क्योंकि भीड में घुस कर गोली चलाता तो भीड उसको मार देती।
कुछ समय पहले, भारत तेरे टुकडे होंगे का नारा दे कर कुछ लोग रातों-रात सुर्खियों में आ गये थे, एक तो लोक सभा का चुनाव भी लड गया।
देश के लिए जान देने वालो, देश और समाज की बेहतरी के लिए काम करने वालो को कोई पूछता नही। 😠😠😠
नौटंकीबाज़ लोगो को अखबारो की सुर्खियां मिलती है।
इस वजह से ऐसी घटनाए बढ रही है।
इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार है।
अब यह फैसला समाज और पत्रकारिता करे की हमको इन्हे और इनके तरीको का समर्थन करना है या बहिष्कार।🙏🙏🙏
सारे खतरो से अंजान,
हम सुकून की ज़िंदगी जीते हैं;
क्योंकि हथेली पर लिये जान,
वह हर वक्त खडे रहते है।
जब देश की बात आ जाये तो,
वह मौत को भी डरा देते है;
जीत तो जाती है कभी-कभी,
लेकिन उसके भी पसीने छुडा देते है।
वह तो आते हैं धरती पर,
सिर्फ अपना फर्ज़ निभाते हैं;
छोड कर कुछ आँखो में आँसू,
वापस सितारो में लौट जाते हैं।
किस भाषा में करें बयान बलिदान,
शब्द ही बौने पड जाते है,
हमको नाम तक पता नहीं होते उनके,
जो हमारे लिये अपनी जान कुर्बान कर जाते है।
देश के लिये मर मिट गये जो,
उनके लिये हमने कुछ किया नहीं;
ताज्जुब होता है कि इनको,
इस बात की भी परवाह नही।
भारत माँ के वीर सपूतो को मेरा नमन!!!
-डॉ. सुदीप 'डाँगावास'
भारत बंद!!!!
एक अजीब प्रथा बन गई है देश में, सरकार से किसी भी बात की नाराज़गी हो तो भारत बंद कर दो।
अगर विपक्ष के पास कोई काम न हो तो भारत बंद, कभी जाति के नाम पर, कभी कर्मचारी संघ के नाम पर, कभी पार्टी के नाम पर, जिसका मन कर जाये, कर दो भारत बंद।
क्यो भाई?? क्यों कर दे बंद?
इस बंद से क्या लाभ होता है???
सिर्फ अपना विरोध, अपनी नाराज़गी दर्ज कराने के लिये भारत बंद।
बंद के दौरान सरकारी दफ्तरो मे जो कामकाज ठप होता है और आम जन को जिस परेशानी का सामना करना पड़ता है उसकी जवाबदेही किसकी है???
इस बंद से जो करोडो व्यापारियो का नुकसान होता है उसकी भरपाई कौन करेगा??
बंद के दौरान अगर कोई व्यापारी दुकान खोल ले या कोई रेढी वाला बाज़ार मे मिल जाये तो बंद समर्थक जबरन दुकाने बंद करा देते है, अक्सर लूट पाट होती है। रेढियाँ उलट कर किसी गरीब का नुकसान करके कौन सा मक्सद हल होता है??? किसी गरीब का निवाला छीन कर, उसकी बद्दुआ ले कर किसी को क्या लाभ मिलेगा??
व्यापार के नुकसान से देश और देशवासियो का नुकसान होता है, क्या इस तरह अपना ही नुकसान करके हम कोई समझदारी दिखाते है?? क्या अपना विरोध जताने के लिये इस तरह देश का करोडो का नुकसान करना, आम इंसान को परेशान करना उचित है???
अव्वल तो बंद होना ही नहीं चाहिये, और अगर करना ही पडे तो स्वेच्छिक होना चाहिये।
ये जो सूरमा निकलते है डंडे लेकर, गरीब रेढी वालो और मज़लूम व्यापारियो से जबरन बंद कराने के लिये, इन्हे अपनी ताकत का प्रदर्शन बोर्डर पर करना चाहिये, सारी सूरमाई धरी रह जायेगी।
अगर अपना विरोध ही दर्ज कराना है, अपनी नाराज़गी जतानी है तो यह कार्य देश और देशवासियो को नुक्सान पहुचाये बिना भी किया जा सकता है। दिन भर काम न करने की जगह दो घण्टे ज्यादा कार्य करके, काली पट्टी बांध कर, एक निश्चित समय पर कुछ देर का मौन रख कर, देर रात तक प्रतिष्ठान खुले रख कर, या किसी भी ऐसे तरीके से जिससे देश का फायदा हो और देशवासियो को परेशानी न हो।
अगर कोई दल या संघठन अपने निजि स्वार्थ के लिये देश को बंद करके नुक्सान पहुचाना चाहता है तो यह हर देशवासी का कर्तव्य है कि वह उनका विरोध करे।
आखिर हम किसी को हमारे देश का नुक्सान कैसे करने दे सकते है।
जब तक हम नहीं जागेंगे, हमारे हालात नही सुधरेंगे।
हमें एक होना होगा, हम एक हो जाये तो कोई हमसे जबरन कुछ नही करा सकता।
भारत को बंद करके भारत का नुक्सान करने वाली इस प्रथा पर अब अंकुश लगाना होगा।
अपना विरोध, अपनी नाराज़गी जताने का एक नया तरीका लाना होगा।
मेरी बात शायद कुछ लोगो को बुरी लगे, किन्तु किसी की भावनाओ को ठेस पहुचाना मेरा मक्सद नही। देशहित में यह आईना दिखाना ज़रूरी है।
जय हिन्द
डॉ. सुदीप डाँगावास
कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते है?
कभी सोचा है तुमने इससे हम क्या खोते क्या पाते है?
कभी महारो ने मराठाओ को हराया था,
कभी राजपूतो ने मुघलो को घुटने पे लाया था,
कभी सिकंदर को पोरस ने घर का रास्ता दिखाया था,
कभी सूरजमल दिल्ली का दरवाज़ा उखाड़ लाया था।
कभी किसी की हार का कारण बना था कोई,
कभी धोके की काली स्याही ने किसी वंश को कलंक लगाया था।
कभी हार कर भी जीत गया था कोई,
कभी किसी ने अपनी जान की बाज़ी लगा कर किसी को बचाया था।
कभी जीत गया था कोई
कभी किसी ने किसी को हराया था
लेकिन इन सब में
मैंने-तुमने क्या खोया क्या पाया था?
कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते है?
कभी सोचा है तुमने इससे हम क्या खोते क्या पाते है?
अभी लड़ रहे हो आपस में
अपनों का खून बहा रहे,
न अंग्रेज़ रहे न रहे मुग़ल
तो किसके लिए धूल खा रहे।
न तब मिला था कुछ तुम्हे
न अब मिलने वाला है,
आपस में यूँ लड़ने से
किसका भला होने वाला है?
धर्म से महान नहीं बनता कोई
अपने कर्म से विशाल बनता है,
लड़ने से कम होगी ताकत
लेकिन जुड़ने से बल मिलता है।
कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते है?
कभी सोचा है तुमने इससे हम क्या खोते क्या पाते है?
अपनी राजनीती को चमकाने
यह नेता तुमको बहका रहे;
अपने भविष्य के लिए
तुमको यह बरगला रहे।
इस झगडे में जली किसी की गाडी है,
टूटे शीशे कितने घरो के टूटी कितनी यारी है।
किसके लिए उछाला था वह पत्थर
उस लाश पर आंसू बहा रही एक मौसी तुम्हारी है।
इन नेताओ की बातो में मत आओ
फिर से धोका खाओगे
जो एक हो जाओ सारे
तो अपनी ताकत बढ़ाओगे।
कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते है?
कभी सोचा है तुमने इससे हम क्या खोते क्या पाते है?
नेेेता जिसको एक नया आंदोलन बतला रहे
कुछ लोग संघ को ज़िम्मेदार ठहरा रहे
समझो ज़रा तुम इनकी मंशा को
क्यों तुमको उकसा रहे?
न वह घर इनके है जो जल गए,
न वह दुकान इनकी थी जो लूट गयी,
न उजड़ा इनका सुहाग है
न हुए ये अनाथ है।
अरबो की है सम्पत्तिया इनकी
करोडो रुपया इनके पास है।
आज भी गरीबी में पल रहे तुम
फिर भी इनसे आस है?
कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते है?
कभी सोचा है तुमने इससे हम क्या खोते क्या पाते है?
अब भी वक़्त है संभल जाओ,
इनके बहकावे में मत आओ।
हमारी एकता इनकी शामत है,
एक दूसरे का साथ ही हमारी ताकत है।
- डॉ. सुदीप डाँगावास
श्री अन्ना हज़ारे,
आप एक बार फिर से ज़ोरदार आंदोलन करने की बात कर रहे है। बहुत ख़ुशी की बात है की कोई तो देश हित की सोचता है।
लेकिन फिर याद आता है दिल्ली का वह आंदोलन जब हम सब कुछ छोड़ अनशन में शामिल होने पहुंच गए, कुछ बदलेगा इस देश में इस आस में काम-धंधा भी भूल गए। इतने संगर्ष के बाद उस समुद्र मंथन से लोकपाल की जगह केजरीवाल का जन्म हुआ। राजनीतिज्ञों की मनमानी से कुंठित समाज को झूट और फरेब की बुनियाद पर फिर बेवकूफ बनाया गया, लोकपाल तो मिला नहीं दिल्ली को एक नया मालिक ज़रूर मिल गया।
हमारा गैर राजनितिक आंदोलन कुछ लोगो की राजनितीक लालसा की भेट चढ़ गया। आंदोलन की मूल विचारधारा का गला घोंट दिया गया। इतना सब होता रहा और आप सिर्फ देखते रहे; आप कभी उनसे सहमत तो कभी असहमत दिखे। हमने भी मान लिया की घर के भेदी लंका ढहा गए; अपनी ही गलती थी और हम हार के घर को आ गए।
हमको थी उम्मीद की आप फिर आएंगे,
इस धोकेबाज़ को सबक सिखाएंगे,
हिला देंगे इसकी हस्ती को,
इसके हर झूठ का हिसाब दिलवाएंगे।
लेकिन आज आपकी बात सुनके हम शर्मिंदा है। आप मोदीजी को ललकार रहे लेकिन केजरीवाल पर चुप्पी साध रहे। पहले उस धोकेबाज़ को सबक सिखाओ, उसके खिलाफ आंदोलन चलाओ। आपके हर आंदोलन से अगर यूँही केजरीवाल पैदा होते रहे तो जनता का भरोसा टूट जायेगा, फिर कभी कोई चाहेगा भी तो
आंदोलन कर नहीं पायेगा।
शर्मिंदा है हम की आपने केजरीवाल को छोड़ दिया,
जिसने हमारे आंदोलन को राजनीती से जोड़ दिया,
एक उम्मीद थी इस देश को,
उसने सबके सपनो को तोड़ दिया,
शर्मिंदा है हम की आपने केजरीवाल को छोड़ दिया।
अगर मेरी इस अभिव्यक्ति से किसी को कष्ट पंहुचा है तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
डॉ. सुदीप डाँगावास
स्वर्गीय डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने विशेष वर्ग के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी, किन्तु आज़ादी के इकहत्तर साल बाद भी हालात में ज़्यादा फर्क नहीं आया। शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण इसलिए रखा गया क्योकि सुविधाओं के अभाव में गरीब पिछड़े वर्ग के छात्र सामान्य वर्ग के छात्रों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। यह व्यवस्था कुछ सालो के लिए रखी जानी थी, लेकिन राजनितिक कारणों से सरकारे इसकी अवधि को बढाती गई।
आरक्षण के लाभ से पिछड़ी जातियों को हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व तो मिला, किन्तु आज भी एक बड़ा तबका मुफ्लसी की ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। वजह साफ़ हैं, जिन्होंने आरक्षण का लाभ लिया और समृद्ध हो गए उनके बच्चे सुख सुविधाओं के साथ पढाई करते हैं और आरक्षण का लाभ लेकर उन गरीब बच्चो का हक़ मार जाते हैं जिन्हे इसकी आवश्यकता हैं। शुरुवाती चालीस वर्षो को अनदेखा कर दे, तो पिछले तीस सालो में गरीब वर्ग को तीस प्रतिशत लाभ ही मिल सका हैं, क्योकि सत्तर प्रतिशत लाभ तो धनाढ्य पिछड़े वर्ग के बच्चे ही ले जाते हैं।
अब गरीब और गरीब होता जा रहा हैं, अमीर और अमीर। पहले यह समस्या जाति के आधार पर थी, किन्तु अब यह समस्या आर्थिक आधार पर आ गयी हैं।
पहले पिछड़े वर्ग के लोगो को न शिक्षा मिलती थी, न समाज में ऊपर उठने का समान अवसर प्राप्त होता था; आज भी कुछ नहीं बदला, आज गरीब को न ठीक से शिक्षा मिल रही हैं, न समाज में ऊपर उठने के अवसर। अपवाद तब भी थे आज भी हैं, किन्तु अपवाद हज़ारो में एक होते हैं।
सक्षम हो चुके पिछड़े वर्ग के लोगो को आरक्षण की न ज़रूरत हैं न ही कोई मौलिक अधिकार। अब वक़्त आ गया हैं कि इस व्यवस्था को बदला जाये, आरक्षण का लाभ जिसे एक बार मिल गया उसको दोबारा उसका लाभ न दिया जाये। इससे सही मायने में आरक्षण के हक़दार को उसका लाभ मिल सकेगा और स्वर्गीय डॉ. भीम राव अम्बेडकर के सपने को उसकी सही पहचान मिलेगी।
मैं जनता हूँ की मेरी इस अभिव्यक्ति से बहुत लोगो को कष्ट होगा, किन्तु यही सत्य हैं।
हमको निस्वार्थ होक समाज के हित में सोचना चाहिए और इस व्यवस्था को परिवर्तित कराना चाहिए। यह तभी संभव हैं जब समाज खुद इसके लिए आगे आये, अगर ऐसा न हुआ तो एक दिन पूरे समाज को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।
आरक्षण सिर्फ ज़रूरतमंदो को मिलना चाहिए।
जिन्हे मेरी बात से कष्ट हुआ हैं, मैं उनसे क्षमा मांगता हूँ।
डॉ. सुदीप डाँगावास
चुनाव नज़दीक है तो अब क़र्ज़ माफ़ी के वादों की बाढ़ भी आएगी। कोई किसानो का क़र्ज़ माफ़ करने की बात करेगा तो कोई बिजली के मीटर उखाड़ने की बात करेगा, कोई पानी मुफ्त बांटने के वादे करेगा तो कोई रसोई गैस सस्ती देने की बात करेगा, कोई टैक्स स्लैब घटने का वादा करेगा तो कोई टैक्स ही हटाने की बात करेगा।
मुफ्त मुफ्त मुफ्त.... छूट छूट छूट.... सेल सेल सेल.... के वादे गूंजेंगे और जनता दौड़ पड़ेगी.... किसी नेता के नाम की लहर चलेगी तो किसी के नाम की आंधी....
गाँव के गाँव एक तरफ वोट देंगे, नेता आएंगे ताजपोशिया होंगी और फिर.... कुछ वादे निभा दिए जायेंगे.. कुछ वादे भुला दिए जायेंगे..
हम जहा थे वही रह जायेंगे और अगले चुनाव में नेताजी को सबक सिखाने की कसम खाएंगे, फिर नए नेताजी आएंगे यही सब दोहराएंगे, जीतने के बाद भूल जायेंगे, हम फिर उनको सबक सीखा कर पुराने नेताजी के नए मुफ्त प्लान पर भरोसा जताएंगे, और यह चक्र चलता रहेगा।
क़र्ज़ कभी किसी का माफ़ नहीं होता, सिर्फ उसका प्रारूप बदल जाता है, इतनी सी बात नहीं समझ पता है मतदाता और हर बार ठगा जाता है।
सस्ते के लालच में हम अपना घर लुटा रहे हो, गरीब थे और गरीब होते जा रहे हो।
टैक्स कोई देना नहीं चाहता, बिल कोई भरना नहीं चाहता, गाड़िया लाखो की खरीद ली लेकिन पेट्रोल महंगा हो तो सहा नहीं जाता। अनाज सस्ता चाहिए और किसानो का दर्द देखा नहीं जाता। ठेले वाले से १ रुपये के लिए आधा घंटा मोल भाव करने वालो से बड़ी दूकान में १० रूपये भी लौटने को कहा नहीं जाता।
बदलते वक़्त ने हमको निकम्मा बना दिया है, अपनी मेहनत का खाने वालो को मुफ्तखोर बना दिया है; लालची हो गए है हम इसलिए भुगत रहे है, चुने तो हमने ही है ऐसे नेता जो आज हमको ठग कर अपनी जेब भरे जा रहे हैं।
यह क़र्ज़ माफ़ करने की बात कहने वाले क्या अपने बैंक खातो से पैसे निकाल के देंगे??? अरे मुर्ख आदमी जो तेरी जेब से नहीं मिला तो तेरे पडोसी के जेब से निकाल लेंगे। तुझे क़र्ज़ माफ़ करेंगे तो टैक्स के नाम पर दूसरे से वसूल लेंगे।
हम सबको यह समझना होगा और एक दूसरे का साथ निभाना होगा, किसान को धान का सही मूल्य दिलाना होगा। बड़ी दुकान की महंगी बासी सब्ज़ी को छोड़ ठेले वाले की सस्ती ताज़ी सब्ज़ी को अपनाना होगा। भिखारियों का कुछ कर नहीं सकते लेकिन मेहनतकश लोगो का साथ निभाना होगा उनको सहारा लगाना होगा।
अपने अंदर सोये उस सच्चे मेहनती इंसान को जगाना होगा, और इस मुफ्तखोर शैतान को मन से भागना होगा। इस क़र्ज़ माफ़ी की सियासत को यही ख़त्म कराना होगा।
जब तक हम मुफ्त के मोह को छोड़ नहीं पाएंगे, इसी दलदल में धसते चले जायेंगे।
इतने सालो में जब इन पैंतरो से गरीबी नहीं मिटी तो क्या अब मिट जाएगी???
क़र्ज़ माफ़ करने वाले को हमारी मेहनत का सही दाम चुकाना होगा, पूरा टैक्स चुकाएंगे हम लेकिन हमको उसका लाभ पहुँचाना होगा।
किसी को अगर मेरी कही कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा चाहता हूँ, लेकिन जो कहा है उसमे मैं पूरा यकीन रखता हूँ।
जय हिन्द
डॉ. सुदीप डाँगावास