एक गांव जहां केवल पांचवीं तक के स्कूल हों। एक पिता जो कृषक हो। और वो लड़की जिसे तीसरी कक्षा के बाद पढ़ने न दिया जा रहा हो। एक पांच-सात साल की लड़की कैसे लड़ सकती है, सैकड़ो लोगों से? पूरे कल्चर से! कुछ चौदह साल में उसकी सादी कर दी जाती है। वो इत्ती छोटी और भोली है कि अपने शादी में अपने पिता के गोद मे ही सो रही है। कुछ सोलह-सत्रह साल में उसपे ये आरोप लगतें हैं कि उसपे भूत है, इस वजह से बच्चे नहीं हो रहे। उसे इसी बीच दहेज उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है। हर रोज उसे गंगा नदी में कूद के मर जाने को दिल करता है। उन्नीस साल की उम्र में उसको पहला लड़का होता है।
कुछ बिस साल के उम्र में उसकी माँ की मृत्यु हो जाती है। वो माँ, जिसने उसे अपने प्राण पिलाये होतें हैं। वो माँ, जो उसमे खुद को झांकती है। वो मां, जो उसमें शालीनता और जीवन के मूल्य पिरोये होती है। उसके मृत्यु पर उसको उससे मिलने तक नहीं दिया जाता है। वो आज भी उसके लिए आंखे भर-भर के रोती है। कुछ तीस साल बाद भी।
फिर कुछ एक साल बाद, इक्कीस साल की उम्र में दूसरा लड़का होता है उसे। वो लड़का, जो शायद बहुत कमजोर है। शायद ही जीवित रहे। शायद। वो दिन भर जगती है। उसका खयाल अपने जीवन से भी ज्यादा रखती है।
कुछ सत्ताईस साल की उम्र में उसके पिता मृत्यु सैय्या पे पड़े होते हैं। अपने पिता की जी-जान लगा के सेवा करती है। वो पिता, जिसने उसे पढ़ने न दिया। वो पिता जिसने उन प्रेतात्माओं से नहीं लड़ा, जिससे उसे लड़ना था उसके लिए।
मैं। मैं, उसकी वो बड़ी-बड़ी प्यारी सी आंखों में आँशू नहीं देख सकता। सच-झूठ, तर्क-वितर्क और सही-गलत से परे हैं तेरे वो अश्क मेरे लिए। मैं तुझे एक बार और हारते हुए नहीं देख सकता। तू। तू मेरी हीरो है। मैं खुद से हार जाऊंगा, पर तु हार जाएगी तो शायद मैं कभी खुद को क्षमा न कर सकूं। माँ? सुन रही है न तू!
~राघव