हमारे घर बिजली कैसे आती है? और क्यों यदि सभी लोग लाइट्स बंद कर देंगे तो पूरा सिस्टम खराब हो सकता है?
ऐसे समझिये की, हमारा पावर सिस्टम के मुख्यतः तीन खंड हैं। उत्पादन (Generation), संचारण (transmission), और वितरण (distribution)। Generation, जहां मुख्यतः कोयले को जला कर, उसके आग से भाप (पानी) को गर्म करतें हैं, करीब 500℃-1000℃ तक। फिर उस गरम भाप के सहायता से हम एक मशीन को बहुत तेजी से घूमातें हैं। आप यूँ समझिये की, भाप को बहुत गर्म करने पर वो अपने बर्तन की दीवारों पर पर बहुत तेजी से धक्का लगता है। हम एक ऐसा बर्तन बनाते हैं जिसकी दीवार पर जब भाप धक्का लगात है तो वो घूमता है। और फिर ईस घूमते हुए बर्तन की दीवार (turbine) के सहायता से हम बिलजी का निर्माण करते हैं, कैसे? एक एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। मैं इसका सरलीकरण करने का प्रयास करता हूँ।
दुनिया की सभी वस्तुएं बहुत ही सूक्ष्म कुछ चीजों से बनी हैं। इनमे से एक सूक्ष्म चीज का नाम है इलेक्ट्रान। बिजली इसी के वजह से चलती है। किसी-किसी वस्तु में ये इलेक्ट्रान्स सुप्त अवस्था मे रहते हैं, तो किसी किसी मे बहुत ही बेचैन से इधर-उधर बिना काम के घूमते रहते हैं। एक और बात, आपने बचपन मे चुम्बक से जरूर खेला होगा। पता है, जब हम इधर-उधर घूमने वाले इलेक्ट्रॉन्स से भरे वस्तु को चुम्बक के चारो तरफ घूमाते हैं, तो ये सभी इलेक्ट्रॉन्स इधर-उधर घूमना बंद कर के एक दिशा में चलने लगते हैं। बिल्कुल एक चीटियों के कतार की तरह। इलेक्ट्रॉन्स के इसी तरह से एक दिशा में चलने की घटना को विद्दुत (electricity) कहते हैं। अब electricity से पंखा/AC/इंटरनेट/TV/बल्ब/मोटर/लिफ्ट/रेलवे और सब कुछ कैसे चलता है, वो कभी फिर।
तो हम इन्ही दोनों चीजो का उपयोग करते हैं। भाप के वजह से घूमती टर्बाइन के सहायता से ढेर सारे ऐसे तार को घूमाते हैं, जो बेचैन इलेक्ट्रॉन्स वाले पदार्थ से बने होते हैं। और यही है पूरी कहानी विजली को पैदा करने की। पर जैसा कि आप समझ सकते हैं, की बिजली बनाने के लिए हमे ढेर सारे कोयले, ढेर सारा पानी, और बहुत सारे दूसरे उपकरणों की जरूरत पड़ती है। यही वजह है कि हम बिजली कुछ-कुछ जगह जहां ये सभी चीजें प्रचुर मात्रा में हैं, या फिर जहां ये सस्ते में जुटाईं जा सकें, वहां पर ही बनातें हैं। पर इन सबके अलावा एक और बात है। कोयले को जलाने के लिए उनकी कुटाई होती है। उस वक़्त ये आकास में उड़ कर प्रदूषण करते हैं और कई सारी सांस की बीमारियों को जन्म देतें हैं। यह भी एक प्रमुख कारण है, हर गांव-शहर में बिजली न बनाने की। तो इन वजहों से देश मे कुछ ही जगहों पे बिजली बनाई जाती है। पर इस वजह से दूसरी समस्या पैदा होती है। बिजली को सुदूर गांवों और शहरों तक पहुचाने की। यहीं समझना सबसे मुश्किल काम है। पर प्रयास करते हैं।
जैसा कि मैंने बताया कि बिजली कुछ नहीं बल्की इलेक्ट्रॉन्स का एक दिशा में दौड़ने को कहते हैं। ये बिल्कुल ऐसा ही है, जैसा मान लो कि समुन्द्र के पानी को चेन्नई से मेरे घर बलिया ले जाना हो। क्या करोगे आप? उस से भी पहले ये सोचो कि आपको यदि खुद अपने घर बलिया जाना हो चेन्नई से तो कैसे जाओगे? पैदल जाओगे तो बलिया पहुचने से पहले ही सारी शक्ति खत्म हो जायेगी। तो इस लिए हवाई जहाज या फिर ट्रेन से अपने घर के सबसे नजदीक जाओगे। फिर वहां से पैदल या कुछ बस-गाड़ी से घर पहुँचोगे। ऐसे ही पानी के साथ करोगे: पहले कोई बहुत मोटे से पाईप से पानी बलिया के पास लाओगे। फिर वहां से छोटी-छोटी पाइपों से घर तक। यदि पतली पाईप से चेन्नई से घर पानी ले जाने का प्रयास करोगे तो क्या होगा? थोड़े से पानी के लिए बहुत सारा ऊर्जा की बर्बादी होगा। वैसे ही मोटी पाईप सीधे यदि घर तक ले जाओगे तो पानी की धार इतनी तेज होगी कि वो किसी काम का नहीं होगा।
ठीक ऐसा ही होता है। इलेक्ट्रॉन्स के लंबे यात्रा के लिए बहुत बड़े-बड़े और मोटे तार का प्रयोग किया जाता है। ये तार, पानी के बड़े और मोटे पाईप की तरह ही होते हैं। इसी को transmission या संचारण सिस्टम कहतें हैं।
फिर लास्ट, में वितरण की समस्या। एक बार ये जो सारा पानी बलिया आ गया फिर क्या करोगे? एक शायद छोटा सा तालाब बनाओ! उसमे से छोटे-छोटे पाईप से हज़ारों घरों में भेजो। बिजली के साथ भी हम ऐसा ही करते हैं। ठीक ऐसे ही छोटे-छोटे तारों के सहायता से घर घर पहुँचातें हैं।
ये हुई सारी कहानी। इसमे ढेर सारी कहानियां छुपी हुईं हैं। जैसे चुम्बक के चारो तरफ़ तार घूमने से उन तारों के इलेक्ट्रॉन्स क्यों दौड़ने लगते हैं? फिर, क्या इलेक्ट्रॉन्स चेन्नई से बलिया तक का कालजयी सफर वाक़ई में तय करतें हैं? इस बिजली से बल्ब कैसे जलते हैं? कोयले के अलावा और क्या-क्या है जिसका उपयोग हो रहा है या किया जा सकता है? और भी बहुत कुछ। पर फिलहाल एक प्रश्न का उत्तर मैं बता ही सकता हूँ। कि क्या हो यदि सभी लोग एक साथ अपनी बल्ब-पंखा-फ्रिज-AC बंद कर दें?
इसको समझने के लिए भी पानी वाला उदाहरण समझते हैं। यदि सभी लोग पानी एक साथ अचानक बंद कर दें तो क्या होगा! अचानक से चेन्नई से बलिया तक आने वाले पाईप में पानी का प्रेसर बढ़ जाएगा। क्यों कि चेन्नई से तो उसी गति से पानी डाली जा रही पाईप में। अब जो पानी पाईप में है वो बाहर निकल नहीं रही, और ऊपर से और पानी भरा जा रहा। मान लिजिए आपने पाईप बलिया की तरफ से ढक दिया किसी चीज से। क्या होगा? पानी उस ढक्कन से टकरा कर चेन्नई की तरफ जाएगी, पर चुकि चेन्नई की तरफ से भी पानी आ रहा है तो वो वापिस बलिया की तरफ आने का प्रयास करेगी। इस तरह एक पानी की तरंग बलिया से चेन्नई और वापिस चेन्नई से बलिया आने-जाने लगेगी। और यदि ये तरंग बहुत बड़ी हुई, तो पाईप फटने लगेंगे। बिजली के विज्ञान में इसको पावर स्विंग कहते हैं। उसमें भी बिल्कुल ऐसे ही इलेक्ट्रॉन्स के तरंग जाने-आने लगते हैं। और तारों को बचाने के लिए जेनरेटर्स बंद हो जाते हैं। फिर एक जनरेटर बंद होने के वजह से दूसरे जेनरेटर्स पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और वो भी बंद होने लगते हैं। और इस तरह पूरे भारत के जेनरेटर्स बंद होने लग सकतें हैं। दोबारा सबको चालू करने में एक महीने तक का समय लग सकता है। यही वजह है कि युद्ध मे दुश्मन देश पावर स्टेशनों पे मार करते हैं। एक बार पूरे देश की बिजिली गई तो आपकी आर्मी-एयरफोर्स अंधे हो जाएंगे। उसे ये नहीं पता रहेगा कि दुश्मन किधर से आ रहा। उत्तर भारत का सबसे बड़ा ग्रिड का केंद्र आगरा में है। यही वजह है कि कारगिल युद्ध के वक़्त पूरे आगरा में लोग अपनी बत्तियां बुझा देते थे कि दुश्मन युद्धविमान को पता न चले कि ग्रिड स्टेशन कहाँ है। ताज महल तक को ढक दिया गया था।
बिजुरी की कहानी खत्म।
~राघव