कुछ साठ में से तीन बच्चों को, कुछ पन्द्रह सौ बच्चों को बैठा कर उनके सामने, पुरस्कार दिया जाता था। किस लिए? सबसे अधिक मार्क्स लाने के लिए। मुझे कभी समझ नही आया आज तक कि, जिन बच्चों को नीचे बैठा कर, बार-बार ये बताया जाता था कि तुम पीछे राह गए, उन्हें तिरस्कृत किया जाता था या प्रोत्साहित। वो बच्चें, जीनमें शायद किसी के घर शाम में पढ़ने के कोई साधन न हों, तो किसी के रूम में पांच लोग सोते हैं, तो किसी के पास किताब तक खरीदने के पैसे न रहा हो। शायद कोई सेक्सुअल एब्यूज से हर रोज गुजर रहा हो, शायद किसी के घर उसके बाप, उसकी माँ को पिटता हो। पर नही, तुम लोग जो "पीछे" राह गए, तुम्हारा तिरस्कार किया जाएगा। पंद्रह सौ बच्चों को बैठा कर, उनके सामने कुछ को पुरस्कृत किया जाएगा। शिक्षक अपनी मूर्खता और असमर्थता को कुछ तीन बच्चों को पुरस्कार दे कर ढक लेता है। ये सब होता है। पांच साल के उम्र से। लगभग हर बच्चे के साथ। और हम सोचते हैं कि हमारा समाज ऐसा क्यों हो गया है। एक लाइन है, एक मूवी की, याद रखियेगा - "It takes a village to raise a child, It takes a village to abuse one" (Spotlight).