दहेज दरअसल पुरुषों द्वारा औरतों के आर्थिक पूंजी का सामूहिक तौर पर किया गया सामाजिक लूट है। वस्तुतः 'दहेज का लेन-देन' और 'लड़कियों को उनके संपत्ति में अधिकार न देना/लेना' दोनों में रत्ती भर भी फ़र्क़ नही है। दोनों ही दशा में, पुरुष औरतों के धन को लूट लेता है। मुझे लगता है की, दहेज को कभी भी औरतों के संपत्ति के अधिकार से अलग कर के नही देखा जा सकता है। जितना दोष दहेज लेने-देने में है, उतना ही दोष अपनी विरासती सम्पति में हक़ न लेने में भी है। दोनों में बस इतना सा अंतर है कि, दहेज में, औरतों की संपत्ति उसके ससुर और पति लूट रहे होते हैं, और दूसरे केस में उसके पिता और भाई। मुझे दोनों में कभी कोई अंतर नही दिखता।
Feb, 2022