ये आत्मा-परमात्मा की थ्योरी कभी मेरे पल्ले ना पड़ी। ऐसा नहीं हैं कि मैंने प्रयास ना किया हो।
बी. आर. चोपड़ा का महाभारत कमसकम 5-6 बार तो देखा ही होऊंगा। वो गीता वाले एपिसोडस तो 10सों बार। गवार लोगों से भी तर्क-वितर्क कर के समझने का प्रयास किया है। वैज्ञानिकों से भी। असली वाले वैज्ञानिक, मतलब IIT वाले। हेहे। आस्तिकों से भी और भयंकर नास्तिको से भी। वेजिटेरियन, नान-वेजिटेरियन, और मंगलवार-शनिवार वाले वेजिटेरियन से भी। हिन्दू से भी, मुस्लिम से भी। सभी तरह के लोगों से कभी-न-कभी तो हुई है बहस इन बातों पे।
कूप-मंडूप वाली बात नहीं है। इस विषय पे ऐसे व्यक्ति से भी चर्चा हुई है जिसे पूरी-की-पूरी मानस, अर्थ सहित याद हो। मजाक नहीं कर रहा, मेरे मामा को पूरी मानस याद है। उनके लड़के फेसबुक पे है, वो सत्यापित कर सकतें हैं। फिर IIT के विश्वविख्यात प्राध्यापक से भी, इस विषय पे विस्तार से चर्चा हुई है। बड़े-छोटे-साथी-मित्र-दुश्मन-भाई-बहन सब से कभी-न-कभी तो हुई है।
इतने चर्चे के बाद भी मुझे, ये आत्मा-परमात्मा की कहानियां, कभी थोड़ी भी समझ नहीं आयीं। मतलब कहानियां तो समझ आयी, पर पची नहीं। हो सकता है, तुम्हारे परमात्मा ने कोई जादू-टोना किया हो कि मेरे को और चीजें समझ आती हो, बस ये ही समझ ना आ रही हो। पर मैं ये बड़े-बड़े, उलझे हुए, अपूर्ण रूप से परिभाषित शब्दों के छावं में खुद को भुलावा नहीं दे सकता।
गीता के वो पाठ मुझे बिल्कुल गलत लगतें हैं। ऐसा नहीं कि उन्हें मैने इसी लिए सीखने का प्रयास किया हो की, उनको एक दिन गलत बोल सकूँ, बल्कि गीता समझने का प्रयास मैं इस लिए कर रहा था की, मुझे अपनी कुछ उलझनों से छुटकारा मिले। पर ऐसा नहीं हुआ। आत्मा-परमात्मा जैसा कुछ नहीं होता। ऐसा कुछ नहीं होता की, आदमी का शरीर एक वस्त्र है। ये गलत बात है की आत्मा निकल की परमात्मा में मिल जाती हो। हो सकता है कि 5000 साल पहले की सच्चाई यही हो, पर आज की सच्चाई ये नहीं है।
आप कहेंगे की तुमरे पास क्या प्रूफ है की ये थ्योरी गलत है? अरे भाईसाब, प्रूफ थ्योरी को किया जाता है, ना की थ्योरी बना के उसको गलत प्रूफ किया जाता हो। रिवर्स इंजिनीरिंग होती है, रिवर्स-साइंस नहीं होती। समझिये इस बात को जरा। सैकङो साल के वैज्ञानिक-रिसर्च के बाद भी जरूर ढेर सारे प्रश्नों के उत्तर हम ना ढूंढ पाएं हो, पर आप ये कैसे कह सकतें हैं, जो हम सारे आधुनिक ज्ञान निचोड़ के भी ना पता लगा पाए, उसे आप 5000 साल पुरानी स्मृतियों में ढूंढ लेंगें?
कितने लोग, एक एक्सपेरिमेंट का उदाहरण देतें हैं। की एक मृत्यु सैय्या पे पड़े व्यक्ति के रजामंदी से, उसे एक बड़े एयरप्रूफ़ ग्लास चैम्बर में रक्खा गया। उसके मरतें ही, ग्लास टूट गया। अब देखिए, बात ये है की इस कहानी में कई खामियां हैं। पहली बात की, दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां मानव पर ऐसे किसी प्रकार के मेडिकल एक्सपेरिमेंट्स करना विधि द्वारा बाधित न हो। चाहे उसकी रजामंदी हो या न हो। दूसरी बात ये की, ये इम्पोर्टेन्ट एक्सपेरिमेंट कब हुआ, किस देश मे हुआ किसी को नहीं पता। कोई रिसर्च पेपर नहीं, कोई प्राइज नहीं, कोई रिकॉग्निशन नहीं। तीसरी बात ये की, ये एक्सपेरिमेंट, कहीं भी, कभी भी, कोई भी कर सकता है, क्यों की आत्मा तो हर जीव में होती है, इसके लिए इतना नाटक करने की क्या जरूरत। हम रोज कितना मच्छर मार देतें हैं, खाने के लिए लाखों मछली-मुर्गे-बकरे-सुवर-गाय-भैस-कुत्तों को मार देतें हैं। धर्म के नाम भी पे हो ही जाता है कभी-कभी। फिर ऐसा एक्सपेरिमेंट तो हम परमात्मा के नाम पे रोज कर सकतें हैं। इस लिए मेरे दोस्त, ये एक बनावटी स्टोरी है।
देख भाई, सबूत, किसी चीज के अस्तित्व के न होने का नहीं दिया जा सकता। ये अतार्किक है। क्रमबद्ध नहीं है। आखिर किसी चीज के अबसेंसे को कोई कैसे सेंस कर सकता है। थ्योरी को सिद्ध किया जाता है, असिद्ध नहीं।
~राघव ©
30 Aug 2017